भारत में 22% वयस्क कब्ज से पीड़ित, ये पांच है मुख्य कारण

Health

सैक्रेमेन्टो स्टेट हॉस्पिटल, कैलिफोर्निया में गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट डॉ. पाल मनिक्कम कहते हैं, “दुनिया की सारी बीमारियों की शुरुआत गट यानी हमारे पेट से होती है। कैंसर की भी। ये सबसे बड़ी, सबसे जरूरी बात है।”

इंडियन डाइटिक एसोसिएशन की एक स्टडी के मुताबिक भारत में हर 10 में से 7 व्यक्ति डायजेस्टिव इशुज का सामना कर रहा है, जिसमें कब्ज, डायरिया, इरिटेबल बाउल सिंड्रोम जैसी समस्याएं शामिल हैं। 2018 के गट हेल्थ सर्वे के मुताबिक भारत में 22% वयस्क कब्ज से पीड़ित हैं, जिनमें से 59% को गंभीर कब्ज की शिकायत है और 27% को कुछ अन्य बीमारियों से जुड़े कब्ज की शिकायत।

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित एक गट हेल्थ सर्वे के मुताबिक पूरी दुनिया में 21 फीसदी लोग कब्ज से पीड़ित हैं और मजे की बात ये है कि इसमें से 20 फीसदी अर्बन आबादी है, यानी शहरों में रहने वाले और मॉडर्न लाइफ स्टाइल फॉलो करने वाले लोग।

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के एंडोक्रोनॉलॉजी डिपार्टमेंट के विख्यात प्रोफेसर रॉबर्ट लस्टिग अपनी किताब फैट चांस की भूमिका में लिखते हैं- “आप अपनी सेहत को दुरुस्त रखने के लिए एक सौ वीडियो देख लें या दो सौ आर्टिकल पढ़ लें, नतीजा एक ही है। सेहत का सार सिर्फ इस बात में छिपा है कि हमारे गट यानी पेट की सेहत कितनी दुरुस्त है। हम क्या, कब और कैसे खाते हैं। बीमारी का कारण भोजन है और उसका इलाज भी वही। फूड ही मेडिसिन है।”

जाने-माने अमेरिकन नैचुरोपैथ डॉक्टर क्रिस्टोफर वैसी अपनी किताब है ‘फ्रीडम फ्रॉम कॉन्सटिपेशन- नैचुरल रेमेडीज फॉर डाइजेस्टिव हेल्थ’ में लिखते हैं, “किसी भी समस्या को एड्रेस करने के लिए दो चीजें जरूरी हैं। पहला ये समझना कि समस्या क्यों पैदा हुई यानी उसके कारण और दूसरा ये कि समस्या दूर कैसे होगी यानी उसका निवारण।”

वे लिखते हैं कि कब्ज या पेट से संबंधित 90 फीसदी विकार का कारण हमारी लाइफ स्टाइल में छिपा है। यानी हम जैसे जीते हैं, खाते हैं, पीते हैं, सोचते हैं, सोते-जागते, काम करते और दुनिया को समझते हैं, वही बुनियाद है शरीर के स्वस्थ या अस्वस्थ होने की।

कब्ज के कारणों की बात करें तो ये होता क्यों है, इसके पीछे कोई कॉॅम्प्लीकेटेड साइंस है या आपको मेडिसिन की ऐसी टर्मिनोलॉजी में ये बात समझाई जाएगी, जो बहुत आला दर्जे की साउंड करेगी तो ऐसा नहीं है।

मुख्य रूप से कब्ज होने के ये पांच कारण होते हैं-

1. भोजन में पर्याप्त फाइबर न होना

भोजन में फाइबर की मात्रा कम होना यानी पर्याप्त फल, सब्जियां, नट्स, सीड्स वगैरह न खाना। या जैसे हम हिंदुस्तानी खाते हैं, थोड़ी सी सब्जी के साथ ढेर सारी रोटियां।

2. रिफाइंड कार्ब

कार्ब दो तरह के होते हैं कॉम्प्लीकेटेड और रिफाइंड कार्ब। कॉम्प्लीकेटेड कार्ब हैं दालें, अनाज, मिलेट्स जैसे ज्वार, बाजारा, रागी, मूंग, चना वगैरह। और रिफाइंड कार्ब यानी मैदा और मैदे से बनी हरेक चीज, जो आपकी फेवरेट है। जैसे समोसा, चाट, मठरी, पापड़ी, नमकीन केक, पेस्ट्री, पेटीज वगैरह-वगैरह।

3. ग्लूटेन रिच फूड

ग्लूटेन यानी गेंहू और चावल खासतौर पर जब उसका छिलका उतारकर, उसे प्रॉसेस करके सॉफ्ट और चमकीला बना दिया जाए। ग्लूटेन में फाइबर की मात्रा बहुत कम होती है और ये आंतों में चिपकता है।

4. बैड फैट जैसे पाम ऑयल बेस्ड फैट, रिफाइंड ऑयल

फैट बुरा नहीं है, बैड फैट बुरा है। बहुत हाई टेंपरेचर पर प्रॉसेस किया गया पाम ऑयल या वेजीटेबल बेस्ड ऑयल आंतों में चिपकता है, लार्ज इंटेस्टाइन या जिसे हम बड़ी आंत कहते हैं, उसके हेल्दी बैक्टीरिया को मारता है और कब्ज करता है। इसके खतरों की लिस्ट काफी लंबी है।

5. सिडेंटरी लाइफ स्टाइल यानी दिन भर एक जगह बैठे रहना

एक्सरसाइज न करना, हाथ-पैर न हिलाना, शारीरिक श्रम न करना और दिन भर एक जगह बैठकर काम करते रहना कब्ज का बड़ा कारण है। आप कितना भी हेल्दी खाना खा लीजिए, अगर आपका फिजिकल मूवमेंट नहीं है तो खाना पचेगा नहीं। फिर कब्ज, ब्लोटिंग तो होनी ही है।

बात का सार ये है कि हमारे देश में हर 10 में से 7 व्यक्ति जो कब्ज से परेशान हैं, उनकी लाइफ स्टाइल खराब है। वो गलत खाना, गलत ढंग से और गलत समय पर खा रहे हैं। इस समस्या से निपटने के लिए उन्हें सिर्फ अपना फूड पैटर्न सुधारने की जरूरत है और वो सुधारने के लिए उन्हें जो करना होगा, उसे नीचे दिए गए प्वॉइंटर से समझिए।

कब्ज की बुनियाद है हमारा भोजन

ये पहला स्टेप है। यानी कब्ज की बुनियाद। अपने पेट में कुछ भी डालने से पहले सोचिए कि क्या ये आपके गट बैक्टीरिया के लिए सही है। इसलिए सबसे पहले अपने फूड पैटर्न को बदलिए।

पैकेज्ड फूड से दूर रहें

डॉ. पाल मनिक्कम कहते हैं कि हर वो चीज, जो आप सीधे पैकेट खोलकर अपने मुंह में डालते हैं, तो आप पैकेट नहीं फाड़ रहे होते, आप अपने पेट को फाड़ रहे होते हैं। यानी ये सारा रेडीमेड फूड जहर है।

इसलिए पैकेज्ड फूड से एकदम तौबा कर लें। ब्रेड, बिस्किट, नमकीन, पॉपकॉर्न या कोई भी चीज, जो सुपर मार्केट में रेडी टू ईट पैकेट में मिल रही है, उससे दूर रहें। रिफाइंड कार्ब यानी मैदे से दूर रहें। समोसा, ब्रेड पकौड़ा, जलेबी, पापड़ी चाट और गोलगप्पे सिर्फ हलवाई की दुकान से खरीदकर खाना खतरनाक नहीं है, घर पर बनाकर खाना भी उतना ही खतरनाक है।

ट्रांस फैट है खतरनाक

2018 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी जारी की कि पूरी दुनिया में 5 अरब लोगों पर ट्रांस फैट का खतरा मंडरा रहा है और 2023 तक इंडस्ट्रियली प्रोड्यूज्ड फूड में ट्रांस फैट के इस्तेमाल पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने का लक्ष्य रखा।

हम 2024 के मुहाने पर खड़े हैं और आपके नजदीकी पिज्जा स्टोर में इस वक्त ट्रांस फैट से बना पिज्जा, बर्गर, फ्राइज धड़ल्ले से बिक रहा है।

इसे लेकर दुनिया का हेल्थकेयर सिस्टम चिंतित है। थोड़ी चिंता अपनी सेहत की हम भी कर ही सकते हैं।

– एजेंसी


Discover more from Up18 News

Subscribe to get the latest posts sent to your email.