रणथंभौर के त्रिनेत्र गणेश जी का मंदिर बहुत प्राचीन मंदिर है । गणेश जी की सभी देवताओं में प्रथम पूजा की जाती है । यह मंदिर वैसे तो रणथंबोर में स्थित है लेकिन यहां आने के लिए हमें राजस्थान की राजधानी जयपुर से सवाई माधोपुर आना पड़ता है, जो कि लगभग 166 किलोमीटर की दूरी पर है।
यह मंदिर भारत के राजस्थान प्रांत में सवाई माधोपुर जिले में स्थित है, जो कि विश्व धरोहर में शामिल रणथंभोर दुर्ग के भीतर बना हुआ है। अरावली और विन्ध्याचल पहाड़ियों के बीच स्थित रणथम्भौर दुर्ग में विराजे रणतभंवर के लाड़ले त्रिनेत्र गणेश के मेले की बात ही कुछ निराली है। यह मंदिर प्रकृति व आस्था का अनूठा संगम है। भारत के कोने-कोने से लाखों की तादाद में दर्शनार्थी यहाँ पर भगवान त्रिनेत्र गणेश जी के दर्शन हेतु आते हैं और कई मनौतियां माँगते हैं, जिन्हें भगवान त्रिनेत्र गणेश पूरी करते हैं।
इस गणेश मंदिर का निर्माण महाराजा हम्मीरदेव चौहान ने करवाया था लेकिन मंदिर के अंदर भगवान गणेश की प्रतिमा स्वयंभू है। इस मंदिर में भगवान गणेश त्रिनेत्र रूप में विराजमान है जिसमें तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। पूरी दुनिया में यह एक ही मंदिर है जहाँ भगवान गणेश जी अपने पूर्ण परिवार, दो पत्नी- रिद्दि और सिद्दि एवं दो पुत्र- शुभ और लाभ, के साथ विराजमान है।
भारत में चार स्वयंभू गणेश मंदिर माने जाते है, जिनमें रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेश जी प्रथम है। इस मंदिर के अलावा सिद्दपुर गणेश मंदिर गुजरात, अवंतिका गणेश मंदिर उज्जैन एवं सिद्दपुर सिहोर मंदिर मध्यप्रदेश में स्थित है। कहाँ जाता है कि महाराजा विक्रमादित्य जिन्होंने विक्रम संवत् की गणना शुरू की प्रत्येक बुधवार उज्जैन से चलकर रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेश जी के दर्शन हेतु नियमित जाते थे, उन्होंने ही उन्हें स्वप्न दर्शन दे सिद्दपुर सीहोर के गणेश जी की स्थापना करवायी थी।
सवाई माधोपुर से रणथंबोर जाने के लिए टैक्सी मिल जाती है । यह दूरी 10 से 12 किलोमीटर तक की है । जिसको तय करने में 15 से 20 मिनट लग जाते हैं । रास्ते में जो जंगल आता है उसमें कभी-कभी शेर और चीते भी दिखाई देते हैं । रणथंबोर के दुर्ग में 7 दरवाजे पार करने के बाद त्रिनेत्र गणेश जी महाराज के दर्शन होते हैं । यहां पर मान्यता है कि इस रास्ते में जो लोग दर्शन करने आते हैं, वह पहले गणेश जी से प्रार्थना करके और पत्थरों से घर बनाते हैं ।
गणेश जी की कृपा से उनके बड़े-बड़े मकानों का बिना किसी विघ्न के निर्माण हो जाता है और सभी तरह की मनोकामनाएं पूरी होती हैं जिनके घर में विवाह होता है तो सबसे पहले विवाह की पत्रिका त्रिनेत्र गणेश जी को चढ़ा कर विवाह में आने का निमंत्रण दिया जाता है । अलग-अलग भाषाओं में पूरे भारत से सभी विवाह की पत्रिकाएं गणेश जी को भेजते हैं । और सभी पत्रिकाओं को गणेश जी को पढ़कर सुनाया जाता है । वे विवाह बिना किसी बिना विघ्न के संपन्न हो जाते हैं ।
अगर किसी के संतान नहीं होती है तो वहां पर दर्शन करके मनोकामना मांगकर श्रीफल प्रसाद पूर्वक दिया जाता है और मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालु गणेश जी के यहां स्वामिनी करके प्रसाद चढ़ाते हैं । जो लोग नित्य गणेश जी के दर्शन करने आते हैं वह अपने सुखमय जीवन का आधार गणपति जी को ही मानते हैं ।
-एजेंसी
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