पूर्व सोवियत संघ के अंतिम नेता मिखाइल गोर्बाचोफ़ का निधन

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‘ग्लासनोस्त’ या ‘खुलेपन’ की नीति के बाद सोवियत संघ में लोगों को सरकार की आलोचना करने का अधिकार मिला. ये ऐसी बात थी जिसके बारे में पहले कभी कल्पना भी नहीं की गई थी.

मिखाइल गोर्बाचोफ़ 1985 में सोवियत संघ या यूएसएसआर के राष्ट्रपति चुने गए थे. इसके बाद उन्होंने देश के दरवाज़े दुनिया के लिए ख़ोल दिए और बड़े स्तर पर कई सुधार किए.

हालाँकि, इन्हीं सुधारों की वजह से सोवियत संघ का विघटन हो गया. अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद वो इसे टाल नहीं सके, और वहीं से आधुनिक रूस का जन्म हुआ.

कुछ वर्षों से थे बीमार

गोर्बाचोफ़ ने जिस अस्पताल में आख़िरी सांसे लीं, उसकी ओर से बताया गया है कि सोवियत नेता लंबे समय से गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे.

हाल के वर्षों में उनकी सेहत लगातार ख़राब होती जा रही थी और उन्हें कई बार अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था.

इसी साल जून महीने में कुछ अंतर्राष्ट्रीय मीडिया रिपोर्टों में ये दावा किया गया था कि किडनी की बीमारी की वजह से गोर्बाचोफ़ को अस्पताल में भर्ती कराया गया है. गोर्बाचोफ़ के निधन का कारण अभी तक नहीं बताया गया है.

गोर्बाचोफ़ का अंतिम संस्कार मॉस्को में होगा. रूसी समाचार एजेंसी तास के अनुसार उन्हें नोवोदिवेची सेमेट्री उनकी पत्नी रइसा की कब्र के पास ही दफ़न किया जाएगा जिनका 1999 में ल्यूकेमिया से निधन हो गया था. रूस के कई बड़े नेताओं की कब्रें इसी कब्रगाह में हैं.

दुनिया भर से श्रद्धांजलि

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी गोर्बाचोफ़ के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है. पुतिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने रूसी समाचार एजेंसी इंटरफ़ैक्स को ये जानकारी दी.

गोर्बाचोफ़ के निधन के बाद दुनिया भर में उन्हें श्रद्धांजलि दी जा रही है. संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुटेरेस ने कहा उन्होंने ‘इतिहास की धारा बदल दी’.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव गुटेरेस ने ट्विटर पर दी गई श्रद्धांजलि में लिखा, “मिखाइल गोर्बाचोफ़ ख़ास तरह के राजनेता थे. दुनिया ने एक महान वैश्विक नेता, बहुपक्षवाद और शांति के बड़े पैरोकार को आज खो दिया.”

यूरोपीय संघ प्रमुख उर्सुला वॉन देर लेयेन ने भी गोर्बाचोफ़ को एक “भरोसेमंद और सम्मानित नेता” बताया है, जिन्होंने मुक्त यूरोप का रास्ता खोला था.
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा है कि वो गोर्बाचोफ़ के साहस और ईमानदारी के कायल हैं.
उन्होंने कहा, “यूक्रेन में पुतिन की आक्रामकता के समय में, सोवियत समाज को ख़ोलने के लिए गोर्बाचोफ़ की प्रतिबद्धता हम सबके लिए उदाहरण है.”

कम्युनिस्ट नेता से सत्ता के शिखर तक

गोर्बाचोफ़ 54 साल की उम्र में सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बने थे और इसी नाते वो देश के सर्वोच्च नेता भी बने.

उस समय वो पोलित ब्यूरो के नाम से जानी जाने वाली सत्तारूढ़ परिषद के सबसे कम उम्र के सदस्य थे.
कई उम्रदराज़ नेताओं के बाद उन्हें राजनीति में ताज़ा हवा के झोंके जैसा माना जाता था.

मिख़ाइल गोर्बाचोफ़ की ग्लासनोस्त नीति ने लोगों को सरकार की आलोचना का अधिकार दिया. लेकिन इसने देश के कई इलाकों में राष्ट्रवादी भावनाओं को भी जगा दिया जो अंततः सोवियत संघ के पतन का कारण बना.

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने अमेरिका के साथ हथियार नियंत्रण करने वाले सौदा किया. जब पूर्वी यूरोपीय देशों ने कम्युनिस्ट शासकों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई तो भी गोर्बाचोफ़ ने हस्तक्षेप से इंकार कर दिया.

पश्चिमी देशों में गोर्वाचोफ़ को सुधारों का जनक माना जाता है, जिन्होंने अमेरिका-ब्रिटेन सहित पश्चिमी देशों और सोवियत संघ के बीच तनाव की स्थिति में भी ऐसी परिस्थितियां बनाई, जिससे 1991 में शीत युद्ध का अंत हो गया.

पूर्व-पश्चिम के बीच संबंधों में बड़े बदलाव लाने में अहम भूमिका निभाने की वजह से गोर्बाचोफ़ को वर्ष 1990 में नोबेल शांति पुरस्कार से नवाज़ा गया.

लेकिन 1991 के बाद उभरे नए रूस में शैक्षिक और मानवीय परियोजनाओं पर काम करते हुए वो राजनीति के हाशिए पर आ गए.

गोर्बाचोफ़ ने 1996 में एक बार फिर से रूस की राजनीति में आने की नाक़ाम कोशिश की. उस समय राष्ट्रपति चुनावों में उन्हें सिर्फ़ 0.5 फ़ीसदी मत मिले थे.

-एजेंसी