तारा तारिणी माता का शक्तिपीठ मंदिर (Taratarini Shaktipeeth Temple) उड़ीसा के ब्रह्मपुर यानी आज के बेरहामपुर शहर से 29 किलोमीटर दूर ऋषिकुल्या नदी के किनारे स्थित पुण्यगिरी पर्वत पर है। पुण्यगिरी पर्वत को इस क्षेत्र में रत्नागिरी, तारिणी पर्वत और कुमारी पहाड़ के नाम से भी जाना जाता है।
ओडिशा के केंउझर गांव में स्थित इस मंदिर में माता सती का स्तन गिरा था, इसिलए इसे शक्तिपीठ कहा जाता है। इस मंदिर को तारिणी माता मंदिर नाम से जाना जाता है। यह मंदिर इसलिए भी प्रसिद्ध है क्योंकि यहां माता रानी को नारियल चढ़ाने की परंपरा है। यहां प्रतिदिन देवी को लगभग 30 हजार नारियल चढ़ाए जाते हैं। इस हिसाब से मंदिर में सालभर में लगभग 40 करोड़ रुपए के नारियल पहुंचते हैं। इतने नारियल यहां कैसे आते हैं, यह जानना बहुत ही दिलचस्प है।
तारिणी माता मंदिर में जो नारियल चढ़ाएं जाते हैं, वे देश के अलग-अलग हिस्सों से भेजे जाते हैं। मान लीजिए आप अगर आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, झारखंड या देश के किसी भी हिस्से में रहते हैं और माता रानी को नारियल चढ़ाना चाहते हैं तो आपके मंदिर तक आने की जरूरत नहीं है। आपको सिर्फ ओडिशा आने वाले ट्रक या बस के ड्राइवर को नारियल देना है, वो माता के दरबार में आपका दिया नारियल पहुंचा देगा। ये परंपरा पिछले 600 सालों से चली आ रही है। ओडिशा के 30 जिलों में नारियल के लिए बॉक्स रखवाए गए हैं। ड्राइवर इनमें नारियल डाल देते हैं और वहां से इन्हें मंदिर में भेज दिया जाता है।
रोज आते हैं 30 हजार नारियल
एक रिपोर्ट के अनुसार, मंदिर में लगभग 30 हजार नारियल देश के अलग-अलग हिस्सों से भक्तों द्वारा माता को भेजे जाते हैं। इस तरह लगभग 1 करोड़ नारियल सालभर में यहां आते हैं। इन नारियलों से ही मंदिर को लगभग साढ़े तीन करोड़ रूपए मासिक और 40 करोड़ रूपए सालना की कमाई हो जाती है।
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, केंउझर के तत्कालीन राजा गोबिंदा भंजदेव ने मां तारिणी का ये मंदिर 1480 में बनवाया था। कांची युद्ध के दौरान राजा मां को पुरी से केंउझर ला रहे थे, पर शर्त यह थी कि राजा को पीछे मुड़कर नहीं देखना था, नहीं तो माता वहीं रूक जाएगी। घटगांव के पास जंगलों में राजा को ऐसा लगा कि माता उसके पीछे नहीं आ रही, यही देखने के लिए जैसे ही वो पीछे पलटा माता उसी स्थान पर स्थित हो गई। राजा ने भी उसी स्थान पर माता का मंदिर बनवा दिया।
Compiled: up18 News
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