काशी के महाश्मशान की अद्भुत परंपरा, जहां चिता की राख से खेली जाती है होली

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आपको सुनने में शायद यह अजीब लगे लेकिन यह सच है। दरअसल, काशी के महाश्मशान हरिश्चंद्र घाट में चिता की राख से होली खेलने की पुरानी परंपरा है।

काशी के महाश्मशान रंगभरी एकादशी जिसे आमलकी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन हरिश्चंद्र घाट पर चिता की राख से होली खेलने की परंपरा रही है। काशी के महाश्मशान में चौबीस घंटे चिंता जलती रहती है। ऐसा कहा जाता है कि यहां कभी भी चिंता की आग ठंडी नहीं होती। वैसे तो साल भर यहां लोग मायूस रहते हैं लेकिन होली के मौके पर यहां लोग खुशियां मनाते हैं।

आखिर कैसे शुरू हुई यह परंपरा

इस साल भी 3 मार्च को रंगभरी एकादशी के दिन वाराणसी के महाश्मशान में चिता की राख से होली खेली जाएगी। इस दौरान यहां, डमरू, घंटे और म्यूजिक सिस्टम से संगीत बजता है। ऐसी मान्यता है कि चिता की राख से होली खेलने की परंपरा करीब 300 साल से भी ज्यादा पुरानी है।

मान्यता के अनुसार भगवान शिव विवाह के बाद माता पार्वती को इस दिन गौना कराकर काशी पहुंचे थे। उसके बाद उन्होंने अपने गणों के साथ होली खेली थी लेकिन वह भूत, पिशाच और अघोरियों के साथ होली नहीं खेल पाए थे। तब उन्होंने रंगभरी एकादशी के दिन चिता की राख से इन सभी के साथ होली खोली थी इसलिए आज भी यहां यही परंपरा चली आ रही है। हरिश्चंद्र घाट पर महाश्मशान नाथ की आरती के बाद ही चिता की राख से होली खेलना शुरू किया जाता है।

Compiled: up18 News


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