केवल किसानों को ही कर्जमाफी क्यों… सभी के 10 लाख रुपये तक के कर्ज माफ हों

अन्तर्द्वन्द

पहले तो आपको बता दूँ कि मैं किसानों का विरोधी नहीं हूँ क्योंकि स्वयं किसान पुत्र हूँ। किसानों के दुख-दर्द को समझता हूँ। मैंने खेत में बुवाई, निराई, गुड़ाई, फसल कटाई की है। दांय भी हांकी है, अब तो थ्रेसर से अनाज निकाला जाता है। तब खेती कष्टसाध्य हुआ करती थी। अब तो खेती यांत्रिक हो गई है। शारीरिक श्रम न्यूनतम होता है। आजकल किसान नहीं, गैर किसान बैल की तरह काम करते हैं। किसान अन्न उगाते हैं इसलिए अन्नदाता कहलाते हैं। वे इस अन्न को बेचकर अपना घर चलाते हैं। अन्न को गैर किसान और सरकार खरीदती है। इसलिए किसान, गैर किसान और सरकार का ‘दही-बूरा’ जैसा संबंध है। मतलब साथ-साथ हैं, तभी मौज है।

अब आता हूँ असली मुद्दे पर। देश में पांच राज्यों गोवा, मणिपुर, पंजाब, उत्तराखंड में मार्च, 2022 तक और उत्तर प्रदेश में मई, 2022 तक विधानसभा चुनाव होने हैं। उत्तर प्रदेश तो संसद के दिल की तरह है क्योंकि लोकसभा की 85 सीटें हैं। संसदीय चुनाव में क्या होगा, यह विधानसभा चुनाव के परिणामों पर निर्भर करेगा। इसी कारण भाजपा, सपा, बसपा, रालोद, कांग्रेस समेत छुटमुल्ले राजनीतिक दलों ने पूरी शक्ति लगा रखी है। बिजली बिल माफ करने, स्कूटी, लैपटॉप, स्मार्ट फोन किसान सम्मान निधि बढ़ाने, धान और गेहूं का समर्थन मूल्य 2500 रुपये प्रति क्विंटल करने, गन्ना मूल्य बढ़ाने, फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य दोगुना करने जैसे वादे हैं। मेरा मानना है कि फसल की लागत का दोगुना मूल्य किसानों को मिलना चाहिए। वैसे यह भी ध्यान देने की बात है कि समर्थन मूल्य बढ़ता है तो उसका बोझ गैर किसान उठाते हैं, जिसके लिए हम सहर्ष तैयार हैं।

अभी किसान कर्जमाफी की आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है। चुनाव घोषणा के बाद प्रत्येक दल किसानों के कर्ज माफ करने की घोषणा अनिवार्य रूप से करेगा। किसान कर्जमाफी राजनीतिक दलों का चुनाव समर को विजित करने के लिए अमोघ अस्त्र है। किसान संगठन हर बार कर्जमाफी की मांग करते हैं। राजनेता भी तत्काल मांग पूरी करते हैं। बाकी लोग टापते रहते हैं। बड़े उद्योगपतियों को हजारों करोड़ रुपये का बैंक कर्ज भी माफ किया जाता है। यह काम होता है ‘सेटलमेंट’ के नाम पर। हमारे देश के बैंक भी क्या खूब हैं। कुछ लोगों को हजारों करोड़ का लोन देते हैं, कुछ सैकड़ा करोड़ लेकर मामला सेटल कर लेते हैं। जो लोग बैंक से दो-चार लाख रुपये का लोन लेते हैं, उनकी एक किस्त भी रुक जाए तो लट्ठ लेकर पीछे पड़ जाते हैं.

सभी राजनीतिक दलों के केन्द्र में अमीर, किसान और गरीब हैं। नहीं हैं तो कोरोना काल में नौकरी गंवाने वाले, ऋण लेकर स्वरोजगार शुरू करने वाले। नौकरी गई तो मिली नहीं। मिली भी तो मानदेय इतना कम कि परिवार चलना मुश्किल।

अधिकांश के स्वरोजगार इस लायक नहीं चल पाए कि खर्चा निकाल सकें। मेरा कहना यह है कि सभी राजनीतिक दल नौकरी गंवाने वाले और बैंक से लोन लेकर स्वरोजगार शुरू करने वालों की माली हालत पर भी ध्यान दें। यह ऐसा वर्ग है जो अपने कष्टों को रोना नहीं रोता है। जैसे शिव जी ने विष को गले में धारण कर लिया, उसी तरह से यह वर्ग अपने कष्ट हृदय में रखता है। इस वर्ग के पास अपना मकान, दुकान, कार और अन्य सुविधाएं हैं लेकिन नियमित आय नहीं है। परिणाम यह है कि तिल-तिलकर मर रहा है। एक सीमा तक मित्रगण मदद करते हैं। अधिकांश मित्रों की हालत भी दयनीय है। अब ऐसा समय है कि देश के प्रत्येक नागरिक का 10 लाख रुपये तक का ऋण माफ किया जाए भले ही उसने अब तक कितनी ही किस्तें जमा कर दी हों या एक भी नहीं की हो। इसमें कोई अमीरी या गरीबी न देखी जाए। किसानों के साथ यह वर्ग वोट के हिसाब से भी महत्वपूर्ण है। इनकी संख्या छोटी न मानी जाए। कम से कम उत्तर प्रदेश में तो यह काम तत्काल होना चाहिए।

कोरोना संक्रमण के कारण बीमारी के बाद स्वस्थ हुए लोग भी दर्दनाक हालात में हैं। रोजगार गया और घर के आभूषण भी गिरवीं रखे हुए हैं। जेवर छुड़ाने का कोई इंतजाम नहीं है। किस्तें भी नहीं भर पा रहे हैं। आखिर इनकी मदद कौन करेगा? मेरी कई पीड़ितजनों से बात हुई। कहते हैं- ‘अच्छा होता कोरोना जान ले लेता। घर वालों को कुछ तो मिलता। जीवित रहकर घर पर बोझ की तरह हो गए हैं।’

मैं पूछता हूँ इनकी मदद कौन करेगा? इनके कर्ज की किस्तें कौन भरेगा? क्या इनकी कमी यह है कि ये किसान नहीं हैं? क्या गैर किसान देश की जीडीपी में कोई सहयोग नहीं करते हैं? किसान सम्मान निधि ही क्यों? व्यापारी सम्मान निधि, बेरोजगार सम्मान निधि, महिला सम्मान निधि, विद्यार्थी सम्मान निधि, उद्यमी सम्मान निधि, पत्रकार सम्मान निधि, ऋणधारक सम्मान निधि क्यों नहीं? मैं आग्रह करूंगा समाजसेवियों, सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं, जनहित याचिका दायर करने वालों से कि सरकार पर दबाव बनाएं। भले ही कोर्ट से निर्देश दिलाएं लेकिन हर किसी के 10 लाख रुपये तक के लोन माफ कराएं। अपने राजनीतिक दलों के मित्रों से भी निवेदन है कि पार्टी के नीति निर्धारकों पर दबाव बनाएं। भाजपा की यूपी चुनाव घोषणा समिति में शामिल श्री बृजलाल (सांसद) से मैंने आग्रह किया है कि वे गैर किसानों के 10 लाख रुपये तक के लोन माफ कराएं। बैंक कर्जदारों को ब्याज में हजारों करोड़ रुपये का लाभ दिलाने वाले श्री गजेन्द्र शर्मा (प्राइम ऑप्टिकल, आगरा) से अनुरोध है कि एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाकर राहत दिलाएं।

डॉ. भानु प्रताप सिंह
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)