अष्ठानिका पर्व के रूप में मनाया जाता है पर्यूषण पर्व, सामूहिक क्षमापना पर्व 12 को

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श्वेतांबर जैन (Shwetambar Jain) अनुयायी पर्यूषण पर्व को अष्ठानिका पर्व के रूप में भी मनाते हैं, पर्युषण महापर्व की आराधना के दौरान 4 सितंबर को प्रभु की अंग रचना, 5 सितंबर को पौथा जी का वरघोड़ा निकाला जाएगा, 6 सितंबर को कल्पसूत्र प्रवचन होगा, 7 सितंबर को भगवान महावीर स्वामी का जन्म वाचन पर्व मनाया जाएगा, 8 सितंबर को प्रभु की पाठशाला का कार्यक्रम, 9 सितंबर को कल्पसूत्र वाचन, 10 सितंबर को बारसा सूत्र दर्शन, प्रवचन चैत्य परिपाटी, संवत्सरी प्रतिक्रमण आदि कार्यक्रम होंगे। सामूहिक क्षमापना पर्व 12 सितंबर को मनाया जाएगा तथा इस पर्व समा‍प्ति हो जाएगी।

इस अवसर व्रतधारी तपस्वियों का पारणा, तत्पश्चात जुलूस तथा स्वामिवात्सल्य होगा। इन 8 दिनों के पर्युषण पर्व के दौरान जैन अनुयायी धार्मिक ग्रंथों का पाठ करेंगे, प्रवचन सुनेंगे तथा इसके साथ ही व्रत, तप और आराधना करके अपनी क्षमतानुसार दान-पुण्य करेंगे। इसके बाद दिगंबर जैन समाज के अनुयायी दसलक्षण पर्व मनाएंगे।

अष्ठानिका पर्व के रूप में मनाया जाता है पर्यूषण

दस दिन चलने वाले इस पर्व में प्रतिदिन धर्म के एक अंग को जीवन में उतारने का प्रयास किया जाता है, इसलिए इसे दसलक्षण पर्व भी कहा जाता है. इन खास दिनों में पूजन, प्रार्थना, पक्षाल, अंतगड़ दशासूत्र वाचन एवं अष्ठानिका प्रवचन, शाम को प्रतिक्रमण और रात्रि में प्रभु भक्ति एवं भगवान की आंगी रचाई जाएगी.

श्वेतांबर जैन (Shwetambar Jain) अनुयायी पर्यूषण पर्व को अष्ठानिका पर्व के रूप में भी मनाते हैं. जिन दस धर्मों की आराधना की जाती है वे इस प्रकार हैं:-

उत्तम क्षमाः हम उनसे क्षमा मांगते है जिनके साथ हमने बुरा व्यवहार किया हो और उन्हें क्षमा करते है जिन्होंने हमारे साथ बुरा व्यवहार किया हो.

उत्तम मार्दवः धन, दौलत, शान और शौकत इंसान को अहंकारी बना देता है. ऐसा व्यक्ति दूसरों को छोटा और अपने आप को सर्वोच्च मानता है. यह सब चीजें नाशवंत है. सभी को एक न एक दिन जाना है, तो फिर परिग्रहों का त्याग करें और खूद को पहचानें.

उत्तम आर्जवः हम सब को सरल स्वभाव रखना चाहिए. कपट को त्याग करना चाहिए. कपट के भ्रम में जीना दूखी होने का मूल कारण है. आत्मा ज्ञान, खुशी, प्रयास, विश्वास जैसे असंख्य गुणों से सिंचित है. उत्तम आर्जव धर्म हमें सिखाता है कि मोह-माया, बूरे काम सब को छोड़कर सरल स्वभाव के साथ परम आनंद मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं.

उत्तम शौचः किसी चीज की इच्छा होना इस बात का प्रतीक है कि हमारे पास वह चीज नहीं है. बेहतर है कि जो आपके पास है उसके लिए परमात्मा का शुक्रिया अदा करें. उसी में काम चलायें. उत्तम शौच हमें यही सिखाता है कि शुद्ध मन से जितना मिला है उसी में खूश रहो. आत्मा को शुद्ध बनाकर ही परम आनंद मुमकिन है.

उत्तम सत्यः झूठ बोलने से बूरे कामों में बढ़ोतरी होती है. उत्तम सत्य हमें यही सिखाता है कि आत्मा की प्रकृति जानने के लिए सत्य आवश्यक है. इसके आधार पर ही परम आनंद मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है.

उत्तम संयमः पसंद, नापसंद, गुस्से का त्याग- इन सब से छुटकारा तब ही मुमकिन है, जब अपनी आत्मा को प्रलोभनों से मुक्त करेंगे और स्थिर मन के साथ संयम रखें. इसी राह पर चलकर परम आनंद मोक्ष की प्राप्ति मुमकिन है.

उत्तम तपः तप का मतलब उपवास करना ही नहीं है बल्कि तप का असली मतलब है कि इन सब क्रिया के साथ अपनी इच्छाओं और ख्वाहिशों को वश में रखना है. ऐसा तप अच्छे गुणवान कर्मों में वृद्धि करते हैं.

उत्तम त्यागः जीवन को संतुष्ट बनाकर अपनी इच्छाओं को वश में करना ही उत्तम त्याग है. ऐसा करने से पापों का नाश होता है. छोड़ने की भावना जैन धर्म (Jain Religion) में सबसे अधिक है.

उत्तम आकिंचन्यः यह हमें मोह का त्याग करना सिखाता है. दस शक्यता हैं, जिसके हम बाहरी रूप में मालिक हो सकते हैं- जमीन, घर, चांदी, सोना, धन, अन्न, महिला नौकर, पुरुष नौकर, कपड़े और संसाधन. इन सब का मोह नहीं रखना चाहिए.

उत्तम ब्रह्मचर्यः ब्रह्मचर्य हमें सिखाता है कि उन परिग्रहों का त्याग करना, जो हमारे भौतिक संपर्क से जुड़ी हुई हैं. ब्रह्मचर्य का मतलब अपनी आत्मा में रहना है. ऐसा न करने पर आप सिर्फ अपनी इच्छाओं और कामनाओं के गुलाम रहेंगे.

-धर्म शक्ति