दिग्गज फ़िल्म डायरेक्टर सुभाष घई ने बताई बॉलीवुड नाम के पीछे की कड़वी सच्चाई

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सुभाष घई ने कोमल नहाटा के साथ हुई बातचीत में साल 1988 की कहानी सुनाई थी, जो यकीनन हैरान करने वाली है। उन्होंने कहा, ‘प्लीज, हमारे हिन्दी सिनेमा को आप बॉलीवुड सिनेमा मत कहिए। उसकी वजह मैं आपको बताता हूं। ये जो बॉलीवुड कहा गया है, ये गाली दी थी किसी ने। ये साल 1988 की बात है जिस वक्त मेरी फिल्म रिलीज हुई थी राम लखन, उसकी एक पार्टी हमने रखी थी चाइना गार्डन में।’

सुभाष घई ने सुनाया अपनी फिल्म के प्रीमियर का किस्सा

सुभाष घई ने ये किस्सा सुनाते हुए अपना गुस्सा जाहिर किया और कहा, ‘बीबीसी का यूनिट आया था, उन्होंने परमिशन लेकर कहा कि हम आपको आपके प्रीमियर और पार्टी को कवर करना चाहते हैं।’

उन्होंने बहुत इंसल्ट किया और कहा, क्यों न इनका नाम बॉलीवुड रखा जाए 

डायरेक्टर ने आगे कहा, ‘उन्होंने कवर किया। दो हफ्ते के बाद जब मैं लंदन गया तो वहां पर चैनल में दिखा रहे थे कि किस तरह से भारत में, इंडिया में फिल्म वाले जो हैं वो हॉलीवुड की नकल कर रहे हैं। उन्होंने क्या किया कि हमारी जो लेडीज़ थीं उनके शूज़, उनके पर्स, उनका हेयरस्टाइल सब शूट किया और ऐसा शॉट दिखाए कि कैसे प्रीमियर हो रहा है तो उन्होंने कट करके दिखाया हॉलीवुड में ऐसा प्रीमियर होता है और बॉलीवुड में भी वैसे है, कहने का मतलब कि टोटल कॉपी हैं इंडियन लोग। ये बिल्कुल नकलची लोग हैं। उन्होंने बहुत इंसल्ट किया हमारा और कहा कि क्यों न इनका नाम बॉलीवुड रखा जाए और वहां से इस शब्द की शुरुआत हुई।’

बॉलीवुड शब्द तिरस्कार है और हमने सत्कार समझा

उन्होंने कहा, ‘ये शब्द तिरस्कार से शुरू हुआ, जिसको हमने अपना सत्कार समझा। ये बात मुझे बहुत दुख के साथ कहनी पड़ती है और मैं हर एक से रिक्वेस्ट करूंगा कि याद रखिए कि जब आप बॉलीवुड कहते हैं तो अपने आपको नकलची बंदर कहते हैं।’

भारतीय सिनेमा का इतिहास, 1913 से हुआ शुरू

वहीं बताना चाहेंगे कि अमिताभ बच्चन भी ‘बॉलीवुड’ शब्द को कुछ खास पंसद नहीं करते और उन्हें भी इसे हिंदी सिनेमा कहना ही ज्यादा पसंद है। वैसे सच ये है कि भारतीय सिनेमा का इतिहास बेहद पुराना है जिसकी शुरुआत 1913 से बताई जाती है। पहली मूक फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ थी और इसे दादासाहेब फाल्के ने बनाया था। उन्होंने ही भारत में फिल्मों की नींव डाली थी।

-एजेंसी