वॉयस सैंपल: क्या सालों बाद आवाज़ में अंतर नहीं आता?

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सिख विरोधी दंगों को लेकर सीबीआई अधिकारियों का कहना है पूरे मामले में उनके पास नए सबूत हैं. और इन्हीं सबूतों के आधार पर जगदीश टाइटलर के खिलाफ जांच को आगे बढ़ाया जा रहा है. टाइटलर की आवाज का नमूना 39 साल पहले दिए गए विशेष भाषण से उसका सही सही मिलान किया सके. टाइटलर पर आरोप है कि उन्होंने अपने भाषण में दंगाइयों को हत्या के लिए उकसाया था.

क्या सालों बाद आवाज़ में अंतर नहीं आता?

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक फोरेंसिक अधिकारियों का मानना है कि किसी-किसी व्यक्ति की आवाज का लहजा और उसकी आवृत्ति कई सालों तक एक ही समान रहती है, उसमें कोई बदलाव नहीं होता. जब तक कि उसकी गले की स्वर ग्रंथि में कभी ऑपरेशन न हुआ हो.

सेंट्रल फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी के सूत्रों के मुताबिक किसी भी वॉयस का नमूना आमतौर पर एक इको-प्रूफ रूम में लिया जाता है. इस दौरान वॉयस रिकॉर्डर का उपयोग किया जाता है. व्यक्ति को बोलने के लिए कहा जाता है. आवाज का नमूना रिकॉर्ड करते समय कुछ तकनीकी मापदंडों को ध्यान में रखा जाता है. ऑडियो की पिच, उसके आरोह-अवरोह को मूल ऑडियो नमूने से मिलान किया जाता है.

जानकारी के मुताबिक भारतीय लैब में वॉयस सैंपलिंग की सेमी-ऑटोमैटिक स्पेक्ट्रोग्राफिक सिस्टम का उपयोग किया जाता है. जबकि कुछ देश ऑटोमैटिक सिस्टम का उपयोग करते हैं. ऐसा माना जाता है कि ऑटोमैटिक सिस्टम में वॉयस सैंपल के मिलान की सटीकता की संभावना अधिक रहती है.

कैसे लिया जाता है आवाज का नमूना?

किसी भी संदिग्ध या आरोपी या सजायाफ्ता अपराधी के वॉयस सैंपल करते समय फोरेंसिक अधिकारी इंटरनेशनल स्टैंडर्ड का उपयोग करते हैं. इसके लिए वॉयस सैंपल रिकॉर्ड करते समय इंटरनेशनल ध्वन्यात्मक अक्षरों (International phonetic alphabets) का उपयोग करते हैं. इस वक्त संदिग्ध को उसी कंकेंट के एक छोटे से हिस्से का दोबारा उच्चारण करने के लिए कहा जाता है, जिसकी जांच की जानी है.

फोरेंसिक अधिकारी इस दौरान आरोपी या संदिग्ध के बोले हुए हिस्से और उसके पुराने हिस्से में स्वर अक्षरों और व्यंजन के अक्षरों के लहजे का अलग-अलग मिलान करते हैं. और विशेषज्ञ मिलकर उनका विश्लेषण करते हैं. फिर किसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं.

आवाज के नमूने की कानूनी वैधता क्या है?

हालांकि साल 2013 के एक मामले में कोर्ट ने कहा था कि आवाज के नमूने इकट्ठा करने के लिए कोई विशिष्ट कानून नहीं है. तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि जांच के लिए आवाज का नमूना एकत्र करने से अभियुक्तों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं होगा.

कोर्ट ने यह भी कहा था कि निजता के मौलिक अधिकार को पूर्ण नहीं माना जा सकता है. किसी सार्वजनिक हित के सामने झुकना भी चाहिए.

वहीं 30 मार्च, 2022 को एक फैसले में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा था कि “आवाज के नमूने एक तरह से उंगलियों के निशान और लिखावट की शैली से मिलते जुलते हैं. हर शख्स की की विशिष्ट आवाज होती है. आवाज से उसे पहचाना जा सकता है. लेकिन कोर्ट में इसे सबूत नहीं माना जा सकता.”

भारत में पहले भी लिये गये हैं वॉयस सैंपल?

सबसे हाल में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) ने अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत केस में ड्रग्स से जुड़े मामले में 33 आरोपियों के बीच वॉयस सैंपल लेने के लिए कोर्ट में याचिका लगाई थी. NCB ने कहा था कि उसे कुछ आरोपियों की वॉयस कॉल्स को वेरिफाई करने की जरूरत है.

इसके अलावा अपनी लिव-इन-पार्टनर की हत्या करने और उसके शरीर को कई टुकड़ों करने वाले आफताब पूनावाला की आवाज का नमूना भी लिया गया था. वहीं मुंबई पुलिस ने कथित क्रिकेट बुकी अनिल जयसिंघानी की बेटी अनीक्षा जयसिंघानी की आवाज के नमूने भी इकट्ठा किया था. जिस पर महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की पत्नी अमृता फडणवीस को ब्लैकमेल करने और रिश्वत देने की कोशिश करने का आरोप है.

-एजेंसी