जापान के क्‍वाड शिखर सम्‍मेलन पर बुरी तरह भड़क गया ड्रैगन, बोला… क्‍वाड कभी भी ‘एशियाई नाटो’ नहीं बन सकता

Exclusive

यूक्रेन में चल रहे रूस के भीषण हमले, लद्दाख में पीएलए की जंगी तैयारी और ताइवान पर मंडराते चीनी आक्रमण के खतरे के बीच क्‍वाड देशों के शीर्ष नेता जापान की राजधानी टोक्‍यो में मिल रहे हैं। अपनी सीमा के बेहद करीब हो रहे इस शिखर सम्‍मेलन पर ड्रैगन बुरी तरह से भड़क गया है। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने कहा है कि क्‍वाड कभी भी ‘एशियाई नाटो’ नहीं बन सकता है।

चीनी विदेश मंत्री भले ही क्‍वाड को खारिज कर रहे हैं लेकिन हकीकत यह है कि क्‍वाड धीरे-धीरे हिंद प्रशांत क्षेत्र में ड्रैगन पर नकेल कसने का सबसे बड़ा मोर्चा बनकर उभरा है। अब इसी मोर्चे का इस्‍तेमाल पीएम मोदी मोदी ड्रैगन पर नकेल कसने के लिए जा रहे हैं जो अक्‍सर भारत को जंग की धमकी देता रहता है।

आइए समझते हैं पूरा मामला….

विशेषज्ञों के मुताबिक चीनी ड्रैगन पर लगाम लगाने के लिए बनाए गए क्‍वाड में दक्षिण कोरिया भी शामिल होने का इच्‍छुक है जो अब तक बीजिंग के खिलाफ खुलकर आने से हिचक रहा था। इसके अलावा अन्‍य देश भी चीन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए क्‍वाड को एक वास्‍तविकता के रूप में देख रहे हैं और उम्‍मीद कर रहे हैं कि यह संगठन हिंद प्रशांत क्षेत्र में नेतृत्‍व वाली भूमिका निभाएगा।

अमेरिका में बाइडन सरकार के आने के बाद भी क्‍वाड की लगातार हो रही बैठकों से साफ हो गया है कि यह ‘एशियाई नाटो’ अब लगातार मजबूत हो रहा है। हालांकि चीन के रणनीतिकारों का दावा है कि क्‍वाड का ढांचा बहुत कमजोर है और भारत- अमेरिका संबंध लंबे समय तक संदेह के घेरे में रहेगा। उनका यह भी भी कहना है कि भारत हिंद प्रशांत क्षेत्र के लिए बनाए गए क्‍वाड की सबसे कमजोर कड़ी है।

भारत की राह में गुटन‍िरपेक्षता बड़ी बाधा: चीनी रणनीतिकारों का कहना है कि भारत पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय से चली आ रही अपनी गुटनिरपेक्षता की नीति के नाते किसी भी गुट में खुद को शामिल करने से परहेज करता है। साथ ही भारत और अमेरिका के बीच जटिल रिश्‍ते नई दिल्‍ली को क्‍वाड का पूर्ण सदस्‍य बनने से रोकता है। इसके अलावा अमेरिका, जापान और ऑस्‍ट्रेलिया जहां पूरी तरह से विकसित देश हैं, वहीं भारत अभी विकासशील देश है। ऐसे में भारत और तीन अन्‍य देशों के दर्जे में अंतर है। भारत अन्‍य तीन देशों से उलट अपनी अर्थव्‍यवस्‍था को खोलने से बचता है जो क्‍वाड के लिए लंबी अवधि में बाधा बनेगा। यही नहीं, चीनी रणनीतिकार यह भी दावा करते हैं कि अगर चीनी सेना ने हमला किया तो भारत को बचाने के लिए अमेरिका आगे नहीं आएगा। भारतीय विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के संदेह अपेक्षित हैं लेकिन इसे व्‍यापक परिप्रेक्ष्‍य में देखे जाने की जरूरत है।

भारतीय विशेषज्ञों का कहना है कि हिंद प्रशांत क्षेत्र में केवल चीन की बढ़ती आक्रामकता ही एक समस्‍या नहीं है। इसके अलावा आतंकवाद, खाड़ी देशों के ऊर्जा के स्रोत, ईरान, अफगानिस्‍तान और पाकिस्‍तान-भारत और चीन के परमाणु हथियार भी चिंता का सबब हैं। यूक्रेन संकट की वजह से अगर जापान और दक्षिण कोरिया भी परमाणु हथियार हासिल करते हैं तो इससे दिक्‍कतें और बढ़ जाएंगी। इन सभी चुनौतियों से निपटना किसी एक देश के बस की बात नहीं है और यहीं पर क्‍वाड अपनी भूमिका को प्रभावी तरीके से निभा सकता है। उन्‍होंने कहा कि भारत को इसी लाइन पर आगे बढ़ना चाहिए।

चीन की बात करें तो भारत के लिए वह सबसे महत्‍वपूर्ण सुरक्षा चुनौती है। भारत के लिए चीन से प्रत्‍यक्ष और अप्रत्‍यक्ष दोनों ही खतरा है। ड्रैगन से निपटने के लिए भारत को क्‍वाड देशों की भरपूर मदद की जरूरत होगी ताकि खुफिया जानकारी इकट्ठा की जा सके और हथियारों को साझा किया जा सके। भारत को क्‍वाड सम्‍मेलन में चीन के खिलाफ खुफिया निगरानी के लिए एक मंच पर जोर देना चाहिए ताकि किसी खतरे को दूर किया जा सके।

चीन के खिलाफ एकसाथ खोलने होंगे दो मोर्चे, तभी कसेगी नकेल

उन्‍होंने कहा कि चीन को मात देने के लिए जरूरी है कि उसे दो मोर्चो पर एक साथ उलझा दिया जाए। दुनिया में यह सभी देश जानते हैं कि केवल भारत और अमेरिका ही सैन्‍य रूप से चीन को चुनौती दे सकते हैं। चीन को भी इस बात का अहसास है कि अमेरिका, जापान और ऑस्‍ट्रेलिया हिंद महासागर में बीजिंग पर दबाव बनाने के लिए भारत पर भरोसा कर रहे हैं। इससे चीन के लिए एक साथ दो मोर्चे खुल जाएंगे और उसे दक्षिण चीन सागर से लेकर हिंद महासागर तक जूझना पड़ेगा। चीन को एक साथ कई मोर्चों पर जवाब दिया जा सके, यह भारत की क्‍वाड बैठक में कोशिश होनी चाहिए। यह भारत के हित में होगा कि चीन के खिलाफ और ज्‍यादा देश क्‍वाड की ओर आएं। चीन अपने विस्‍तारवाद को बढ़ावा देने के लिए हिंद महासागर में प्रवेश करना चाहता है ताकि चीनी नेतृत्‍व में प्रशांत महासागर को उससे जोड़ा जा सके। चीनी नौसेना की बंगाल की खाड़ी या अरब सागर में घुसपैठ भारत के लिए बड़ा सुरक्षा चुनौती होगी जिसे मोदी सरकार पसंद नहीं करेगी।

चीन की घेरेबंदी के लिए क्‍वाड देशों को भारत की क्षमता बढ़ानी होगी

विशेषज्ञों के मुताबिक चीन की घेरेबंदी के लिए क्‍वाड देशों को भारत की क्षमता को बढ़ाना होगा तभी भारतीय नौसेना चीन की नौसेना की हिंद महासागर में घुसपैठ को रोक सकेगी। इसके लिए जहां अमेरिका को भारत की सैन्‍य मदद करनी होगी, वहीं क्‍वाड के अन्‍य दोनों देशों को भारत को दूसरी तरह से की मदद देनी होगी। क्‍वाड और चीन दोनों की ही नजरें म्‍यांमार, थाइलैंड, मलेशिया और बांग्‍लादेश की ओर हैं जो हिंद-प्रशांत इलाके लिए बेहद अहम हैं। इसी को देखते हुए पिछले दिनों बाइडन ने आसियान देशों के साथ अमेरिका में अहम बैठक की थी। इस बैठक पर भी चीन ने तीखी प्रतिक्रिया जताई थी। कोरोना के बाद अब दुनिया चीन से अपनी कंपनियों को निकालना चाहती है और भारत की कोशिश इसे भुनाने की है। क्‍वाड शिखर सम्‍मेलन इसमें अहम भूमिका निभा सकता है। क्‍वाड के सदस्‍य देशों को भारत की रूस पर से निर्भरता को भी घटाना होगा। अमेरिका-जापान को भारत को अत्‍याधुनिक तकनीक देना होगा, वहीं ऑस्‍ट्रेलिया को भारत को परमाणु कच्‍चा माल की आपूर्ति करनी होगी।

बाइडन करेंगे नई डील

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन नए हिंद-प्रशांत व्यापार समझौते की शुरुआत करने वाले हैं। इसे क्षेत्र के लिए अमेरिकी प्रतिबद्धता का संकेत देने माना जा रहा है। व्हाइट हाउस ने कहा है कि नया हिंद-प्रशांत व्यापार समझौता आपूर्ति शृंखला, डिजिटल व्यापार, स्वच्छ ऊर्जा, कर्मचारी सुरक्षा और भ्रष्टाचार निरोधी प्रयासों आदि पर अमेरिका और एशियाई अर्थव्यवस्थाएं ज्यादा निकटता से काम करेंगी।

-एजेंसियां