कुंभ स्नान केवल पवित्र नदियों में स्नान करने तक सीमित नहीं है; इसका असली महत्व आत्मिक शुद्धि और आध्यात्मिक जागरूकता से जुड़ा है। जो व्यक्ति कुंभ समय गंगा स्नान के दौरान अपने पूर्व में किए गए पाप कर्मों का पश्चाताप करता है, उन्हें छोड़ने का संकल्प लेता है, और भविष्य में शुभ कर्म करने का दृढ़ निश्चय करता है—वही वास्तव में गंगा स्नान का सच्चा लाभ प्राप्त करता है।
संत-महात्माओं के दर्शन और उपदेश
कुंभ मेले में संत-महात्माओं, साधु-संतों एवं गुरुओं का सान्निध्य प्राप्त करना एक और महत्वपूर्ण पक्ष है। उनके उपदेशों को सुन कर, ग्रहण कर, और जीवन में उतार कर ही सच्ची आध्यात्मिक उन्नति संभव होती है। केवल बाहरी स्नान से आत्मिक शुद्धि संभव नहीं है, बल्कि बुरी आदतों को त्यागकर, शुभ कर्मों को अपनाकर, और धर्म के मार्ग पर चल कर ही मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
क्या केवल स्नान से मोक्ष संभव है?
यदि मात्र गंगा स्नान से मोक्ष संभव होता, तो मेंढक, मछली आदि जलचर जीव, जो निरंतर गंगा जी में रहते हैं, सब से पहले मोक्ष प्राप्त कर लेते। इस संदर्भ में गुरुबाणी में लिखा गया है: जल के मजन जे गति होवै, नित नित मेंढक नावै। जैसे मेंढक तैसे ओइ नर, फिर फिर जोनी आवै। अर्थात्, यदि केवल जल में स्नान करना ही मोक्ष का साधन होता, तो मेंढक, जो सदैव जल में रहते हैं, सब से पहले वही मुक्त हो जाते। सतगुरु अमर दास जी ने भी लिखा है: “मन मैले सब कुछ मैला, तन धोते मन अच्छा ना होए”।
मोक्ष प्राप्ति के लिए केवल बाहरी स्नान पर्याप्त नहीं; उसके लिए आत्मिक शुद्धि अनिवार्य है।
मोक्ष प्राप्ति का सच्चा मार्ग
मोक्ष की प्राप्ति के लिए मन के विकारों को दूर करना आवश्यक है। तीर्थों में स्नान से शारीरिक रोगों का निवारण हो सकता है, लेकिन मन के रोग—जैसे: बुरा बोलना, हर समय किसी की बुराई करनी, हर समय किसी के अवगुण देखने, अहंकार, लालच, ईर्ष्या, क्रोध आदि, केवल जल में स्नान करने से दूर नहीं हो सकते। इन मानसिक विकारों को समाप्त करने के लिए गुरु के उपदेशों को अपनाना, साधु-संतों के मार्गदर्शन में रहना, और शुभ कर्मों को अपनाना अति आवश्यक है।
कुंभ स्नान और आंतरिक शुद्धि
जो लोग कुंभ स्नान को केवल एक परंपरा या उत्सव मानते हैं, मन में छल-कपट रखते हैं, स्नान करके अहंकार करते हैं, दिखावे के लिए स्नान करते हैं, और अपने कर्मों में कोई परिवर्तन नहीं लाते—उनके लिए यह स्नान मात्र एक औपचारिकता रह जाता है। जो लोग मन में किसी भी प्रकार की बुराई रखकर कुंभ स्नान करते हैं, मन में बुराई होने के कारण उन को दो गुना होकर पाप लगता है। सतगुरु नानक देव जी ने लिखा है:
नावण चले तीरथीं, मन खोटे तनु चोर। एक भउ लथी नातियां, दुइ भौ चड़ीअस होर।
कुंभ स्नान का वास्तविक उद्देश्य आत्मशुद्धि, गुरुजनों के उपदेशों का पालन, तथा जीवन में धर्म और सद्गुणों को स्थापित करना है। मन के विकारों से मुक्ति केवल सत्संग, गुरु धारण करने, उनके उपदेशों को अपनाने और जीवन में धर्म का अनुसरण करने से संभव है। यही सच्चा कुंभ स्नान है और यही मोक्ष प्राप्ति का वास्तविक मार्ग है।
जो लोग केवल बाहरी दिखावे के लिए, अहंकारवश, या मात्र मेले का आनंद लेने के लिए कुंभ स्नान करते हैं, लेकिन अपने आचरण में कोई सुधार नहीं करते, वे मोक्ष के अधिकारी नहीं हो सकते। वास्तविक कुंभ स्नान तभी सार्थक होता है जब व्यक्ति आत्मविश्लेषण करे, अपने दोषों को पहचाने, सच्ची श्रद्धा से स्नान करे, और संत-महापुरुषों के उपदेशों को जीवन में धारण करे।
लेखक- नामधारी संप्रदाय के वर्तमान मुखी ठाकुर दलीप सिंह जी हैं।