संक्रमण से बचाव करते हुए क्षय रोग उन्मूलन में जुटी हैं नर्स
मरीजों के स्वस्थ होने के सफर का बन रहे साथी
आमतौर पर लोग टीबी का नाम सुनते ही भयक्रांत हो जाते हैं । टीबी मरीजों के साथ भेदभाव करते हैं। स्टिग्मा डिस्क्रिमिनेशन का स्तर यह है कि पति अपनी पत्नी को छोड़ देता है लोग अपने प्रियजनों को छोड़ देते हैं, लेकिन इन विषम परिस्थितियों में एसएन मेडिकल कॉलेज के टीबी व चेस्ट डिपार्टमेंट के नर्स बिना किसी भयभ्रांति के संक्रमण से लड़ते हुए क्षय रोग उन्मूलन में योगदान दे रही हैं। यह नर्स दिन-रात मरीजों के बीच रहती हैं लेकिन उनके साथ कभी भी भेदभाव का रवैया नहीं अपनाती है। यह टीबी मरीजों की सेवा करती हैं टीबी मरीजों की स्वच्छता का विशेष ध्यान देती हैं। वार्ड की साफ सफाई से लेकर टीबी मरीज को स्नान करवाना, स्पंज बाथ देना पौष्टिक आहार का सेवन कराना, समय से नियमित दवाई का सेवन कराने आदि का विशेष ध्यान रखती हैं।12 मई को फ्लोरेंस नाइटेंगल के जन्मदिन पर दुनियाभर में नर्स दिवस मनाया जाता है।फ्लोरेंस नाइटेंगल के पदचिन्हों पर चलकर मरीजों की सेवा कर रही हैं।
एसएन मेडिकल कॉलेज के टीबी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट के स्टाफ नर्स 50 वर्षीय विनोद शर्मा बताते हैं कि उन्हें नर्सिंग के क्षेत्र में सेवा देते हुए 28 साल हो चुके हैं। वह अपने कैरियर में डॉक्टर बनकर मरीजों की सेवा करना चाहते थे, लेकिन परिस्थितियों के कारण वह डॉक्टर नहीं बन सके और स्टाफ नर्स बनना चुना। उन्होंने तमिलनाडु से नर्सिंग की पढ़ाई की। इसके बाद विभिन्न अस्पतालों में काम किया। वह विभिन्न स्थानों पर बतौर स्टाफ नर्स तैनात रहे। अब बीते दो साल से टीबी एंड चेस्ट वार्ड में कार्यरत हैं। उन्हें एसएन मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. प्रशांत गुप्ता द्वारा उत्कृष्ट कार्य करने के लिए सम्मानित किया जा चुका है।
उन्होंने बताया कि उनके द्वारा मरीजों को उपचार देने क साथ उनका ढांढस भी बंधाया जाता है, हम मरीजों को बताते हैं कि आप सही ट्रीटमेंट लेने स्वस्थ हो सकते हैं। कई बार मरीज सीरियस होने पर अपनी हिम्मत छोड़ देते हैं, लेकिन हम उन्हें ट्रीटमेंट देने के साथ काउंसलिंग भी देते हैं, ज्यादातर मरीज अपनी बीमारी को हरा देते हैं।
उन्होंने बताया कि टीबी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट में फीमेल टीबी वार्ड, मेल टीबी वार्ड, एमडीआर टीबी वार्ड, नॉन टीबी वार्ड हैं। नॉन टीबी वार्ड में ऐसे मरीजों को रखा जाता है, जिनकों टीबी नहीं होती है, वहीं एमडीआर टीबी वार्ड में एमडीआर टीबी मरीजों को रखा जाता है. वहीं फीमेल वार्ड में महिला मरीजों और मेल वार्ड में पुरुष मरीजों को एडमिट किया जाता है। विनोद बताते हैं टीबी ऐसा गंभीर रोग है, यदि इसका सही समय पर उपचार न किया जाए तो यह जानलेवा भी हो जाता है। यह बच्चों से लेकर किसी भी उम्र वर्ग के लोगों को हो सकती है। गर्भवती महिलाओं को भी टीबी होने के मामले सामने आते हैं, उन्हें वार्ड में एडमिट किया जाता है। गर्भवती महिला मरीजों का और अधिक ध्यान रखना होता है। विनोद ने बताया कि कई बार मरीजों को खून की उल्टियां भी होती हैं, ऐसे में मरीजों की डॉक्टर द्वारा दिए गए परामर्श के अनुसार उपचार देने के साथ-साथ उनकी साफ-सफाई की जाती है।
विनोद शर्मा ने कहा कि मुझे 28 साल मरीजों की सेवा करते हुए हो गए हैं। उन्हें मरीजों की सेवा करके काफी अच्छा लगता है।
एसएन मेडिकल कॉलेज के टीबी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट में स्टाफ नर्स के पद पर तैनात 27 वर्षीय बबीता शर्मा ने बताया कि मैं बचपन से ही लोगों की सेवा करना चाहती थी, लोगों की मदद करना मुझे अच्छा लगता था। इसलिए मैंने नर्स बनने का प्रोफेशन चुना और मथुरा स्थित बीसीएस स्कूल ऑफ नर्सिंग से नर्सिंग की पढ़ाई की। इसके बाद एसएन मेडिकल कॉलेज में उनकी जॉब लग गई। उन्हें कोविड वॉरियर अवार्ड भी मिल चुका है। उन्होंने कहा कि यदि आप एक नर्स बनना चाहते हैं तो सबसे पहले आपके मन में सेवा करने का भाव होना चाहिए।
बबीता बताती हैं कि उन्हें मरीजों की सेवा करके एक अलग तरह की आत्मसंतुष्टि मिलती है। काम करते-करते मेरी शिफ्ट कब खत्म हो जाती है मुझे पता ही नहीं चलता। बबीता ने बताया कि स्टाफ नर्स होने के नाते वह मरीजों की केवल सेवा नहीं करती हैं, बल्कि मरीजों और तीमारदारों की काउंसलिंग भी करती है, जिससे कि मरीज उपचार कराए तो उनके मन में खुद को स्वस्थ करने के प्रति भावना जागृत हो और वह जल्दी स्वस्थ हों। इसके साथ ही वह तीमारदारों को भी मरीज का ध्यान रखने का प्रशिक्षण देती हैं। कई बार मरीज गंभीर स्थिति में वार्ड में एडमिट होते हैं। ऐसे में उनकी साफ-सफाई करना, उन्हें स्पॉन्ज बाथ देना जैसी चीजें सिखाते हैं। वह खुद मरीजों को स्पॉन्ज बाथ देती हैं।
संक्रमण से करना होता है बचाव
बबीता ने बताया कि नर्स होने के नाते उनका काम डॉक्टर द्वारा बताए गए सही ट्रीटमेंट को मरीज को देना और उनकी सेवा करना तो है ही, इसके साथ ही सबसे जरूरी है कि मरीजों की सेवा के साथ-साथ अपनी सुरक्षा करना। क्योंकि अस्पताल वह जगह है, जहां पर आपको विभिन्न प्रकार के संक्रमण से बचाव करना होत है। इसलिए हमें सबसे पहले सुरक्षा इंतजामों का ध्यान रखना होता है, जैसे- मास्क पहनना, ग्लब्स का उपयोग करना आदि। बबीता ने बताया कि टीबी एंड चेस्ट वार्ड में टीबी के मरीज भी आते हैं। पल्मोनरी टीबी का संक्रमण फैलता है, इसलिए वार्ड में मरीजों और अपनी सुरक्षा के मानकों का भी ध्यान रखना होता है।
बबीता ने बताया कि उनकी एक ढाई साल की बेटी है। वह ड्यूटी के बाद घर जाती हैं, ऐसे में उन्हें सुरक्षा का अधिक ध्यान रखना होता है। स्टाफ नर्स को अपने साथ-साथ अन्य अपने परिवार की सुरक्षा का ध्यान रखना होता है।
स्टेट टीबी टास्क फोर्स के चेयरमैन और एसएन मेडिकल कॉलेज में क्षय और वक्ष रोग विभाग के अध्यक्ष डा. गजेंद्र विक्रम सिंह ने बताया कि 2025 तक देश को टीबी मुक्त करने के लिए सभी के प्रयासों की जरूरत है ।
क्षय और वक्ष रोग विभाग के नौ स्टाफ नर्स टीबी मरीजों को परिवार के सदस्यों की तरह सेवा कर रहे हैं, उनके मनोबल को बढ़ाते हैं, भावनात्मक सहयोग भी प्रदान करते हैं, काउंसलिंग के दौरान नर्स संक्रमण से बचाव के बारे में जानकारी देते हैं और यह भी बताते हैं एक बार तीन सप्ताह तक टीबी मरीज दवाई खा लेता है तो उसे संक्रमण का खतरा नहीं रहता है उन्होंने वर्ल्ड नर्स डे के अवसर पर सभी नर्स को बधाई दी है ।
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