आगरा: देश भर में अमन चैन का सन्देश देने वाली बकरीद (ईद उल अजहा की नमाज) आगरा में भी कड़ी सुरक्षा और कोविड प्रोटोकल के साथ मनाई गयी। सबसे पहले आगरा की ईदगाह मस्जिद में मुस्लिम भाइयों ने नमाज अदा की और देश में अमन चैन और सौहार्द बनाये रखने और कोरोना के जल्द खात्मे की खुदा से दुआ की।
आगरा के सभी प्रमुख मस्जिदों में सबसे पहले ईदगाह पर ही नमाज अदा की जाती है। कोरोना के चलते इस बार नमाज अदा करने के लिए सीमित लोग ही पहुँचे। प्रशासन ने भी सिर्फ 50 लोगों को ही एक साथ नमाज अदा करने की अनुमति दी थी। अधिकतर लोगों ने अपने घरों में परिवार के साथ ही नमाज की। ईदगाह मस्जिद पहुँचे लोगों ने एक दूसरे को ईद की मुबारकबाद दी।
ईद-उल-अजहा का अर्थ त्याग वाली ईद है। इस दिन जानवर की कुर्बानी देना एक प्रकार की प्रतीकात्मक कुर्बानी है। मान्यता है कि इब्राहम ने एक स्वप्न देखा था जिसमें खुदा उनसे कुछ कुर्बानी की बात कहते है तो वो सोचते हैं कि उनके पास तो कुछ भी नहीं तभी वो स्वप्न में अपने बेटे इस्माइल को कहते हुए नजर आते हैं कि बस तुम ही हो मेरे पास, क्या खुद की राह में तुम कुर्बान होने को तैयार हो। पिता की इस बात को इस्माइल ने माना और हंसते-हंसते पिता की बात मानकर कुर्बान होने को तैयार हो गए लेकिन कुर्बानी के समय खुदा अपने फरिस्तों को भेजकर इस्माइल की एक जगह एक जानवर की कुर्बानी कर देते हैं। बस तभी से कुर्बानी की ये परम्परा चली आ रही है और लोग ईद उल जुहा के अवसर पर बकरे की कुर्बानी देते हैं।
इस्लामिया लोकल एजेंसी के चैयरमैन अशलम कुरैशी ने बताया कि मीठी ईद के करीब 70 दिन बाद बकरीद मनाई जाती है। बकरीद को ईद-उल-अजहा या ईद-उल-जुहा भी कहा जाता है। बकरीद लोगों को सच्चाई की राह में अपना सबकुछ कुर्बान कर देने का संदेश देती है। ईद-उल-अजहा को हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है।
इस दौरान कांग्रेस शहर अध्यक्ष देवेंद्र सिंह चिल्लू भी ईदगाह मस्जिद पहुँचे। उन्होंने भी सभी मुस्लिम भाइयों से मुलाकात की और सभी को ईद की मुबारक बाद दी। उनका कहना था कि कुर्बानी का यह पर्व भी हमें सर्वधर्म सद्भाव का संदेश देता है।
ईद को लेकर ईदगाह मस्जिद पर भारी संख्या में पुलिसबल तैनात किया गया था। कड़ी सुरक्षा के बीच लोगों ने ईदगाह मस्जिद में नमाज अदा की और उसके बाद सीधे अपने घरों को रवाना हुए। कोरोना को देखते हुए किसी को भी एकत्रित होने की अनुमति नही थी।