अपना देश छोड़कर परदेश जाते युवाओं को ये लेख जरूर पढ़ना चाहिए

अन्तर्द्वन्द

कुछ पलों की ख़ामोशी तोड़ते हुए वह फिर दोहराती है, “यहाँ कोई किसी का नहीं है. सब भाग रहें हैं. मैंने कनाडा के बारे में जो सोचा था, यहाँ आकर उसका उल्टा हो गया.”

अर्पण अपने सपनों को साकार करने के उद्देश्य से दो साल पहले एक अंतर्राष्ट्रीय स्टूडेंट के रूप में कनाडा आई थीं. अर्पण पंजाब के मुक्तसर ज़िले से हैं. उनके माता-पिता पेशे से अध्यापक हैं.

दो साल की पढ़ाई पूरी करने के बाद अर्पण फ़िलहाल वर्क परमिट पर हैं और सुरक्षा गार्ड के रूप में काम कर रही हैं. अर्पण कनाडा आए उन हज़ारों अंतर्राष्ट्रीय छात्रों में से एक हैं, जो पढ़ाई के बहाने स्टडी वीज़ा पर कनाडा में रहने आते हैं, लेकिन यहाँ के हालात उनके सपनों के विपरीत साबित हो रहे हैं.

अर्पण ने अपना दुख साझा करते हुए कहा, “मुझे अपने माता-पिता की बहुत याद आती है. मां खाना बना कर देती थीं. मैं गेम खेलती थीं. कोई जिम्मेदारी नहीं थी.”

“यहाँ कोई भी नहीं है, जो यह कहे कि बेटा, खाना खाया या नहीं? यहाँ सब कुछ ख़ुद ही करना पड़ता है,”
अर्पण के अनुसार उनका कनाडा आने का कोई प्लान नहीं था. दरअसल, वह कनाडा के चमचमाते वीडियो देखकर काफ़ी प्रभावित हुईं.

उन्होंने देखा कि पंजाब में हर कोई कनाडा के बारे में बात कर रहा है. यह देश बहुत साफ है. छात्रों के पास बड़ी कारें और घर हैं और यह देश लड़कियों के लिए भी सुरक्षित है.

अर्पण के अनुसार ”युवा होने के नाते मैं इन सब से बहुत प्रभावित हुई और सोचा कि मैं भी कनाडा के लिए कोशिश करूं. मेरे माता-पिता चाहते थे कि मैं ग्रैजुएशन कर लूं लेकिन कुछ लोगों ने मुझसे कहा कि जितनी जल्दी कनाडा जाओगे, उतनी जल्दी सेटल हो जाओगे.”

24 साल की अर्पण करीब तीन साल पहले कनाडा पहुंची थीं. ”इसलिए मैं बारहवीं पास करने के बाद बहुत कम उम्र में यहाँ आ गई. कनाडा में रहने वाले मेरे कुछ दोस्तों ने मुझे यहाँ की समस्याओं के बारे में बताया, लेकिन कनाडा का भूत मेरे सिर पर सवार था. इसलिए मैंने उनकी बातों की परवाह नहीं की.”

कनाडा का सपना और ज़मीनी हक़ीक़त

अर्पण कहती हैं कि जब वह 2021 में पहली बार कनाडा पहुंचीं तो उन्हें अहसास हुआ कि वह दूसरी दुनिया में आ गई हैं, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी. टोरंटो उन्हें अपने सपनों का शहर लगने लगा.

अर्पण ने कहा, “एजेंट का एक परिचित मुझे हवाई अड्डे से लेने आया और उसने मुझे एक घर के बेसमेंट में एक बिस्तर किराए पर दिलवाया, जहां मैं सात महीने तक रही.”

”यह बेसमेंट एक हॉल था, जिसमें कोई कमरा नहीं था, ज़मीन पर केवल गद्दे थे. जहाँ कुछ अन्य लड़कियां भी रहती थीं. बेसमेंट में कोई खिड़की नहीं थीं और पहले सात महीनों के लिए कनाडा का मेरा अनुभव बहुत बुरा था.”

अर्पण का कहना है कि भारत के बच्चों को कनाडा को लेकर जो सपने दिखाए जाते हैं, सच्चाई उससे बिल्कुल अलग है.

एजेंट यह नहीं बताते कि उन्हें बेसमेंट में रहना होगा. पढ़ाई के साथ-साथ कैसे काम करना होगा. छात्रों का कितना शोषण होगा. इसके बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है. बस, कनाडा के बारे में सब कुछ अच्छा ही कहा जाता है.

अर्पण के अनुसार छात्र जीवन बहुत संघर्षपूर्ण होता है. मानसिक तनाव, परिवार से दूर रहने का अनुभव, काम न मिलने का दबाव, ये सब छात्र जीवन के संघर्ष का हिस्सा हैं.
अर्पण ने बताया कि वर्तमान समय में सबसे बड़ी समस्या काम की है. सर्दी के मौसम में लगने वाले जॉब फेयर में नौकरी के लिए छात्रों की लंबी-लंबी क़तारें लग जाती हैं.

इसमें से कुछ ही छात्रों को नौकरी मिल पाती है, कनाडा का ये सच भारत में कोई नहीं बताता. जीवनयापन का खर्च, कॉलेज की फीस और नौकरी का कोई भरोसा न होने के कारण मन में हमेशा चिंता बनी रहती है.

अर्पण ने बताया कि वह कनाडा की समस्याओं के बारे में अभिभावकों को बहुत कम जानकारी देती हैं, जैसे मैंने पढ़ाई पूरी कर ली है, नौकरी मिल गई है और सैलरी बैंक में आ गई है.

जब पूछा गया कि बाकी मुश्किलें क्यों नहीं बतातीं तो जवाब मिला कि परेशान होंगे और ज़्यादातर बच्चे ऐसा ही करते हैं.

”यदि मैंने खाना नहीं भी खाया हो, तो भी अपने माता-पिता से झूठ बोलती हूँ कि मैंने खाना खा लिया है. मैं यह नहीं बता सकती कि मैं आज खाना नहीं बना पाई हूँ क्योंकि मैं काम से देर से आई थी.”

अर्पण का कहना है कि मेरे अंदर से बचपन मर चुका है, छोटी सी उम्र में मेरे ऊपर कनाडा में बड़ी ज़िम्मेदारियां पड़ गई हैं.

अर्पण का लक्ष्य कनाडा की नागरिकता हासिल करना है. इसके बाद ही वह अपने माता-पिता के पास भारत जाएंगी.

अर्पण के मुताबिक़ कनाडा एक अच्छा देश है. यहाँ किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं होता और आगे बढ़ने के बराबर अवसर मिलते हैं. लेकिन छात्र जीवन बहुत कठिन होता है और भारत में रहकर इसकी कल्पना नहीं की जा सकती .

आप्रवासन, शरणार्थी और नागरिकता विभाग कनाडा (आईआरसीसी) के 2023 के आंकड़ों के अनुसार इस साल अंतर्राष्ट्रीय छात्रों की संख्या में 29 फीसद की वृद्धि हुई. सबसे अधिक संख्या में स्टडी परमिट भारतीय छात्रों को जारी किए गए. इसके बाद दूसरे नंबर पर चीन और तीसरे नंबर पर फिलीपींस के छात्र हैं.

भारतीय छात्रों में कनाडा जाने वाले छात्रों की संख्या सबसे ज़्यादा पंजाब और गुजरात से है. इसके अलावा राजस्थान, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, हरियाणा के छात्र इस समय कनाडा में पढ़ रहे हैं. भारतीयों में सबसे अधिक पंजाब के छात्र हैं.

बेहतर भविष्य की उम्मीद में लाखों भारतीय छात्र पिछले कुछ सालों में कनाडा आए हैं. ग्रेटर टोरंटो एरिया (जीटीए) को अंतरराष्ट्रीय छात्रों, विशेषकर भारतीयों का केंद्र माना जाता है. खासकर ब्रैम्पटन को मिनी पंजाब के नाम से जाना जाता है.

-एजेंसी