इतिहास: मुगलों की आखिरी निशानी है जफर महल यानी जीनत महल

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मुगलों की आखिरी निशानी था जफर महल 

मुगलकाल में कई ऐसी इमारत हैं, जिनमें से कुछ को तो लोग भूल गए हैं, तो कुछ को किसी न किसी वजह से आज भी याद किया जाता है। ऐसी बहुत सी इमारतें हैं, जिनके नाम से लोग भी वाकिफ नहीं हैं, इसी लिस्ट में जफर महल भी आता है। जफर महल का निर्माण तब किया गया था, जब मुगल काल खत्म होने पर था। इस इमारत में आप संरचना के साथ-साथ आज भी यहां की भव्यता को आसानी से देख सकते हैं। कुछ लोग तो इसे जीनत महल या लाल महल के नाम से भी जानते हैं। अब यहां की हालत थोड़ी खराब हो चुकी है, लेकिन यहां के ऐतिहासिक महत्व को कोई नहीं जान सकता।

जफर महल का इतिहास

ये महल आज भी महरौली में मौजूद है, जिसका निर्माण 1820 में शाहजहां के पोते अकबर शाह द्वितीय ने करवाया था। मगर इसे 19वीं सदी में फिर से बहादुर शाह जफर ने बनवाया था, बहादुर शाह जफर की बायोग्राफी के मुताबिक इस आलिशान महल के बाहरी हिस्से में एक आलिशान दरवाजे का भी निर्माण बादशाह ने किया था। अपने समय पर ये महल काफी ज्यादा आलिशान था, लेकिन अब इसके रखरखाव ना होने की वजह से ये महल खंडहर बन गया है।

आराम के लिए बनवाया गया था ये महल

इस महल को बहादुर शाह जफर ने अपने आराम गाह के लिए बनवाया था क्योंकि उस समय महरौली के घने जंगल हुआ करते थे, जो शिकार और बाहरी दिल्ली के मुकाबले गर्मियों में रहने लिए काफी आरामदायक जगह हुआ करती थी। इस महल में एक कब्रिस्तान भी है, यहां शाही मुगल परिवार के कई सदस्य को दफनाया गया है।

जफर महल की ये है खासियत

जफर महल आखिरी मुगल स्मार्ट माना गया है, यही इसकी खासियत है, जिसकी संरचना तीन मंजिल है, इसे लाल बलुआ पत्थर से बनाया है। हालांकि, बाद में इसमें मुगल शैली में बना एक बड़ा छज्जा भी शामिल किया गया। इमारत की खासियत एक ये भी है कि इस महल को मुगल और यूरोपीय शैली का मिश्रण आपको बड़ा पसंद आएगा।

कैसे पहुंचें जफर महल?

ये महल दिल्ली के महरौली इलाके में मौजूद है, यहां टैक्सी से आराम से जा सकते हैं, इसके लिए आपको महरौली ग्राम बाजार, 818 कालका दास मार्ग पर जाना पड़ेगा। वहीं, यहां जाने के लिए आपकी कोई फीस नहीं लगेगी।

-एजेंसी