योग माया: अपने भीतर चेतना का भाव जागृत करना है जरूरी

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जब सब कुछ सहज तरीके से चल रहा हो… जीवन बिना व्यवधान आगे बढ़ रहा हो तब अपने भीतर चेतना का भाव जागृत करना और ज्यादा जरूरी हो जाता है। यह आपके भीतर और आसपास ऊर्जा के उस प्रवाह को उत्पन्न करता है जिसकी आवृत्ति काफी ज्यादा है। इस ऊर्जा क्षेत्र में अचैतन्य, हिंसा, किसी प्रकार का मनमुटाव…. प्रवेश नहीं कर सकते और ना ही वह उस क्षेत्र के भीतर पनप सकते हैं।

जब आप अपने विचारों और भावनाओं के साक्षी बनने लगते हैं… जो कि आपके वर्तमान का एक जरूरी हिस्सा है… तब आप यह जानकर काफी हैरान होंगे कि आपकी पृष्ठभूमि स्थिर है… वह गतिशील नहीं है… आप अंदरूनी तौर पर पूरी तरह सहज हैं।

विचारों के स्तर पर आप न्याय, असंतोष, मानसिक प्रक्षेपण के रूप में प्रतिरोधक शक्तियों का भी सामना करेंगे। वहीं भावनात्मक स्तर पर चिंता, ऊब, अधीरता, असहजता का अनुभव भी आप कर सकते हैं।

आप यह महसूस करेंगे कि ये सभी भावनाएं बेवजह आपके भीतर उमड़ रही हैं, जिनका आपके जीवन से कुछ लेना देना नहीं है।

जब आप चेतना का प्रकाश डालते हैं तब आपके जीवन से हर अनिश्चित चीज गायब होने लगती है।

एक बार आप इस काल में माहिर हो गए तो आपकी उपस्थिति की चमक दोगुनी होकर बिखरने लगेगी और जब कभी आपको लगेगा कि आपके भीतर की अवचेतना आपको खींच रही है तो आप सहजता के साथ उसे नियंत्रित कर लेंगे।

हालांकि सामान्य अवचेतना को प्रारंभिक चरण पर पहचाना नहीं जा सकता क्योंकि ये बहुत सामान्य प्रतीत होती है।

आपको अपनी भावनात्मक और मानसिक स्थिति का निरीक्षण स्वयं करने की आदत डालनी होगी। आपके भीतर और बाहर क्या चल रहा है.. इस पर निरंतर ध्यान देना होगा। अगर आपके भीतर सब सही है तो बाहर के बुरे हालात भी आपको प्रभावित नहीं कर पाएंगे। प्रारंभिक वास्तविकता आपके भीतर है… जो बाहर है वह गौण है।

इन सवालों का उसी समय जवाब देना जरूरी नहीं है… अपने भीतर ध्यान दें कि आपके मस्तिष्क में किस तरह के विचार उत्पन्न हो रहे हैं।

आप कैसा महसूस कर रहे हैं?

अपनी देह की तरफ ध्यान केन्द्रित करें… क्या कोई समस्या है?

अगर आपको लगे कि आपके भीतर न्यूनतम स्तर पर भी असहजता है, तो यह जानने की कोशिश करें कि आप अपने जीवन को किस तरह नजरअंदाज कर रहे हैं।

-योग माया


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