विश्व पुस्तक मेला में पहले की तुलना में बढ़ी किताबों की बिक्री

विविध

● नई रुचियों के साथ किताबों की खरीदारी कर रहे हैं हिन्दी के पाठक
● विश्व पुस्तक मेला के अंतिम दिन कृष्णा सोबती के उपन्यास का लोकार्पण

नई दिल्ली. नौ दिन तक चले विश्व पुस्तक मेला का रविवार को समापन हुआ। आखिरी दिन भारी संख्या में लोग प्रगति मैदान पहुँचे। राजकमल प्रकाशन समूह के जलसाघर में दिनभर पुस्तक प्रेमियों की जमघट बनी रही। राजकमल प्रकाशन के कार्यकारी निदेशक आमोद महेश्वरी ने बताया कि इस बार विश्व पुस्तक मेला में पिछली बार की तुलना में किताबों की बिक्री बढ़ी है। हिन्दी के पाठक नई रुचियों के साथ किताबों की खरीदारी कर रहे हैं। इस बार स्त्री-विमर्श, दलित-आदिवासी साहित्य, लोकतंत्र, मीडिया, जाति और समाज विज्ञान की कथेतर किताबों की मांग ज्यादा देखी गई है। वहीं कथा-साहित्य में भी पाठकों की ओर से इसी तरह के विमर्शों पर आधारित किताबें ज्यादा पसन्द की गई हैं। साथ ही युवाओं में नए लेखकों की किताबों को लेकर भी ज्यादा उत्साह देखा गया है।

विश्व पुस्तक मेला के आखिरी दिन राजकमल प्रकाशन समूह के स्टॉल जलसाघर में तुम्हारी औकात क्या है पीयूष मिश्रा, वर्चस्व, बोलना ही है, काशी का अस्सी, जूठन, आपका बंटी, एक तानाशाह की प्रेमकथा, घुमक्कड़ शास्त्र, वैशालीनामा किताबों की बिक्री सर्वाधिक हुई।

ज्ञान चतुर्वेदी की किताब का लोकार्पण

पहले सत्र में ज्ञान चतुर्वेदी के उपन्यास ‘एक तानाशाह की प्रेमकथा’ का लोकार्पण हुआ। इस सत्र में वीरेंद्र यादव, आलोक पुराणिक0 और अखिलेश बतौर वक्ता मौजूद रहे। परिचर्चा के दौरान लेखक ने कहा “अतिशय प्रेम जब संबंधों में आता है तो उसकी पड़ताल करने की जरूरत होती है। इस उपन्यास का एक पात्र है जो अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता है लेकिन उसे पीटता है फिर भी दोनों खुश हैं। वह प्रेम को समझते ही नहीं, उनकी सोच है प्रेम में दो-तीन थप्पड़ से कोई फ़र्क नहीं पड़ता है। इस उपन्यास के माध्यम से मैंने विशुद्ध और सच्चे प्रेम की परिकल्पना की है। इसकी रचना के दौरान मैंने सोचा देशप्रेम भी तो एक प्रेम है इसलिए मैंने देशप्रेम को भी दर्शाया। इस रचना के दरम्यान मैंने एक तानाशाह के दिमाग में उतरने की कोशिश की है, अपने देश को सर्वश्रेष्ठ दिखाने की उसकी जो प्रवृत्ति है, सत्ता और आम इंसान के प्रेम के बीच की जो केमिस्ट्री है वही इस उपन्यास में दिखाया है।”

परिचर्चा के दौरान अखिलेश ने कहा “पहले प्रेम में मर जाना एक मुहावरा था, अब आए दिन प्रेम में मार देने की ख़बरें सुनने को मिलती हैं। यह एक जटिल संरचना और जटिल संवेदना का उपन्यास है।” वहीं आलोक पुराणिक ने कहा “मार्केट और इकोनॉमिक्स को समझते हैं और इस उपन्यास में उसे क्रिएटिविली एक्सप्रेस किया है। इस उपन्यास को सिर्फ़ व्यंग्य ही नहीं देखा जाना चाहिए, इसमें आज के पूरे परिवेश को देखा जा सकता है।”

लोहिया के सपनों का भारत’ किताब पर बातचीत

अगले सत्र में अशोक पंकज की किताब ‘लोहिया के सपनों का भारत’ पर बातचीत हुई। इस सत्र में बद्रीनारायण, रमाशंकर सिंह और … की विशिष्ट उपस्थिति रही। परिचर्चा के दौरान लेखक ने कहा “डॉ. लोहिया ने देश के नवनिर्माण के लिए सोचा और एक अलग विचार रखा। उन्होंने केवल समस्या नहीं बताई बल्कि समाधान का सूत्र भी प्रस्तुत किया। मुझे विश्वास है कि यदि उनके विचारों को मान्य किया गया होता तो ग्रामीण समाज की स्थिति सुधर जाती। आज न गरीबी होती न अशिक्षा। ये सारे मुद्दे आज भी ज्वलंत हैं इसलिए लोहिया के मॉडल के बारे में पुनर्विचार की जरूरत है।” मंचासीन वक्ताओं में रमाशंकर सिंह ने कहा “आज जब यह बात की जाती है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है तो बौद्धिक वर्ग की यह ज़िम्मेदारी है कि वह समझे कि हम सिर्फ़ वोटर्स के हिसाब से बड़े लोकतंत्र में हैं या वे सारी समानताएं हमें मिल रही हैं जिनकी बात लोकतंत्र में की जाती है।” बद्रीनारायण ने कहा “लोहिया जी भारतीय परंपरा और आधुनिक चिंतन के अंतर्संवाद को प्रस्तुत करने वाले विचारक थे। उनकी कोई जाति नहीं थी, वे एक विचार थे जिस पर बार-बार पुनर्पाठ की आवश्यकता है।”

कृष्णा सोबती के उपन्यास का लोकार्पण

अगले सत्र में कृष्णा सोबती के दो अप्रकाशित उपन्यास ‘वह समय’ और ‘गर्दन पर तिलक’ का लोकार्पण हुआ। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कथाकार के दो अप्रकाशित उपन्यास एक ही जिल्द में प्रकाशित हुए हैं। इस सत्र में अखिलेश, गरिमा श्रीवास्तव, रवीन्द्र यादव, आलोक पुराणिक की विशिष्ट उपस्थिति रही। परिचर्चा के दौरान गरिमा श्रीवास्तव ने कहा “इस उपन्यास को देखकर मैं कह सकती हूं कि कृष्णा सोबती ज़िंदगीनामा का दूसरा भाग लिखना चाहती थीं। जहाॅं ज़िंदगीनामा ख़त्म हो रहा है वहाॅं से यह उपन्यास शुरू हो रहा है।” रवींद्र यादव ने कहा “जिस स्त्री को वे अपने साहित्य में लेकर आयी थी, जिस स्त्री-पुरुष के संबंध और जिस समाज को उन्होंने दिखाया है वैसा हिंदी साहित्य में अन्यत्र देखने को नहीं मिलता।” अखिलेश ने कहा “कृष्णा सोबती जी हिंदी की अप्रतिम लेखिका थी। उनसे पूर्व वैसे रचनाकार नहीं हुए भविष्य में होना भी दुर्लभ है। एक लेखक का व्यक्तित्व कैसा होना चाहिए वे उसका उदाहरण थीं।”

मनोज पाण्डेय के नए कहानी संग्रह ‘प्रतिरूप’ का लोकार्पण

कार्यक्रम के अगले सत्र में मनोज पाण्डेय के नए कहानी संग्रह ‘प्रतिरूप’ का लोकार्पण हुआ। इस सत्र में ज्ञान चर्तुवेदी, अखिलेश, वीरेन्द्र यादव बतौर वक्ता मौजूद रहे। कार्यक्रम के दौरान वक्ताओं ने कहा “मनोज जी की कहानियां पुराने डिपार्ट से अलग हैं, इनकी कहानियों में पुरानी साहित्य परंपरा की सोच है, परंतु रचना शैली इनकी अपनी है। मुझे खुशी है कि ये उस पुराने सांचे को तोड़ पा रहे हैं।” इसी क्रम में वक्ताओं ने कहा “इस संग्रह की कहानियाँ समकालीन समय की राजनीतिक, सामाजिक और पेशागत कई चुनौतियों को दर्शाती हैं जो आज के समय की भयावहताओं को अलग-अलग ढंग से बयान करती हैं।” वहीं लेखक ने कहा “इन कहानियों के माध्यम से मैंने यही प्रयास किया है कि पाठक अपने समय को थोड़ा और बेहतर से समझ पाऍं।”

आशा प्रभात के उपन्यास ‘उर्मिला’ पर बातचीत

दूसरे सत्र में आशा प्रभात के उपन्यास ‘उर्मिला’ पर गीताश्री ने लेखक से बातचीत की। कार्यक्रम के दौरान आशा प्रभात ने कहा “युग कोई भी हो समाज और उसमें स्त्रियों की स्थिति नहीं बदली है। मेरे उपन्यास में दर्शाए गए पात्र पौराणिक हैं लेकिन अलौकिक नहीं हैं, मैंने एक मानवीय स्त्री को चिह्नित किया है।”

राजेश पांडेय की किताब ‘वर्चस्व’ पर बातचीत

अगले सत्र में राजेश के उपन्यास ‘वर्चस्व’ पर शम्स ताहिर खान ने उनसे बातचीत की। परिचर्चा के दौरान शम्स ताहिर खान ने बताया कि “नब्बे के दशक में श्रीप्रकाश शुक्ला एक ऐसा अपराधी था जिसके आतंक ने यूपी और बिहार में सबकी नींद उड़ा दी थीं। उसे यूपी पुलिस की एसटीएफ़ ने दिल्ली से सटे ग़ाज़ियाबाद में मार गिराया। यह किताब इसी एनकाउंटर की कहानी कहती है। यह किताब इस बेहद चर्चित मुठभेड़ की पूरी दास्तान बयान करती है।” वहीं पर लेखक ने कहा “इस किताब में जो कुछ भी दिखाया गया है वह सिर्फ एक संस्मरण नहीं बल्कि यूपी के एक आपराधिक कालखंड का विवरण है।”

‘एक जिन्दगी… एक स्क्रिप्ट भर!’ का लोकार्पण

कार्यक्रम के अगले सत्र में उपासना के कहानी संग्रह ‘एक जिन्दगी… एक स्क्रिप्ट भर!’ का लोकार्पण हुआ। इस सत्र में अखिलेश और अनुराधा गुप्ता बतौर वक्ता मौजूद रहे। कार्यक्रम के दौरान वक्ताओं ने कहा कि उपासना कहानियाँ तरल भाषा, सन्तुलित गठन और विवेकपूर्ण सूक्ष्मता के साथ गुँथी-बुनी हैं। वह कम लिखती हैं, लेकिन जब लिखती हैं, एक अच्छी कहानी पढ़ने के सुख के प्रति आश्वस्त करती हैं। इनके अनुभवों के आधार पर लिखी गई कहानियाँ समाज के अँधेरे-उजालों को बहुत बारीकी से दर्शाती हैं। वहीं लेखक ने कहा कि इन कहानियों को लिखते समय मेरी जो मनःस्थिति और परिवेश था वह मेरे लिए बहुत प्रियकर था, इसी ताने-बाने को मैंने अपनी कहानियों में दर्ज किया है।”

कार्यक्रम का अंतिम सत्र सोनी पांडेय के उपन्यास ‘सुनो कबीर’ के लोकार्पण और बातचीत का रहा। इस सत्र के दौरान लेखक के साथ मंच पर मृत्युंजय, देवेश और रश्मि भारद्वाज मौजूद रहे। बातचीत में सोनी पांडेय ने कहा “यह रचना मेरे महबूब शहर आजमगढ़ को समर्पित है। मैं अपने शहर को जितना समझ पायी वही मैंने इस उपन्यास में दिखाया है।” मंचासीन वक्ताओं में रश्मि ने कहा “यह बहुत ही सरल और सधी हुई भाषा में लिखा गया एक रोचक उपन्यास है। इसमें देखा जा सकता है कि किस तरह राजनीतिक हलचल की वज़ह से समाज का सांझापन बदल रहा है। इस उपन्यास में एक कथा के साथ-साथ कई उपकथाएं एक साथ चलती हैं जो कथा का विस्तार करती चलती है।” मृत्युंजय ने कहा “सोनी जी के उपन्यास के जो कैरेक्टर हैं वो बहुत ताकतवर, मॉडल या विशिष्ट हैं यदि समाज में ऐसे कैरेक्टर आ जाए तो समाज बहुत ही खूबसूरत होगा।” देवेश ने कहा “मैं आजमगढ़ जिले का रहने वाला हूँ। हर जिले की तरह आजमगढ़ भी एक साधारण जिला है जिसकी एक अलग छवि मीडिया में बनाई गई है। इस उपन्यास को पढ़कर मैं अपने आजमगढ़ की जीवंत तस्वीर को देख पाया।”

-हिमांशु जोशी