आज करीब चालीस सालों से मैं ओशो के साथ हूं। मेरी मां ने ओशो को पढ़ा और मुझे उनके पास भेजा फिर वह स्वयं भी उनसे मिली। इन चालीस सालों में एक अजीब बात मैंने देखी जब भी किसी विदेशी से मिलना होता है तो वे ध्यान के बारे में पूछते हैं, परमात्मा के बारे में पूछते हैं, आत्मा के बारे में पूछते हैं, मोक्ष के बारे में पूछते हैं, पूरे जीवन के अनुभव में और मैं लाखों विदेशियों से मिला हूं, एक भी विदेशी ने ओशो के बारे में सेक्स को लेकर कोई सवाल नहीं पूछा।
पर हमारा देश तो धार्मिक देश है, ब्रह्मश्चर्य का पालन करने वाला। देश में जहां कहीं भी गया हूं, जिस किसी से भी मिला हूं, सेक्स हमेशा सबसे पहले आता है। सेक्स में इस देश की ऊर्जा ऐसी अटकी है कि बस हीलने का नाम ही नहीं लेती।
बातें बड़ी-बड़ी देश सेवा, धर्म, स्वर्ग, नैतिकता, चरित्र और सिवाय सेक्स के इनको कुछ दिखाई नहीं देता। मुझे याद भी नहीं आता कि किसी भारतीय ने मेरे से ध्यान, होश, साक्षी पर कभी कोई सवाल किया हो। ले-देकर सेक्स!
ओशो ने गीता के अठारह अध्यायों पर अठारह पुस्तकों का सृजन किया है, भारत के कोई भक्त, शास्त्र या उपदेश नहीं छोड़े जिन पर उन्होंने बात न की हो। 650 पुस्तकें और ध्यान व जीवन रुपातंरण पर ऐसी गहन दृष्टि कि बस एक पढ़ना शुरू करो तो रोकना मुश्किल। ओशो ने इतने सघन ध्यान प्रयोग बनाये, ध्यान समूह बनाये कि लाखों-करोड़ों लोगों को गहन शांति, प्रेम व करुणा का अनुभव हुआ है।
इसी स्तंभ पर मैं न जाने कितने सवालों के जवाब दे चुका हूं और कोई भी मेरे किसी जवाब का जवाब नहीं दे पाया। सिर्फ सुनी-सुनाई बातों पर लगाए गए आरोप। अब बस करो यार, ओशो ने इस सूरज तले के किसी भी विषय को नहीं छोड़ा है। वेद, उपनिषद, गीता, भक्तों की लंबी कतार, तंत्र, योग, सुकरात, लाओत्सु, झेन परंपरा, हसीद, बाउल, बाइबल, मनोविज्ञान, साहित्य, कला, जीवन शैली, ऐसा कौन सा विषय छोड़ा है जिस पर ओशो नहीं बोले, कुछ उन पर भी चर्चा करो।
ले-देकर वही घिसी-पिटी गंदी बातें जिनका ओशो से लेना न देना। अब बस करो कोई सार्थक बहस करो। मैं हर बार सोचता हूं कि शायद अब ये दमित, कुंठित, रुग्ण चित्त समझ जाएगा, लेकिन वही की वही बातें। फिर वही मूढ़तापूर्ण बात–ओशो आश्रम सेक्स का अड्डा।
ओशो की एक पुस्तक भारत में बहुत चर्चित है–‘संभोग से समाधि की ओर,’ अब इस शिर्षक में दो शब्द प्रमुख हैं–एक संभोग, दूसरा समाधि। यदि दोनों शब्द पचास-पचास प्रतिशत चर्चित होते तो लगता कि ठीक है, चालीस साठ भी होता तो समझ आता कि सेक्स अधिक लोगों को रूझता है, लेकिन सौ प्रतिशत सिर्फ और सिर्फ संभोग की बात? समाधि पर एक प्रतिशत भी नहीं, यूं जैसे कि इस शिर्षक में समाधि का तो जिक्र ही नहीं हैं–सेक्स, ऐसा फैल गया। यह दमित चित्त की निशानी है। जो दबाते हैं वह ऊबल-ऊबल कर आता है, अब समाधि की किस को परवाह, शायद किसी का जीवन भर में इस पर खयाल भी नहीं जाता होगा। और ओशो ने पूरी पुस्तक में यही बताया कि कैसे सेक्स की ऊर्जा का उर्ध्वगमन कर, समाधि तक जाया जाये, लेकिन अंधे, करो क्या।
भारत के जितने भी महान सृजनशील हैं, वे ओशो को पढ़ते हैं, ओशो आश्रम आते-जाते रहते हैं, पंडित जसराज, बांसुरी वादक हरिप्रसाद चौरसिया, संतूर वादक शिवकुमार शर्मा, कल्याण जी आनंद जी, उस्ताद जाकिर हुसैन, किरण बेदी, अमृता प्रितम शायद ही कोई शास्त्रिय संगीत, नृत्य, चित्रकला, कवि, साहित्यकार, फिल्मकार, लेखक होगा जो आश्रम न आता हो। और इसी के साथ दुनियाभर से अतिप्रतिभावान लोग ओशो के सान्निध्य में आये।
ओशो ने संगीत, कला, विज्ञान, जीवन, दर्शन, मनोविज्ञान, साहित्य, फिल्म कोई ऐसा विषय नहीं छोड़ा जिस पर अपनी दिव्य दृष्टि न दी हो। आप ओशो की कोई भी पुस्तक उठाकर पढ़ना शुरू किजिये, आप यदि अपने को पढ़ने से रोक पाएं तो बता दिजिये।
ओशो के आश्रम में मैंने अपना जीवन निकाला है। ऐसा पवित्र स्थल शायद इस पृथ्वी पर कोई और हो? मेरी वृद्ध मां भी मेरे साथ रही व मेरी बहिनें भी, क्या कोई सोच भी सकता है कि मैं या मेरे जैसे लाखों-करोड़ों लोग अपने परिवार को ऐसी जगह ले जाएंगे जहां फ्रि सेक्स जैसी बात होती हो? शीला के स्वयं के वृद्ध माता-पिता पूरा जीवन ओशो के सान्निध्य में रहे, क्या वे?
ओशो पर उनके शिष्यों ने बहुत सारी पुस्तकें लिखी हैं, मां शून्यों की ‘माय डायमंड डे़ज विथ ओशो,’ पठनिय पुस्तक है। इसी प्रकार से मां मनीषा, मां आनंदो, स्वामी अमृतो, स्वामी प्रेम गीत, स्वामी अगेह भारती, स्वामी आनंद स्वभाव, बाघमार जी अनगिनत पुस्तकें आई हैं जिनमें ओशो के जीवन, ओशो आश्रम के रोजमर्रा के जीवन पर विस्तार से लिखा गया है…इनमें से किसी पुस्तक पर कोई बात नहीं करता, शीला की पूरी झूठी पुस्तक को उठा लाते हैं। चलो ओशो के शिष्यों की पुस्तक को एक तरफ रखो, प्रसिद्ध लेखिका अमृता प्रितम की ओशो पर लिखी पुस्तक, ‘मन मिर्जा, तन साहिबा’ पढ़ लो, पता चल जाएगा कि ओशो क्या है। हाल ही में एक चैनल पर प्रसिद्ध कवि नीरज जी ओशो के लिए बोल रहे थे, ‘वे परम रहस्यदर्शी हैं, मेरे काव्य की प्रेरणा मुझे उनसे ही मिलती है।’ ओशो ने आज पूरी पृथ्वी के सृजनकारों, साहित्यकारों, फिल्मवालों, बुद्धिजीवितयों के हृदय को छू लिया है। थोड़ा-सा इंटरनेट पर सर्च करके देखो कि ओशो ने किस प्रकार विचार, ध्यान क्रांति फैलाई। लेकिन रुग्ण लोगों का क्या करो!
उनका मन बुरी तरह से सेक्स पर अटक गया है। कारण साफ है, जिसका मन सेक्स में अटक गया, वह रह-रहकर सेक्स की बात करेगा। ध्यान में रूचि होती तो ध्यान की बात करते, रूपांतरण में रूचित होती तो रूपांतरण की बात करते, आत्मा-परमात्मा में रूचि होती तो वह बात करते।
सन् 1974 में ओशो ने कोरेगावपार्क, पुणे में आश्रम की स्थापना की। उसके पहले ओशो अनेक बार पुणे आते रहे। पुणे का श्रेष्ठीवर्ग, बुद्धिजीवी, युवक, प्रतिभाशाली लोग ओशो से जुड़ चुके थे और जब आश्रम की स्थापना यहां हो गई तो ये सभी लोग सपरिवार यहां रोज आने लगे। मैं यहां नाम नहीं लूंगा, यह निजता की बात है, लेकिन कह सकता हूं कि शायद ही पुणे का कोई सभ्रांत परिवार छूटा हो जो आश्रम नियमित न आता हो। और उस समय तो आश्रम बहुत छोटा-सा था। मूढ़ानंद जी कहते हैं, सेक्स का अड्डा था, इस अड्डे पर कैसे सभी लोग अपनी मां-बहनों को लेकर आ रहे थे? यदि अड्डा ही था तो कुछ बिंदुओं पर ध्यान अवश्य देना चाहिए–
1. ऐसे खुले अड्डे को पुलिस ने क्यों चलने दिया, जबकि हॉटलों में तहखानों तक पुलिस पहुंच जाती है।
2. पुणे के संभ्रात लोग, गुणी लोग, जागरूक लोग, राजनेता कैसे यह सब चलने दे रहे थे?
3. सरकार क्या कर रही थी? जबकि ओशो स्थापित धर्मों, राजनेताओं और सभी निहित स्वार्थों पर करारी चोट कर रहे थे, ओशो के हर तरफ दुश्मन थे, उन्हें तो कोई बहाना चाहिए था ओशो को खतम कर देने का, एक सेक्स का अड्डा चलता रहा और ये लोग मूक दर्शक रहे?
4. ओशो आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी की आलोचना कर रहे थे। उस समय पता नहीं कितने बाबा-साधु जेल में डाल दिये गये, इंदिरा मौन क्यों रही?
5. सभी धर्मों के लोगों ने बीच शहर में सेक्स का अड्डा चलता रहा और कोई विरोध क्यों नहीं किया?
6. पूरी दुनिया से हर वर्ग के लोग ओशो के पास आ रहे थे, कोई क्यों नहीं बोला? मैं भी सालों से लिख रहा हूं, सत्तर के दशक से प्रकाशित होने लगा, मैंने सेक्स का अड्डा देखा और उस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं की? क्यों? मैं कैसे इस तरह का अड्डा चलने दे सकता हूं?
नहीं साहब, कोई अड्डा, कभी नहीं था न आज है, वह सिर्फ ध्यान, रूपांतरण, सृजन, प्रेम, सत्यम, शिवम, सुंदर का पवित्र स्थल है। ओशो जैसे रहस्यदर्शी के सान्निध्य में विकसित सुंदरतम स्वर्ग। कभी अवसर मिले तो कुछ दिन यहां रह कर देखें, ओशो आश्रम के पीछे बने, ओशो तीर्थ में कुछ देर घूम कर देखें, यदि गहन शांति का अनुभव न हो तो मुझे जरूर बताना। और सेक्स का अड्डा शांति नहीं देता।
ये मूढ़ानंद जी बार-बार सवाल लेकर आते हैं, ओशो और सेक्स का! इस तरह के मूढ़ानंद ओशो के बारे में कुछ नहीं कहते, स्वयं के बारे में कहते हैं, कि सेक्स में गाड़ी बहुत बुरी तरह से अटक गई।
ओशो ने एक जगह कहा है, ‘भारत का मन सेक्स में ऐसा अटका कि वह क्या मोक्ष को समझेगा?’ मूढ़ानंद जी आपके सवाल सिर्फ यही बताते हैं कि आप बुरी तरह से सेक्स में अटके हो, अब उठो, मौत सामने खड़ी है, अब थोड़ा मोक्ष की भी बात कर लो।
ओशो आश्रम में कभी भी, कोई सेक्स को लेकर विकृति नहीं रही। मैं अपने सारे जीवन के अनुभव पर कहता हूं, किसी को कोई भ्रम हो तो मेरे से सवाल जरूर पूछे। मूढ़ानंद आप भी पूछ लो। जो चाहो पूछ लो।
ओशो आश्रम इस पृथ्वी का सबसे पवित्र स्थल था, है और रहेगा, जिसे भी कोई शक हो स्वयं ही आज ही पुणे, कोरेगांवपार्क जाकर ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिजॉर्ट, में कुछ दिन गुजारकर देख ले।
साभार- एक ओशो संन्यासी की कलम से…