आखिर क्या है यह ईटिंग डिसऑर्डर और इसके लक्षण एवं कारण?

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हाल ही में एक स्टडी आई है जिसमें ईटिंग डिसऑर्डर के शुरुआती चेतावनी के संकेतों के बारे में बताया गया है। आखिर क्या है यह ईटिंग डिसऑर्डर और इसके इलाज, लक्षण एवं कारण?

हम सभी की खाने-पीने की आदतें काफी अलग होती हैं। कई लोग हेल्दी खाने को तरजीह देते हैं तो कई लोग बढ़ते मोटापे या वजन को लेकर इतना सजग होते हैं कि इन्हें कम करने के लिए कुछ अलग खान-पान संबंधी आदतें अपना लेते हैं। अब इनकी वजह से वजन और मोटापा तो कम हो जाता है लेकिन इससे सेहत पर बुरा असर पड़ता है। इन्हीं आदतों को ईटिंग डिसऑर्डर यानि खान-पान से जुड़ी बीमारी कहा जाता है।

यह एक तरह का मेंटल डिसऑर्डर होता है, जिसमें व्यक्ति कभी तो जरूरत से भी ज्यादा खाता है तो कभी बहुत ही कम खाता है। इतना कम कि उसका वजन कम हो जाता है और बॉडी मास भी घट जाता है, जिसकी वजह से वह एनोरेक्सिया नर्वोसा का शिकार हो जाता है। एक रिसर्च के अनुसार एनोरेक्सिया के मरीजों का दिमाग बाकी लोगों की तुलना में कुछ अलग तरीके से व्यवहार करता है और कुछ लोग जन्म से ही इस बीमारी की संभावना के साथ पैदा होते हैं। कई लोग तो शरीर में मौजूद कैलोरी को घटाने के लिए हानिकारक तरीकों का सहारा लेते हैं, जिससे बुरा असर पड़ता है।

ईटिंग डिसऑर्डर के कारण

ईटिंग डिसऑर्डर होने के मुख्य कारणों का तो अभी तक पता नहीं चल पाया है लेकिन माना जाता है कि यह स्थिति जैविक और वातावरण संबंधी कारकों की वजह से होती है।

एक शोध के अनुसार एनोरेक्सिया और बुलिमिया नाम की खान-पान संबंधी बीमारी पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में 10 गुना अधिक होती है।

एनोरेक्सिया नर्वोसा के लक्षण

एनोरेक्सिया नर्वोसा से पीड़ित व्यक्ति के अंदर हर वक्त इस बात का डर रहता है कि कहीं उसका वजन तो नहीं बढ़ रहा। इस चक्कर में वह कम खाना शुरू कर देता है। नतीजा यह होता है कि वक्त के साथ उसका बॉडी वेट और मास कम हो जाता है। कमजोरी और चक्कर आने लगते हैं, हड्डियां दिखने लग जाती हैं और पीड़ित व्यक्ति कई बार खुद को बैंलेंस नहीं कर पाता। यह बात भी समझने की जरूरत है कि जो लोग बचपन में मोटापे का शिकार हो जाते हैं उनमें एनोरेक्सिया नर्वोसा का शिकार होने के चांस अधिक होते हैं।

बुलीमिया नर्वोसा के लक्षण

वहीं बुलीमिया नर्वोसा में व्यक्ति जरूरत से ज्यादा खाता है और हमेशा अपने वजन को लेकर चिंतित रहता है। ऐसे लोग कई बार खाने-पीने के मामले में परहेज करते हैं, लेकिन वजन कम नहीं हो पाता और न ही वे अपने खान-पान को कंट्रोल कर पाते हैं। एनोरेक्सिया और बुलीमिया आमतौर पर 15 वर्ष की उम्र से शुरू हो जाता है।

ईटिंग डिसऑर्डर से बचाव

1- इस स्थिति से बचने के लिए रोजाना तीनों वक्त का खाना खाएं और वह पौष्टिक हो। सही समय पर ब्रेकफस्ट, लंच और डिनर करें।

2- दही, फ्रूट्स, छाछ के अलावा हरी पत्तेदार सब्जियां और फल खाएं। अगर एकदम से खाने-पीने में दिक्कत आ रही हो तो फिर धीरे-धीरे शुरू करें। जैसे कि ब्रेकफास्ट न करने का मन हो तो एक रोटी खा लें। इसी तरह लंच और डिनर भी थोड़ी-थोड़ी मात्रा में करें। धीरे-धीरे इस मात्रा को सामान्य करने की कोशिश करें। ऐसा करने से आपको सही खान-पान की आदत हो जाएगी।

3- एनोरेक्सिया से पीड़ित इंसान के लिए खाना मुश्किल हो जाता क्योंकि वह किसी भी चीज के तात्कालिक सुख को महसूस नहीं कर पाता। ऐसा व्यक्ति खाने का स्वाद भूल सा जाता है और इस चक्कर में कुछ भी खाता रहता है। इस समस्या से निपटने के लिए डॉक्टर से मिलें और दिए गए दिशा-निर्देश का पालन करे।

4- नियमित तौर पर थोड़ी मात्रा में कुछ हेल्दी खाने की आदत डालें।

5- कई लोग दोस्तों और अन्य लोगों के प्रेशर में आकर खाना-पीना छोड़ देते हैं। ऐसा बिल्कुल भी न करें। लोगों की बातों पर ध्यान न दें और एक हेल्दी लाइफस्टाइल फॉलो करें।

6- जब भूख लगे तब खाएं। जबरदस्ती भूखा न रहें। सही वक्त पर खाएं। ऐसा करने से न सिर्फ खान-पान संबंधी बीमारी दूर हो जाएगी बल्कि आप हेल्दी भी हो जाएंगे।

ईटिंग डिसऑर्डर का इलाज

ईटिंग डिसऑर्डर का इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्ति में खान-पान संबंधी बीमारी किस तरह की है और उसका लेवल क्या है। ईटिंग डिसऑर्डर के लिए कई तरह की थैरेपी दी जाती हैं, जिनमें आर्ट थैरेपी, रिक्रिएशन थैरेपी और म्यूजिक थैरेपी प्रमुख हैं। इसके अलावा बिहेवियरल थैरेपी, कॉग्निटिव रेमेडिएशन थैरेपी, फैमिली थैरेपी और इंटरपर्सनल सायकोथैरेपी भी की जाती हैं।

(ध्यान दें: ईटिंग डिसऑर्डर से पीड़ित व्यक्ति को इन थैरेपी को लेने से पहले डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए और पूरा ट्रीटमेंट करवाना चाहिए।)

हाल ही में एक स्टडी आयी है जिसमें ईटिंग डिसऑर्डर के शुरुआती चेतावनी के संकेतों के बारे में बताया गया है। ब्रिटिश जर्नल ऑफ सायकायट्री में प्रकाशित इस स्टडी में उन शुरुआती चेतावनी संकेतों के बारे में बताया गया है जिनसे यह पता चल सकता है कोई व्यक्ति ईटिंग डिसऑर्डर यानी खान-पान की बीमारी से पीड़ित है या नहीं।

-एजेंसियां