नींद में चलने यानी स्लीप-वॉकिंग की बीमारी आखिर है क्‍या?

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आपने भी कई बार लोगों को नींद में चलते देखा होगा या उनके बारे में सुना होगा। दरअसल, बड़ों की तुलना में बच्चों में नींद में चलने यानी स्लीप-वॉकिंग की बीमारी ज्यादा देखने को मिलती है। क्या है इसकी वजह और इलाज, यहां जानें इसके बारे में सब-कुछ।

रोमा की सात साल की बेटी सुहानी को नींद में चलने की आदत है। पिछले कई महीनों से रोमा ने ध्यान देने पर यह पाया है कि सुहानी रात का वक्त हो या दिन का सोते-सोते उठ जाती है। कुछ बड़बड़ाती है, इशारे करती है और चलने लगती है। ऐसा प्रतिदिन नींद के दौरान नहीं होता पर महीने में दो-तीन बार ऐसा देखने में आता है। खासकर तब जब उसके स्कूल के एग्जाम्स चल रहे हों।

बड़ों की तुलना में बच्चों में अधिक होती है स्लीप-वॉकिंग की दिक्कत

सुहानी जिस समस्या से ग्रस्त है, उसे स्लीप-वॉकिंग या सोम्नैम्बुलिज्म कहा जाता है। बच्चों में यह रोग बड़ों की तुलना में कहीं अधिक देखने को मिलता है। विशेष रूप से कई लोग जो कम नींद ले पा रहे होते हैं, उनमें स्लीप-वॉकिंग की आशंका बढ़ जाती है। स्लीप-वॉकिंग में हमेशा रोगी चलता ही नहीं है। अनेक बार वह उठकर केवल बैठा रहता है, इधर-उधर देखता है, तरह-तरह के इशारे करता है या बड़बड़ाता भी है। बहुत बार वह कमरे के भीतर चला करता है लेकिन कई बार इस रोग से प्रभावित रोगी घर से बाहर निकल कर दूर तक भी जाते देखे जाते हैं। जाहिर है कि ऐसी स्थिति में इस रोग से ग्रस्त रोगी को हानि पहुंचने की आशंका बढ़ जाती है।

अपनी हरकतों का बोध नहीं रहता बीमार व्यक्ति को

इंसान की नींद दो तरह की होती है-नॉन रेम नींद और रेम नींद। रातभर इन दोनों नींद के अनेक चक्र चला करते हैं। स्लीप-वॉकिंग का रोग गहरी नॉन रेम नींद में देखने को मिलता है। नींद में उठ बैठे, बड़बड़ाते और चलते इस व्यक्ति को बाद में अपनी हरकतों का बोध नहीं रहता। कई बार चलते-चलते रोगी किसी स्थान पर मलमूत्र का त्याग भी कर देता है। वह दुःस्वप्न देखते हुए चीख भी सकता है और कभी-कभी सामने वाले पर आक्रमण भी कर सकता है।

स्लीप-वॉकिंग करने वाले को जगाना है जरूरी

इस रोग से पीड़ित रोगी को स्लीप-वॉकिंग के दौरान उठाया जाना चाहिए। उसे जगाना चाहिए क्योंकि न जगाने से वह अपना और सामने वाले का अहित भी कर सकता है। नींद का कम मिल पाना, नशीले पदार्थों का सेवन, बुखार इत्यादि पैदा करने वाले रोग, कुछ दवाएं स्लीप-वॉकिंग की परिस्थिति पैदा कर सकती हैं। बच्चों में यह समस्या बड़ों से अधिक मिलती है। कई बार जो बच्चे स्लीप-वॉकिंग करते हैं, वे बिस्तर पर यूरिनेट भी कर देते हैं।

स्लीप-स्पेशलिस्ट से करवाएं बीमारी का इलाज

इस बीमारी के इलाज के लिए किसी स्लीप-स्पेशलिस्ट से संपर्क करना चाहिए। बच्चे बड़े होने पर अनेक बार इस रोग से खुद ही मुक्त हो जाते हैं लेकिन फिर भी बच्चों-बड़ों सभी रोगियों में इस समस्या के मूल में जो भी वजह हो, उसके उपचार का प्रयास करना चाहिए। यदि रोगी को नींद कम मिल रही हो तो उसे अधिक सोने का प्रयास करना चाहिए।

हिप्नोसिस व कई बार दवाओं के प्रयास से भी स्लीप-वॉकिंग के उपचार में सफलता मिलती है। यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि स्लीप-वॉकिंग करने वाले रोगी पर लगातार निगरानी रखी जाए, ताकि न तो वह स्वयं घायल हो और न उसके कारण किसी अन्य को कोई क्षति पहुंचे।

-एजेंसियां