द डबल स्टैंर्डड ऑफ एजिंग: समाज बढ़ती उम्र की महिलाओं को गायब कर देता है

अन्तर्द्वन्द

गायनोकोलॉजिस्ट डॉ. माला पाठक के अनुसार ‘जब स्त्री के पीरियड्स बंद होने लगते हैं तो यह एक असुविधाजनक स्थिति होती है। इसके लिए वह शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार नहीं होती। लेकिन वह जानती भी है कि एक दिन ऐसा तो होना ही है।’

मेनोपॉज की स्टेज में पहुंचने पर एक स्त्री का शरीर कैसा अनुभव करेगा और वह खुद कैसा महसूस करेगी, इसका उसे खुद अंदाजा नहीं होता।

वहीं जब औरत की झुर्रियों को देख हमारा समाज उसे असमर्थ करार कर देता है तो उथल-पुथल मचाते हार्मोन्स की वजह से वह खुद से नाराज हो बैठती है। दरअसल समाज औरत के शरीर को पीरियड्स, पुरुष की जरूरत और बच्चा पैदा करने से ही जोड़कर देखता है।

समाज बढ़ती उम्र की महिलाओं को गायब कर देता है

‘द डबल स्टैंर्डड ऑफ एजिंग’ किताब की लेखिका सुजैन सॉन्टैग (Susan Sontag) का कहना है, बढ़ती उम्र कल्पना की अग्नि परीक्षा है, यह एक नैतिक बीमारी और सामाजिक विकृति है, जो पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को कहीं ज्यादा प्रभावित करती है।

वहीं, ‘लेसन इन केमिस्ट्री’ की अमेरिकन लेखिका बोन्नी गर्मस (Bonnie Garmus) अपनी जिंदगी के अनुभवों के आधार पर कहती हैं कि यह दुनिया पुरुषों की है। यहां महिला के अनुभवों नहीं, उसकी उम्र की गिनती की जाती है और जब वह करियर का लंबा अनुभव रखने के बाद 50 के पार पहुंचती है तो वह पागल कहलाती हैं जबकि उसी उम्र का कोई पुरुष हो तो उसे अनुभवी और अक्लमंद कहा जाता है।

समाज खुद बढ़ती उम्र की महिला को ठप मानकर उसे उसकी पहचान से ही दूर करने लगता है।

प्रीमैच्योर एजिंग की बढ़ी दिक्कत

डर्मेटोलॉजिस्ट डॉ. शिखा खरे कहती हैं कि आजकल प्रीमैच्योर एजिंग होने लगी है। उम्र को काबू में रखने की कोशिश की जा रही है। लेकिन उम्र रोकी नहीं जा सकती। बढ़ती उम्र के डर से महिलाएं एंटी-एजिंग ट्रीटमेंट जल्दी लेना शुरू कर देती हैं। आज एंटी एजिंग का मार्केट बड़ा बन चुका है।

उम्र को काबू में करने का कोई परमानेंट उपाय नहीं है। लेकिन अच्छी डाइट, एक्सरसाइज, सनस्क्रीन का इस्तेमाल और बॉडी हाइड्रेटेड रखने से बढ़ती उम्र को संभाला जा सकता है।

विज्ञापन और सोशल मीडिया बढ़ती उम्र के दुश्मन

फिल्मों की हीरोइन हो, टीवी के विज्ञापन या फिर सोशल मीडिया की पोस्ट, हर प्लेटफॉर्म पर कम उम्र की लड़कियां दिख जाएंगी। इन सब में बढ़ती उम्र की महिलाएं कहां हैं? क्या वह दिखाई नहीं देती हैं? तो इसका जवाब है कि हम जिस जमाने में रह रहे हैं, उसे ‘जवां उम्र के भूत’ ने जकड़ा हुआ है। 21वीं सदी में समाज उम्र के फोबिया (age-phobic) में डूबा हुआ है।

हाल ही में न्यूयॉर्क टाइम्स में सेंट लॉरेंस शो पर आर्टिकल छपा जिसमें कम उम्र की मॉडल्स अपनी ब्रेस्ट का प्रदर्शन कर रही थीं। फैशन इंडस्ट्री तो यंग बॉडी के दम पर ही चलती है।

53 साल की फैशन मॉडल, एक्टिविस्ट और बिजनेसवुमन गीता जे ने 50 साल की उम्र में मॉडलिंग शुरू की। उन्होंने उम्र की वजह से कई ब्रैंड्स का रिजेक्शन झेला। इसके बाद उन्होंने ‘ऐज नॉट केज’ नाम से कैंपेन शुरू किया।

वह कहती हैं कि चूंकि मैं 50 साल की थी, इसलिए मुझे कई बार उम्र को लेकर भेदभाव झेलना पड़ा। जब मेरे पास कोई प्रोजेक्ट आता तो वह मेरी उम्र पूछते और कहते कि हम आपकी ऐज वाली मॉडल को मॉडर्न ड्रेस पहनाकर विज्ञापन नहीं बना सकते। मॉडलिंग में बढ़ती उम्र एक बहुत बड़ा मुद्दा है।

वह कहती हैं- मैंने सोशल मीडिया पर ‘थाई हाई स्लिट’ की ड्रेस पहनकर फोटो पोस्ट की जिसपर मुझे कमेंट मिला- ‘आपकी उम्र पर ये सूट नहीं करता’। लोग महिला की काबिलियत को नहीं उसकी उम्र को ही देखते हैं।

बाजार ने महिलाओं को उम्र के जाल में लपेटा

बाजार ने महिला की उम्र को कारोबार की बढ़ोतरी के लिए औरत को टारगेट किया है और औरत को अपनी उम्र छिपाने के लिए कई ब्यूटी प्रोडक्ट्स ऑफर भी किए हैं। बाजार कहता है कि स्त्री को ब्यूटी वर्ल्ड की चीजों के जाल में लपेटो और बेचो। लोग औरत की बढ़ती को लेकर बातें बनाते हैं, ट्रोल दौड़ लगाते हैं और महिलाएं बैठकर सुबकती हैं।

ये तो होना ही था। इसे अपनी कमजोरी नहीं, अपनी सारी उम्र कमाई क्षमताओं और अनुभवों से मिली विरासत, पहचान और ताकत समझें।

बहुत कुछ सीखने के बाद स्त्री यहां तक पहुंचती है और बहुत कुछ हासिल कर फैशन फ्री बनकर अपना फैशन कंफर्ट खुद चुनती है। बहुत मेहनत करने के बाद उम्र इस मुकाम पहुंचाती है।

इन गुजरे सालों पर नजर दौड़ाएं, क्या सीखा, उसे शेयर करें, ना की उम्र के गुजरने पर मातम करें।

– एजेंसी


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