नरसिंहगढ़/ राजगढ़/मप्र। यहां स्थापित नेपाली शैली की 280 किलो वजनी नृसिंह की प्रतिमा शिल्प की दृष्टि से पूरे देश में दुर्लभ है। भगवान नृसिंह के नाम पर ही 339 साल पहले नरसिंहगढ़ नगर की स्थापना की गई थी। प्राचीन नृसिंह मंदिर में पर्व की प्रमुख पूजा, अनुष्ठान होंगे। मंदिर के गर्भगृह में स्थापित अष्टधातु की नृसिंह प्रतिमा शिल्प की दृष्टि से बहुत ही दुर्लभ है।
प्रतिमा में भगवान नृसिंह की गाेद में पड़े हुए राक्षस हिरण्यकश्यप का चेहरा राक्षस का न हाेकर हिरण का है, जाे बेहद दुर्लभ उदाहरण है। प्राचीन चित्राें और प्रतिमाओं में भी ऐसे उदाहरण बहुत ही कम हाेते थे। उनका कहना है कि संभवत: इसका काेई तंत्रात्मक महत्व हाे सकता है, क्याेंकि प्रतिमा काे नेपाली मूर्तिकार ने बनाया था और नेपाल की रहस्यमय तंत्र परंपरा पूरे विश्व में अनाेखी है। इसका वजन 280 किलो है। बहरहाल नृसिंह मंदिर की नृसिंह प्रतिमा आस्था का विषय हाेने के साथ-साथ अपने शिल्प की विशिष्टताओं की वजह से स्थानीय लाेगाें के लिए गर्व का विषय भी है।
अपने कुलदेवता काे समर्पित किया था अपना बसाया नगर
ऐतिहासिक तथ्याें के अनुसार सन 1681 में पाटन रियासत के विभाजन के बाद नरसिंहगढ़ और राजगढ़ रियासतें अस्तित्व में आईं। मूल रूप से दाेनाें रियासतें 2 सगे भाइयाें की थीं। बड़े भाई का राजगढ़ और छाेटे भाई का नरसिंहगढ़। इसलिए दाेनाें रियासताें की परंपराएं एक ही परिवार से संचालित हुईं। नरसिंहगढ़ के संस्थापक महाराज परशुराम ने अपनी बसाई रियासत अपने कुलदेवता औरर आराध्य भगवान नृसिंह काे समर्पित की। उनके नाम पर पहले मंदिर बनाया, उसके सामने अपने नाम पर परशुराम सागर तालाब का निर्माण किया औरर पहाड़ी पर किला बनाकर रियासत का संचालन शुरू किया। अपनी रियासत काे उन्हाेंने भगवान नृसिंह के सम्मान में नाम भी उन्हीं का दिया-नरसिंहगढ़।
हिरण्यकश्यप का तीव्र नाखूनों से वध कर रहे हैं भगवान, भक्त प्रहलाद-मां कयादू हाथ जोड़े खड़े हैं
प्रतिमा की शैली में नेपाली शिल्प की झलक आती है। करीब ढाई फिट ऊंची प्रतिमा का वजन 280 किग्रा है। इसमें भगवान नृसिंह उग्र स्वरूप में हिरण्यकश्यप दैत्य का अपने तीव्र नाखूनाें से वध कर रहे हैं और उनके दाेनाें ओर भक्त प्रह्लाद और उनकी मां कयादू हाथ जाेड़े खड़ी हैं। पीछे 2 भागाें में फटा हुआ खंभा दिखाई दे रहा है।
भगवान विष्णु के चाैथे अवतार हैं नृसिंह
विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के दशावताराें में भगवान नृसिंह चाैथे हैं। उन्हाेंने धर्म की स्थापना, भक्ति के भाव की रक्षा के लिए अपने भक्त प्रह्लाद की पुकार पर खंभा फाड़कर दर्शन दिए थे और प्रह्लाद के अत्याचारी और अधर्मी पिता हिरण्यकश्यप का वध किया था। अध्यात्म के अलावा विज्ञान की दृष्टि से देखें ताे सनातन परंपरा में मान्य भगवान विष्णु के दशावतार वास्तव में डार्विन के जीवन की अवधारणा काे प्रदर्शित करते हैं। इनमें नृसिंह अवतार मनुष्य के जंगलाें से निकलकर सभ्यता वाले दाैर में प्रवेश का प्रतीक भी है।
नृसिंह मंदिर में स्थापित भगवान की अष्टधातु की दुर्लभ प्रतिमा
जिले के नरसिंहगढ़ ना सिर्फ अपनी खूबसूरती और वास्तुकला के लिए जाना जाता है, बल्कि यहां पर कई ऐसे अनोखे स्थान भी हैं, उन्हीं में एक भगवान नरसिंह का मंदिर है. इस मंदिर में अष्ट धातु से निर्मित 280 किलो की भगवान नरसिंह की मूर्ती है. मंदिर की स्थापना 1681में राजा परशुराम ने कराई थी.
बताया जाता है कि, इस मंदिर में जो भगवान नरसिंह की मूर्ति स्थापित है वह विश्व में अनोखी और दुर्लभ है, नरसिंहगढ़ के राजा परशुराम भगवान नरसिंह के बहुत बड़े भक्त थे और उन्होंने ही इस मंदिर का निर्माण करवाया था और यहां पर भगवान नरसिंह की स्थापना की थी, उन्होंने अपने नगर का नाम भी भगवान नरसिंह के नाम पर नरसिंहगढ़ रखा था.
मान्यता है जैसे ही पहली आरती हुई, मूर्तिकार का निधन हाे गया
मंदिर की प्रबंधक वयाेवृद्ध दुर्गा देवी बैरागी इससे जुड़ी एक राेचक बात बताती हैं। उनका कहना है कि उन्हाेंने अपने पति अाैर ससुर से सुना था कि मंदिर की प्रतिमा बेहद जागृत है और इसे बनाते समय सभी वैदिक नियमाें का पालन किया गया था। यह इतना खास था कि जैसे ही मंदिर में प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के बाद पहली आरती हुई, उधर नेपाल में मूर्तिकार का निधन हाे गया।