अंतिम संस्कार में जिंदगी की धुन बजाने वाले एक अनोखा संगीतकार

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किसी का अंतिम संस्कार हो और पास में कोई मातम की जगह जिंदगी की धुन बजा रहा हो तो सोचने में थोड़ा अटपटा लगता है, लेकिन लगभग 70 साल के जोसेफ वेसावकर ने इसे अपनी जिंदगी का मिशन बना लिया है।

उनका मानना है कि मृत्यु तो शाश्वत सत्य है जिसके बाद व्यक्ति अनंत में चला जाता है और इसका जश्न मनाया जाना चाहिए। जोसेफ अपनी इस फिलॉसफी और ट्रंपेट पर अपने म्यूजिक के लिए खासे फेमस हैं। अंतिम संस्कार के अलावा वह बॉलिवुड फिल्मों में भी संगीत दे चुके हैं।

7 साल की उम्र से अंतिम संस्कार पर दे रहे म्यूजिक

10 भाई-बहनों में 8वें जोसेफ याद करते हैं कि उनके पिता ने उन्हें ट्रंपेट बजाना सिखाया। वह बताते हैं कि उन्होंने सबसे पहले स्कूल में डालडा के टिन बजाए थे। उन्हें हमेशा रिदम की समझ थी। वह 7 साल की उम्र से अंतिम संस्कारों में ट्रंपेट बजा रहे हैं। वह बताते हैं, ‘मेरे पिता एक बैंड में थे जो अंतिम संस्कार में प्ले करता था। वह सिर्फ क्लासिकल और चर्च म्यूजिक और ट्रंमबोन, क्लैरिनेट, फ्रेंच हॉर्न, ट्रंपेट और सैक्सोफोन बजाते थे। एक बच्चे के तौर पर मैंने ये सभी देखे और मेरी रुचि बढ़ गई।’

हर धर्म के कार्यक्रम में जाते हैं

जोसेफ सिर्फ ईसाई कार्यक्रमों में ही नहीं, मराठी, सिंधी और मुस्लिमों के यहां भी ट्रंपेट बजाते हैं।

ऐसा ही एक वाकया वह याद करते हैं, ‘एक 93 साल की जैन महिला का बाजार रोड पर निधन हो गया। 1970 में वह 9 दिन तक एक जैन मंदिर में फास्ट कर रही थीं। उनकी मोहन जूलर्स नाम की दुकान थी। उनका परिवार मेरे पास आया मुझसे कहने के लिए कि अंतिम संस्कार पर प्ले करूं। उनके पार्थिव शरीर को एक टेंपो में सजे हुए सिंहासन पर रखा गया और हम बोगी मार्च और वेन द सेंट्स गो मार्चिंग इन प्ले कर रहे थे। सभी कैथलिक्स इस बात से हैरान रह गए कि मैं माउंट कार्मेल चर्च से उल्टी दिशा में क्यों जा रहा हूं।’

‘खुशी-खुशी देनी चाहिए अंतिम विदाई’

वह बताते हैं, ‘जब भी मैं ब्लैक सूट और टाई पहनता हूं, लोग पूछने लगते हैं कि अब किसका देहांत हो गया।’ वह बताते हैं, ‘हम यू आर माई सनशाइन और सेंट्स गो मार्चिंग प्ले करते हैं। बोगी मार्च भी प्ले करते हैं क्योंकि वह एक विदाई गीत है, ऐसे लोगों के लिए जो अनंत दुनिया में जा रहे हैं। हमें उन्हें उनके आखिरी सफर कर खुशी-खुशी विदा करना चाहिए। हम मौत से नहीं भाग सकते। हर किसी को मरना है। हम सभी दुख का जीवन जी रहे हैं।’

ऐसे आती है ताकत

वह बताते हैं कि ट्रंपेट बजाने के लिए स्टैमिना चाहिए होता है। इसके लिए उनके पिता ने उन्हें सुबह कच्चा अंडा खाने पीने की आदत डलवाई। वह हर रोज सुबह भगवान की प्रार्थना में ट्रंपेट बजाकर दिन शुरू करते हैं। वह हर रोज सुबह माउंट कार्मेल चर्च और सेंट पीटर्स चर्च में मॉर्निंग मास में जाते हैं। अगर वह नहीं पहुंचते तो लोग सोचने लगते हैं कि मैं कहां गया हूं। वह बताते हैं कि वह वॉर्म अप के लिए सुबह उठकर ट्रंपेट प्ले करते हैं। चर्च पहुंचने तक उनके होठ वॉर्म अप हो जाते हैं।

…तो बजाता हूं ‘गुलाबी आंखें’

जोसेफ बताते हैं कि उन्होंने खलनायक में सबसे कठिन म्यूजिक दिया था। वह याद करते हैं, ‘लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल को ट्रंपेट बजाने के लिए 12 लोग चाहिए थे। तो मेरे स्टूडेंट्स ने पोज किया और मैंने प्ले किया।’ वह बताते हैं कि जब भी किसी लड़की से बात करते हैं तो अपने ट्रंपेट के बारे में बात करने लगते हैं इसलिए कभी किसी लड़की पर ध्यान नहीं दे पाते हैं। वह कहते हैं, ‘जब भी कोई खूबसूरत लड़की देखता हूं, ‘गुलाबी आंखें’ बजाने लगता हूं और वे मुझे थैंक्यू करती हैं।

-एजेंसियां