बच्चे की परवरिश से जुड़ी जिम्मेदारी और सामने आने वाली परेशानियां…

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कामकाजी दंपतियों के लिए नवजात बच्चों की परवरिश बेहद मुश्किल भरी होती है। अक्सर ऐसे लोग बच्चों की देखभाल के लिए मेड रख लेते हैं, लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक बच्चों को अपनों का प्यार भरा स्पर्श मिलना बेहद जरूरी है।

यही कारण है कि समाजशास्त्री बच्चों की देखभाल के लिहाज से संयुक्त परिवार को सबसे बेहतर मानते हैं।

एकल परिवार में रह रहे कामकाजी दंपती भी मानते हैं कि बच्चा होने के बाद उसकी देखभाल के लिए उन्हें शुरुआती कई साल संघर्ष करना पड़ा। बच्चों को नानी या दादी के पास छोड़ना पड़ा या मेड रखनी पड़ी। इसके उलट संयुक्त परिवार में रह रहे कामकाजी दंपतियों को ऐसी परेशानी पेश नहीं आई। समाजशास्त्री रामगणेश यादव के मुताबिक जब पति-पत्नी दोनों जॉब में हों तो बच्चे की देखभाल जिस तरह परिवार के सदस्य कर सकते हैं, उस तरह मेड नहीं कर सकती।

वर्क प्लेस पर हों डे केयर सेंटर

एकल परिवार के बढ़ते चलन के बीच दफ्तरों में बच्चों के लिए डे केयर सेंटर की जरूरत तेजी से बढ़ रही है। महिलाएं यहां बच्चों को छोड़कर अपना काम कर सकती हैं। हालत यह है कि 90% संस्थानों में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। पहले बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय और लखनऊ विश्वविद्यालय में ऐसे सेंटर थे लेकिन अब बंद हो चुके हैं।

आजकल महिलाएं भी वर्किंग होती हैं, ऐसे में बच्चे की परवरिश के लिए घर के अन्य सदस्यों का मौजूद रहना जरूरी है, जो ज्यादातर केसेज में नहीं हो पाता है लेकिन संयुक्त परिवार में इस तरह की समस्याएं कम होती हैं। साथ ही पति-पत्नी दोनों को बराबर का काम बांटना चाहिए। आखिर बच्चे का दायित्व दोनों का ही है। इन लोगों की बात से समझें, बच्चे की परवरिश से जुड़ी जिम्मेदारी और सामने आने वाली परेशानियां…

बच्चा पहले नानी के पास रहा, फिर मेड रखी

डॉ. यूवी किरण बीबीएयू में होमसाइंस विभाग की हेड हैं। उन्हें दस साल पहले बेटा हुआ। तब वह बीबीएयू जॉइन कर चुकी थीं। पति इलाहाबाद में जॉब करते थे। बकौल किरण, उन हालात में सबसे बड़ी दिक्कत थी कि बच्चे की देखभाल कैसे करें।

आखिरकार बच्चे को शुरुआत के दो से तीन साल के लिए नानी के यहां छोड़ना पड़ा। इसके बाद भी मेड रखनी पड़ी, जो दिन में बच्चे की देखरेख करती थी। इसके बावजूद उन्हें हर घंटे फोन कर पूछना पड़ता था कि बच्चे को कोई दिक्कत तो नहीं हुई।

दिन में पिता-दादी का दुलार, शाम को मां का प्यार

विनीता दीक्षित आर्यकुल डिग्री कॉलेज में शिक्षिका हैं। साल 2011 में उनकी बेटी पीहू हुई। छह महीने छुट्टी के बाद उन्होंने दोबारा कॉलेज जॉइन किया। विनीता बताती हैं कि इसके बाद उन्होंने और उनके पति ने काम बांट लिया। वह सुबह जल्दी कॉलेज जाती थीं तो पति बच्ची का खयाल रखते थे। वह सुबह 11 से 12 बजे तक निकलते थे। इसके बाद सास या ननद बच्ची की देखरेख करती थीं। फिर दोपहर बाद विनीता खुद घर पहुंच जाती थीं। ऐसे में बच्ची की देखभाल में कोई दिक्कत नहीं हुई।

-एजेंसियां