वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ रणनीति के लिए समूचे विश्व की निगाहें अब भारत पर

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2 बड़े सम्मेलनों में बनी थी आतंक पर कड़े प्रहार की रणनीति

शांतिप्रिय राष्ट्रों के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने और आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला करने के मामले में निरंतर सहयोग के लिए एक पुल बनाने में मदद करने के लिए भारत ने अक्टूबर में दो वैश्विक कार्यक्रमों- दिल्ली में इंटरपोल की वार्षिक आम सभा और मुंबई एवं दिल्ली में संयुक्त राष्ट्र की आतंकवाद विरोधी कमेटी के एक विशेष सत्र की मेजबानी की थी। इन दोनों सम्मेलनों में आतंकवाद और उससे निपटने के तरीकों पर अहम रणनीति तैयार की गई।

दिल्ली में 18-19 नवंबर को नो मनी फॉर टेरर सम्मेलन

भारत सरकार का गृह मंत्रालय 18 और 19 नवंबर को नई दिल्ली में तीसरे मंत्रिस्तरीय ‘नो मनी फॉर टेरर’ सम्मेलन का आयोजन कर रहा है। गृह मंत्रालय ने बताया कि इस सम्मेलन का उद्देश्य पेरिस (2018) और मेलबर्न (2019) में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा आयोजित पिछले दो सम्मेलनों में आतंकवाद के वित्तपोषण से निपटने से संबंधित चचार्ओं को आगे बढ़ाना है।

जानकारी के मुताबिक नो मनी फॉर टेरर सम्मेलन में होने वाली चर्चा आतंकवाद और आतंकवाद के वित्तपोषण के वैश्विक रुझानों, आतंकवाद के लिए धन के औपचारिक और अनौपचारिक चैनलों के इस्तेमाल, उभरती प्रौद्योगिकियों और आतंकवाद के वित्तपोषण और संबंधित चुनौतियों का सामना करने के लिए अपेक्षित अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पर केंद्रित होगी। इसका इरादा दो दिनों में विस्तारित विचार-विमर्श के लिए 75 देशों और अंतरराष्ट्रीय निकायों के प्रतिनिधियों को एक साथ लाने का है।

भारत बना वैश्विक आतंक के खिलाफ रणनीति का अहम हिस्सा

गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि भारत ने तीन दशकों से अधिक अवधि में कई प्रकार के आतंकवाद और इसके वित्तपोषण का सामना किया है इसलिए वह इस तरह से प्रभावित राष्ट्रों के दर्द और आघात को समझता है। वहीं, इस तरह के सम्मेलन का आयोजन भारत सरकार द्वारा अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के मुद्दे को महत्व देने के साथ-साथ इस खतरे के खिलाफ उसकी जीरो टॉलरेंस की नीति और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ इस मुद्दे पर चर्चा करने की इच्छा को दर्शाता है।
भारत सरकार का मानना है कि वैश्विक स्तर पर, विभिन्न देश कई वर्षों से आतंकवाद और उग्रवाद से प्रभावित हैं। अधिकांश मामलों में हिंसा का पैटर्न भिन्न होता है, लेकिन यह बड़े पैमाने पर लंबे समय तक सशस्त्र सांप्रदायिक संघर्षों के साथ-साथ एक अशांत भू-राजनीतिक वातावरण से उत्पन्न होता है। इस तरह के संघर्षों का नतीजा अक्सर कुशासन, राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक अभाव और बड़े अनियंत्रित क्षेत्र के रूप में सामने आता है। यही वजह है कि इस तरह के सम्मेलन विभिन्न राष्ट्रों के बीच समझ और सहयोग विकसित करने का काम करेंगे, जिसका प्रयास भारत लंबे वक्त से करते आ रहा है।

Compiled: up18 News


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