“जिसकी जेब खाली, उसका क्या कर लेगा मवाली?”

अन्तर्द्वन्द

मेरे पिता जी हरदम कहा करते थे – “जिसकी जेब खाली, उसका क्या कर लेगा मवाली?” गरीब आदमी के पास खोने को कुछ नहीं होता। लोग गरीबी को अभिशाप मानते हैं पर गरीबी में छुपा हुआ वरदान अगर नज़र आ जाए तो आदमी की किस्मत बदल जाती है। इसका और खुलासा करें, आइये इससे पहले परंपरागत भारतीय मेलों के एक लोकप्रिय दृश्य को याद करते हैं।

दस मंजिले मकान की ऊंचाई जितना ऊंचे एक मचान पर एक व्यक्ति खड़ा है, उसने भारी-भरकम कपड़े पहन रखे हैं। नीचे ज़मीन पर एक कृत्रिम कुआं बना हुआ है जिसकी गहराई इतनी-सी है कि उसमें एक व्यक्ति खड़ा हो सके। कुएं में पानी भरा हुआ है। मचान पर खड़े व्यक्ति के कपड़ों में आग लगाई जाएगी और उसके बाद वह व्यक्ति छलांग लगाता है और तरह-तरह की कलाबाज़ियां खाता हुआ नीचे बने कुएं में गिरता है ताकि उसके कपड़ों में लगी आग बुझ सके। स्टंटनुमा इस खेल को “मौत का कुआं” के नाम से जाना जाता है। एक ज़रा सी चूक और परिणाम घातक भी हो सकता है। चोट कितनी भी गहरी हो सकती है, लंबी बेहोशी में बदल सकती है या राम-नाम सत्य करवा सकती है। सब कुछ जानते हुए भी ये स्टंटमैन हर रोज़ अपना जीवन दांव पर लगाते हैं।

सोचने के दो तरीके हैं। पहला नज़रिया है कि भूख से बचने के लिए आदमी जीवन भी दांव पर लगा देता है। संस्मरण राजाओं और रानियों के लिखे जाते हैं, सिपाही तो सिर्फ युद्ध में खेत होने के लिए होता है। अमीर आदमी का खिलौना गरीब की दिहाड़ी है। भूख का देवता उसकी प्लेट में यूं ही रोटी देता है। यह जीवन उसका चुनाव नहीं, उसकी जरूरत है। गरीबी के थपेड़ों में सुरक्षा, जीवन और तर्क कहीं गहरे खो जाते हैं। जो जोकर आपके बच्चों को हंसाता है, उसके अपने बच्चे घर में भूख से बिलख रहे होते हैं। कभी-कभार गरीबी ऐसा अपराध की सज़ा की तरह होती है जो अपराध उसने कभी किया ही नहीं। जब भी इच्छा हो, अमीर आदमी भोजन कर लेता है, गरीब आदमी भोजन तब करता है जब उसे नसीब हो जाए। सिपाही आपके लिए शहीद होता है। आपकी सुरक्षा के लिए वह अपना जीवन दावं पर लगा देता है। सर्कस में बारह शेरों से घिरे रिंग मास्टर की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। जो गरीब हैं, उन्हें ही पता है कि गरीबी की कीमत क्या है।

इसमें कोई शक नहीं कि गरीबी एक सच्चाई है। गरीब आदमी की मजबूरी उससे हर रोज़ तरह-तरह के समझौते करवाती है। परंतु गरीबी में एक ऐसा वरदान छिपा है जिसकी तरफ हमारी नज़र अक्सर नहीं जाती। पहली बात तो यह कि गरीब आदमी के पास खोने के लिए कुछ है ही नहीं इसलिए उसे चुनौतियों से डर नहीं लगता। अपने कंफर्ट ज़ोन का आदी सुविधासंपन्न व्यक्ति अक्सर ऐसे जोखिम लेने से कतरा जाता है जिन्हें एक गरीब व्यक्ति फटाफट लपक लेता है। दूसरी बात यह है कि साधनहीन होने के कारण उसे हर रोज़ इतनी तरह की चुनौतियां झेलनी पड़ जाती हैं कि उसका अनुभव बहुत विशद हो जाता है और नज़रिये में परिपक्वता बहुत जल्दी आ जाती है, इसलिए अवसर मिलने पर गरीब आदमी की सफलता के अवसर कई गुना बढ़ जाते हैं। एक छोटी-सी कहानी इसे बहुत अच्छे ढंग से बयान करती है। जंगल में एक कुत्ते ने खरगोश को देखा तो वह उसे खाने के लिए उसके पीछे भागा। कुत्ते को आता देखकर खरगोश ने भी भागना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में उसने कुत्ते को काफी पीछे छोड़ दिया तो कुत्ते ने दूर से आवाज़ लगाई – “रुक जाओ, अगर तुम मेरे एक सवाल का जवाब दे दो तो मैं तुम्हें नहीं मारूंगा।” खरगोश रुका तो कुत्ते ने पूछा – “मैं तुमसे बड़ा हूं, तेज़ दौड़ सकता हूं फिर भी ऐसा क्या है कि मैं तुम्हें पकड़ नहीं पा रहा हूं?” इस पर खरगोश ने जवाब दिया कि तुम सिर्फ भूख मिटाने के लिए दौड़ रहे हो। मैं नहीं मिलूंगा तो तुम दूसरा शिकार ढूंढ़ लोगे, पर मैं तो जान बचाने के लिए दौड़ रहा हूं, तुम्हारे काबू आ गया तो मुझे कोई दूसरा चांस नहीं मिलेगा। गरीबी और अमीरी में भी यही फर्क है। अमीर आदमी के पास कई विकल्प हैं पर गरीब आदमी अगर दिहाड़ी नहीं कमाएगा तो भूखा सोयेगा। उसकी यह मजबूरी ही उसे बहुत कुछ सिखा देती है।

आइये, एक बार फिर उसी स्टंटमैन की बात करते हैं जिसके कपड़ों पर कैरोसिन तेल छिड़क कर आग लगा दी गई थी ताकि वह सौ फुट की ऊंचाई से मौत के कुएं में कूदने का करतब दिखाकर लोगों का मनोरंजन कर सके। वह स्टंटमैन जानता है कि इस करतब को करने से पहले करतब करना सीखना होगा और उस वक्त उसे बहुत खतरा है क्योंकि वह अभी उस स्टंट के खतरों से बचने की पूरी ट्रेनिंग नहीं ले पाया है। उसके बावजूद वह ऐसा खतरनाक करतब सीखने का मन बनाता है, सीखने की जुगत करता है, खतरे मोल लेकर उसमें माहिर हो जाता है।

ऐसा वह इसलिए कर पाता है क्योंकि उसकी सहज बुद्धि उसे बताती है कि इस खेल में प्रतियोगिता सीमित है और उसे रोज़गार मिलना संभव है। वह उसके लिए इतना अभ्यास करता है कि जोखिम भी उसके लिए जोखिम नहीं रह जाता। ऊपर मचान पर चढ़ने से पहले वह अपने परिवार वालों से विदा लेता है तो एक धड़कते दिल के बावजूद सब को यह भी विश्वास है कि वह स्टंटमैन मौत के कुएं से सकुशल बाहर निकलेगा। जब वह सीढ़ियां चढ़ते हुए तरह-तरह की बातें बनाता है या डरने का नाटक करता है तो वह जानता है कि यह भीड़ इकट्ठी करने का शगूफा हे। उसे खुद पर विश्वास है। जब उसके कपड़ों पर तेल छिड़का जाता है तो उसे डर नहीं लगता, जब उसके कपड़ों को माचिस की तीली दिखाई जाती है तो उसे डर नहीं लगता, जब वह कलाबाज़ियां खाता हुआ नीचे छलांग लगाता है तो उसे डर नहीं लगता, जब शो के उसके सहकर्मी तरह-तरह के ढोंग करते हुए उसे कुएं से बाहर निकालते हैं तो उनमें से किसी को डर नहीं लगता। डर के आगे जीत है। गरीबी डर से आगे निकलना सिखा देती है। यह गरीबी का ऐसा वरदान है जो अमीरों के नसीब में विरले ही मिलता है। पिछले कुछ वर्षों में ऐसे बहुत से प्रयोग हुए हैं जहां फूल बेचने वाले या खोमचा लगाने वाले युवकों को उच्च शिक्षा के साधन उपलब्ध करवाये गये तो उन्होंने अपने उन अमीर सहपाठियों से भी ज्यादा अच्छा प्रदर्शन किया जो पढ़ाई के साथ-साथ कोचिंग भी ले रहे थे। टोक्यो ओलिंपिक में मैडल लाने वाले खिलाड़ियों की पारिवारिक पृष्ठभूमि गरीबी की है। गरीबी उन्हें मौत के कएं से बाहर आकर जीवन जीतने की शिक्षा देती है, बशर्ते कि हम उन्हें उपयुक्त वातावरण दे सकें। अब समय आ गया है कि हम आंखें खोलें और गरीब और साधनहीन बच्चों को अपनी प्रतिभा दिखाने और विकसित करने का अवसर दें। इसी में देश की भलाई है, हम सबकी भलाई है।

– पी. के. खुराना
हैपीनेस गुरू, मोटिवेशनल स्पीकर


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