आगरा के बहुचर्चित पनवारी कांड में 35 दोषियों को पांच-पांच साल की सजा, हाईकोर्ट में देंगे चुनौती, 34 साल बाद आया फैसला

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आगरा: जिले में वर्ष 1990 के बहुचर्चित पनवारी कांड के दौरान कागारौल थाना क्षेत्र के अकोला में हुई जातीय हिंसा में शुक्रवार को विशेष एससी एसटी कोर्ट ने 35 दोषियों को पांच-पांच साल की सजा सुनाई। अदालत ने दो दिन पहले 35 आरोपियों को दोषी करार दिया था। सजा सुनाए जाने के बाद 32 को जेल भेज दिया गया। तीन दोषियों के कोर्ट में हाजिर नहीं होने पर गैर जमानती वारंट जारी किए गए। पंद्रह आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया। 34 साल चले इस मुकदमे में विचारण के दौरान 22 अभियुक्तों की मृत्यु हो गई थी।

अदालत ने शुक्रवार को सजा सुनाते हुए दोषियों को पांच-पांच साल का कठोर कारावास और प्रत्येक पर 41 हजार रुपये का जुर्माना लगाया। सुनवाई में धारा 147 (दंगा), 148 (हथियार से लैस होकर दंगा), 149 (गैरकानूनी सभा) और 310 के तहत सभी दोषियों को सजा सुनाई गई। सभी आरोपी अकोला क्षेत्र के निवासी हैं। कोर्ट के फैसले के बाद दोषियों के परिजनों में नाराजगी देखी गई और उन्होंने फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देने की बात कही। कोर्ट परिसर के बाहर फैसले को लेकर बड़ी संख्या में लोग जमा हो गए, यहां ऐहतियातन पुलिस बल तैनात किया गया था।

गौरतलब है कि थाना सिकंदरा क्षेत्र के गांव पनवारी में अनुसूचित जाति के युवक की बरात चढ़ाने के मुद्दे पर 21 जून, 1990 को जाट और जाटव समाज के लोगों के बीच संघर्ष हो गया था। अगले दिन पुलिस की मौजूदगी में बरात चढ़ाए जाने पर विवाद ने हिंसक रूप ले लिया। पुलिस के साथ पीएसी ने बल प्रयोग किया। फायरिंग में गोली लगने से सोनी राम जाट की मृत्यु हो गई थी।

इसके बाद आसपास के गांवों में हिंसा भड़क गई थी। 24 जून, 1990 को गांव अकोला में दोपहर एक बजे अनुसूचित जाति और जाट समाज के लोग आमने-सामने आ गए। डेढ़ घंटे तक हुए संघर्ष में एक महिला की मौत हो गई थी और 150 से अधिक घायल हुए थे। करीब 10 दिन तक कर्फ्यू लगा रहा और पुलिस के साथ सेना भी तैनात की गई थी। मामले में दो सौ से अधिक लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया था। विवेचना के बाद 72 आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज हुआ था।