पिता मज़दूर, मां दृष्टिहीन, खुद शत-प्रतिशत बहरे। ये राजस्थान के जिला अलवर के गांव बदनगढ़ी के निवासी मनीराम शर्मा। मनीराम शर्मा आज एक प्रतिष्ठित आईएएस अधिकारी हैं। यह कहानी है जिजीविषा की, यह कहानी है संयम की, यह कहानी है लगन की, मेहनत की, दृढ़ निश्चय की। यह कहानी है दुनिया जीतने के लिए निकले उस नन्हे बच्चे की जिसने विपरीत परिस्थितियों से दोस्ती कर ली और अंतत: अपना लक्ष्य पा लिया।
मनीराम शर्मा के पिता गांव में मजदूरी करते थे, मां दृष्टिहीन हैं। वे खुद शत-प्रतिशत बहरेपन की गिरफ्त में रहे। वे जब 9 साल के थे तो उनकी सुनने की क्षमता खत्म हो गई। पढ़ने के लिए रोज़ घर से पांच किलोमीटर दूर जाना पड़ता था। हालात किसी भी तरह से खुशगवार नहीं थे। पर जब कोई छोटा बच्चा भी कुछ निश्चय करके लक्ष्य तय कर ले तो हिमालय को भी झुकना ही पड़ता है। मनीराम शर्मा ने कभी हिम्मत नहीं हारी, कभी पस्त नहीं हुए, अड़चनों से पार पाने के लिए नये-नये रास्ते खोजते रहे। मज़दूर पिता और दृष्टिहीन मां के बहरे बच्चे ने दसवीं और बारहवीं में मैरिट में स्थान पाया और बीए में टॉप किया तो दुनिया हैरान रह गई। लेकिन नौकरी मिली भी तो क्लर्क की। मुश्किलें कुछ कम हो गईं पर खत्म नहीं हुई थीं। पर निश्चय तो निश्चय है, जो सोच लिया वह सोच लिया। पैसे जमा किये, कुछ बचत बनाई और नौकरी छोड़ दी ताकि उच्च शिक्षा हासिल कर सकें। मनीराम शर्मा ने पीएचडी कर ली और उसके बाद राजनीति शास्त्र के लेक्चरर बन गए। जीना कुछ और आसान हो गया, साधन और संपर्क कुछ और बढ़े लेकिन लक्ष्य दूर था। लक्ष्य एक ही था कि आईएएस अधिकारी बनना है। वर्ष 2005 और 2006 में, यानी, दो बार सिविल सर्विस की परीक्षा पास करने के बावजूद बहरेपन की वजह से संघर्ष जारी रहा। आखिरकार तीसरी बार सन् 2009 में उन्होंने फिर सफलता प्राप्त की और इस बार उन्हें मणिपुर कैडर अलॉट हो गया। सन् 2015 में केंद्र सरकार ने उनका कैडर बदल कर हरियाणा कर दिया और उन्हें महेंद्रगढ़ में नियुक्ति दी। संघर्ष की यह लंबी कहानी हमें याद दिलाती है कि दुनिया जीतना आसान है, सिर्फ निश्चय चाहिए, धीरज चाहिए, साहस चाहिए और थोड़ी सी कल्पना चाहिए।
राजस्थान के ही जिला बीकानेर के एक और छोटे से गांव केसर दसर के रहने वाले चूनाराम जाट ने वर्ष 2012 में आयोजित सिविल सेवा परीक्षा में 271वां स्थान प्राप्त किया था। मनीराम शर्मा की तरह ही उन्होंने भी साबित कर दिखाया कि मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती। उनके किसान पिता उदाराम की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। चूनाराम को स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़ देनी पड़ी। लेकिन उन्होंने स्कूल छोड़ा था, पढ़ाई नहीं छोड़ी थी। दसवीं और बारहवीं कक्षा की पढ़ाई चूनाराम ने प्राइवेट परीक्षार्थी के तौर पर पास की। परीक्षा और किताबों के खर्च के लिए 50 रुपये रोज़ की दिहाड़ी की। उनका जज्बा देखकर गांव के लोगों ने मिलकर उनकी ग्रेजुएशन के लिए आर्थिक सहायता दी। वही चूनाराम जाट अब एक आईपीएस अधिकारी हैं।
अश्वनी गर्ग का जन्म पंजाब के जिला फरीदकोट के जैतों मंडी में हुआ। उनके पिता रघुनाथ राय की किताबों की दुकान थी। गुजारा चल ही जाता था, पर जब अश्वनी 19 साल के हुए तो पिताजी का स्वर्गवास हो गया। घर में मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। सभी रास्ते बंद होते देख अश्वनी ने पढ़ाई छोड़ दी और दुकान की ज़िम्मेदारी संभाल ली। कुछ सालों बाद उन्होंने केबल टीवी का कारोबार शुरू किया और अपने लिए नई पहचान गढ़ी। जीवन में संयम रखा और पैसों की बचत करनी शुरू की। अपनी पढ़ाई छूट गई थी इसलिए दिल में कसक थी कि स्कूल खोलना है। स्कूल के लिए अकेले के पास न धन था न साधन थे, पर दोस्त थे। कुछ दोस्तों के साथ मिलकर आखिर उन्होंने स्कूल खोल ही लिया। कुछ सालों बाद उनके छोटे भाई मनमोहन गर्ग ने उन्हें सलाह दी कि बड़ा इंस्टीट्यूट खोलना चाहिए। सलाह पर विचार हुआ और आखिर उन्होंने पंजाब के राजपुरा के पास स्थित गांव रामनगर में स्वामी विवेकानंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टैक्नालॉजी की नींव रखी। एक ऐसे विद्यार्थी ने वह कर दिखाया जो खुद अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सका था।
मनीराम शर्मा, चूनाराम जाट या अश्वनी गर्ग में से कोई भी अभिनेता नहीं है, लेकिन ये हमारे जीवन के असली हीरो हैं, सचमुच के प्रेरणा स्रोत हैं। हम सब इनके जीवन से, इनके संघर्ष से, इनके साहस और दृढ़ निश्चय से बहुत कुछ सीख सकते हैं। ऐसी प्रेरणादायक कहानियां अगर हमारे सामने आती रहें तो कई और लोगों का जीवन बदल जाएगा। इसी उद्देश्य के साथ नई उभरी कंपनी जीतोदुनिया.कॉम ने निश्चय किया है कि वह भारतवर्ष के ऐसे लोगों की कहानी दुनिया के सामने लायेगी जिन्होंने सभी कठिनाइयों के बावजूद अपना लक्ष्य हासिल किया और दुनिया जीत ली। दुनिया को सिकंदर ने नहीं जीता था। सिकंदर ने दुनिया को हराया था, लेकिन इन महानायकों ने दुनिया जीती है। इन्होंने किसी को हराया नहीं, किसी के कंधे को मसलकर जीत हासिल नहीं की। ये न केवल खुद जीते, बल्कि दूसरों के लिए भी मिसाल बने। ये वो लोग हैं जो हमारे बीच हैं। ये इतिहास नहीं हैं, पर इन्होंने इतिहास बनाया है। जीतोदुनिया.कॉम ऐसे ही लोगों की मुरीद है और ऐसे लोगों को दुनिया के सामने लाने के लक्ष्य पर काम कर रही है जिन्होंने साहस नहीं छोड़ा और अपने मुकाम तक पहुंचे। चीन के बहुत से ऐप सरकार ने बैन कर दिये हैं, कुछ अन्य विदेशी ऐप भी भारतीय भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते रहे हैं। जीतोदुनिया.कॉम संपूर्ण स्वदेशी है और यह भारतीय भाषाओं में काम करने के लिए बना है। शुरुआत हिंदी से हुई है, धीरे-धीरे अन्य भारतीय भाषाओं का भी समावेश होगा।
जीतोदुनिया.कॉम ने सभी भारतीयों को निमंत्रित किया है कि वे अपने आसपास के ऐसे नायकों के वीडियो बनाएं और जीतोदुनिया.कॉम को भेज दें। जीतोदुनिया.कॉम ने हम सबको यह अवसर दिया है कि ऐसे महानायकों की गाथा गायें और खुद भी नायक बन जाएं।
भारतवर्ष में प्रतिभा की कमी नहीं है, प्रतिभा की प्रशंसा की कमी है, प्रेरणादायक प्रतिभाशाली लोगों के प्रचार की कमी है। हम उन नायकों को जानते ही नहीं जिन्होंने इतिहास रचा है। जीतोदुनिया.कॉम इसी कमी को पूरा करना चाह रही है। हम सब इस महाअभियान से जुड़कर भारतीयों और भारतवर्ष की यशोगाथा सारी दुनिया तक पहुंचा सकते हैं, फिर से कह सकते हैं कि हां, हम हैं विश्वगुरू !
हमारे पूर्वजों ने हमें विश्वगुरू का खिताब दिलवाया था, अपनी कमज़ोरियों के कारण हमने वह खिताब गंवा दिया था और हम पश्चिम के पिछलग्गू बन गए थे। पश्चिमी देशों के विद्वानों से सीखना बुरा नहीं है, पर उनके पिछलग्गू बने रहना हमारी नियति नहीं है। हमें विश्वगुरू का वही खिताब हासिल करना है और हम करके रहेंगे। आज एक कंपनी ने शुरुआत की है, कल हजारों और कंपनियां खड़ी होंगी और भारत विश्वगुरू बनेगा। आओ, दुनिया जीतें।
– पी. के. खुराना,
हैपीनेस गुरू और मोटिवेशनल स्पीकर
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