4 दिसंबर को इस साल की आखिरी शनि अमावस्या, बन रहा विशेष संयोग

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हिंदू धर्म में अमावस्या का विशेष महत्व है। इस बार 04 दिसंबर को शनिवार के दिन अमावस्या का विशेष संयोग बन रहा है जिसे शनिचरी अमावस्या भी कहा जाता है। ज्योतिष शोधार्थी व एस्ट्रोलॉजी एक विज्ञान रिसर्च पुस्तक के लेखक गुरमीत बेदी के अनुसार शनिवार को अमावस्या का संयोग कम ही बनता है। इस साल 13 मार्च को शनिवार के दिन अमावस्या थी। उसके बाद 10 जुलाई को ऐसा योग बना और अब  4 दिसंबर को इस साल की आखिरी शनि अमावस्या रहेगी।

गुरमीत बेदी ने बताया कि शनिचरी अमावस्या का प्रारंभ 3 दिसंबर 2021 को शाम 04:56 बजे से होगा और समाप्ति 04 दिसंबर को दोपहर 01:13 बजे होगी। इस तरह शनिचरी अमावस्या 4 दिसंबर को मनाई जाएगी। इस दिन संयोग से सूर्य ग्रहण भी है इसलिए इस अमावस्या का महत्व और बढ़ गया है। गुरमीत बेदी ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार शनि, सूर्य के पुत्र हैं लेकिन दोनों एक-दूसरे के विरोधी ग्रह भी हैं इसलिए शनि अमावस्या को सूर्य ग्रहण के समय ब्राह्मणों को पांच वस्तुओं का पंच दान सर्वाधिक लाभदायक होता है।

ये पांच वस्तुएं अनाज, काला तिल, छाता, उड़द की दाल, सरसों का तेल होती हैं। इन पांचों वस्तुओं के दान का महत्व होता है। इनके दान से परिवार की समृद्धि में वृद्धि होती है व शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। पंच दान से विपत्ति से रक्षा और पितरों की मुक्ति होती है। इस संयोग में सरसों का तेल दान करने से शनि का प्रभाव सदैव के लिए समाप्त हो जाता है।

गुरमीत बेदी ने बताया कि जिन जातकों पर शनि की साढ़े-साती या ढैया चल रही है, वे शनि अमावस्या पर अवश्य दान करें। सूर्य ग्रहण के समय पंच दान करने से उनके जीवन में शनि का प्रभाव समाप्त हो जाता है और शनि उन पर प्रसन्न होते हैं। पंच दान से प्रसन्न होकर सूर्य देव सर्व बाधाओं से मुक्ति व विपत्तियों से लड़ने की शक्ति प्रदान करते हैं।

गुरमीत बेदी के अनुसार शनिचरी अमावस्या पर पानी में गंगाजल या किसी पवित्र नदी के जल के साथ तिल मिलाकर नहाना चाहिए। ऐसा करने से कई तरह के दोष दूर होते हैं। शनिचरी अमावस्या पर पानी में काले तिल डालकर नहाने से शनि दोष दूर होता है। इस दिन काले कपड़े में काले तिल रखकर दान देने से साढ़ेसाती और ढैय्या से परेशान लोगों को राहत मिल सकती है। साथ ही एक लोटे में पानी और दूध के साथ सफेद तिल मिलाकर पीपल पर चढ़ाने से पितृदोष का असर भी कम होने लगता है।

बेदी ने बताया कि अमावस्या को धर्म ग्रंथों में  पर्व भी कहा गया है। यह वह रात होती है जब चंद्रमा पूर्ण रूप से नहीं दिखाई देता है। दिन के अनुसार पड़ने वाली अमावस्या के अलग-अलग नाम होते हैं। जैसे सोमवार को पड़ने वाले अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते हैं।

उसी तरह शनिवार को पड़ने वाली अमावस्या को शनि अमावस्या या शनिचरी अमावस्या भी कहते हैं। ज्योतिष ग्रंथों में बताया गया है कि शनिवार को पढ़ने वाली अमावस्या शुभ फल देती है। शनिचरी अमावस्या पर  तीर्थ स्नान और दान का कई गुना पुण्य फल मिलता है।  इस दिन पीपल के पेड़ की पूजा करने से कुंडली में मौजूद शनि दोष का प्रभाव कम हो जाता है।

-एजेंसियां