वो मुसलमान जिनके हज करने पर सऊदी अरब ने रोक लगा रखी है?

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दुनिया भर के लाखों मुसलमान हज के लिए हर साल सऊदी अरब पहुंचते है. पांच दिनों तक चलने वाली यह हज यात्रा हर मुसलमान के लिए बहुत महत्‍व रखती है. सऊदी अरब के मक्का शहर में काबा को इस्लाम में सबसे पवित्र स्थल माना जाता है. इस्लाम का यह प्राचीन धार्मिक अनुष्ठान दुनिया के मुसलमानों के लिए काफ़ी अहम है. अनुमान लगाया जा रहा है कि इस साल हज पर 20 लाख से ज़्यादा मुसलमान सऊदी अरब पहुंचेंगे.

इस्लाम के कुल पाँच स्तंभों में से हज पांचवां स्तंभ है. सभी स्वस्थ और आर्थिक रूप से सक्षम मुसलमानों से अपेक्षा होती है कि वो जीवन में एक बार हज पर ज़रूर जाएं.

दरअसल, इस्लाम के सभी अनुयायी ख़ुद को मुसलमान कहते हैं लेकिन इस्लामिक क़ानून (फ़िक़ह) और इस्लामिक इतिहास की अपनी-अपनी समझ के आधार पर मुसलमान कई पंथों या फ़िरक़ों में बंटे हैं. इन्हीं फ़िरक़ों में से एक हैं अहमदिया.

अहमदिया मुसलमानों की जो मान्यता है, उस वजह से दूसरे मुसलमान अहमदिया को मुसलमान नहीं मानते और सऊदी अरब ने उनके हज करने पर रोक लगा रखी है.

अगर वे हज करने के लिए मक्का पहुँचते हैं तो उनके गिरफ़्तार होने और डिपोर्ट होने का ख़तरा रहता है. बीबीसी की टीम एक ऐसे ही शख्स से मिली जिसने पिछले साल चोरी-छिपे हज यात्रा की.

डिपोर्ट होने का ख़तरा

बीबीसी को दिए इंटरव्यू में उन्होंने बताया, “हर समय आपके दिमाग़ में ये तो रहता ही है कि हज पर जाने में ख़तरा है लेकिन जब आप हज के लिए जा रहे हैं तो ये भी खुशी होती है कि अल्लाह के लिए वहाँ जा रहे हैं. आप को अल्लाह का भी साथ मिलता है कि वो तो जानते हैं कि मैं मुसलमान हूँ.”

ब्रिटेन की मैनचेस्टर स्थित दारुल उलूम मस्जिद के इमाम मोहम्मद कहते हैं, “कुछ देशों और संगठनों ने हमें ग़ैर मुसलमान घोषित किया है. ये उनकी राय है. इस वजह से ये थोड़ा पेचीदा हो जाता है. अहमदिया के लिए हज करना थोड़ा मुश्किल होता है इसलिए जब वो हज के लिए जाते हैं तो ज़्यादा चौकन्ना रहते हैं.”

इमाम मोहम्मद कहते हैं, “आम तौर पर लोग नहीं पूछते हैं कि आप किस फ़िरक़े से ताल्लुक रखते हैं. हम वहाँ किसी को परेशान नहीं करते, हम वहाँ की परिस्थितियां बदलने के लिए वहाँ नहीं जाते और किसी को नुकसान पहुँचाने का इरादा नहीं रखते.”

इमाम का मानना है कि इन सबके बावजूद अहमदिया मुसलमानों को डिपोर्ट (उनके देश वापस भेजना) किया जाता है. इमाम कहते हैं, “जिस क्षण वे किसी अहमदिया मुसलमान को डिपोर्ट करने का फ़ैसला करते हैं, आप पाएंगे कि अहमदिया मुसलमान किसी तरह का विरोध नहीं करेंगे क्योंकि हम भी देश का सम्मान करते हैं या उस देश का सम्मान करते हैं, जहाँ हम रहते हैं.”

मैनचेस्टर की इस मस्जिद में आने वाले कई लोग उन लोगों के बारे में जानते हैं जो हज यात्रा पर जा चुके हैं. मैनचेस्टर मस्जिद में आने वाली एक महिला कहती हैं, “मैं कभी हज पर नहीं गई, लेकिन मैं जाना पसंद करूँगी. मेरी दिल से ये इच्छा है, क्योंकि मैं अल्लाह को मानती हूँ. मैं उस पूरे आध्यात्मिक अनुभव को हासिल करना चाहती हूँ, जिसे दुनियाभर के लोग पाने की इच्छा रखते हैं.”

इसी मस्जिद में आने वाले एक और शख्स कहते हैं, “कभी-कभी लोगों को खुलेआम कुछ करने से रोका जाता है लेकिन भावनाएं बढ़ती जाती हैं और आप पाएंगे कि अहमदिया मुसलमानों में हज जाने की इच्छा बहुत अधिक होती है.”

कौन हैं अहमदिया मुसलमान

हनफ़ी इस्लामिक क़ानून का पालन करने वाले मुसलमानों का एक समुदाय अपने आप को अहमदिया कहता है. इस समुदाय की स्थापना भारतीय पंजाब के क़ादियान में मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद ने की थी.

इस पंथ के अनुयायियों का मानना है कि मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद ख़ुद नबी का ही एक अवतार थे.

उनके मुताबिक़ वे खुद कोई नई शरीयत नहीं लाए बल्कि पैग़म्बर मोहम्मद की शरीयत का ही पालन कर रहे हैं लेकिन वे नबी का दर्जा रखते हैं. मुसलमानों के लगभग सभी संप्रदाय इस बात पर सहमत हैं कि मोहम्मद साहब के बाद अल्लाह की तरफ़ से दुनिया में भेजे गए दूतों का सिलसिला ख़त्म हो गया है लेकिन अहमदियों का मानना है कि मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद ऐसे धर्म सुधारक थे जो नबी का दर्जा रखते हैं.

बस इसी बात पर मतभेद इतने गंभीर हैं कि मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग अहमदियों को मुसलमान ही नहीं मानता. हालांकि भारत, पाकिस्तान और ब्रिटेन में अहमदियों की अच्छी ख़ासी संख्या है. पाकिस्तान में तो आधिकारिक तौर पर अहमदियों को इस्लाम से ख़ारिज कर दिया गया है.

-BBC