सुप्रीम कोर्ट की SC/ST एक्ट मामले में बड़ी टिप्पणी, अभद्र भाषा कहना मुकदमे के लिए काफी नहीं

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सुप्रीम कोर्ट ऐसे मामले की सुनवाई कर रहा था जिसमें एक व्यक्ति के विरुद्ध एससी-एसटी एक्ट की धारा-तीन (एक) (10) के तहत चार्जशीट दाखिल किया गया था. यह धारा एससी या एसटी के किसी सदस्य को शर्मिंदा करने के उद्देश्य से सार्वजनिक रूप से देखे जाने वाले स्थान पर जानबूझकर अपमान करने या धमकी देने से संबंधित है.

जस्टिस रविन्द्र भट और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने कहा कि विधायिका का उद्देश्य स्पष्ट प्रतीत होता है कि शर्मिंदा करने के लिए हर अपमान या धमकी एससी-एसटी एक्ट की धारा-तीन (एक) (10) के तहत अपराध नहीं होगा, जब तक कि ऐसा सिर्फ पीड़ित के एससी या एसटी होने की वजह से न किया जाए.

कोर्ट ने कहा कि अगर कोई किसी दूसरे व्यक्ति को सार्वजनिक स्थान पर बेवकूफ, मूर्ख या चोर कहता है तो यह निश्चित रूप से अपशब्दों या अभद्र भाषा के इस्तेमाल से जानबूझकर अपमान या शर्मिंदा करने का कृत्य होगा. अगर इन शब्दों का उपयोग एससी या एसटी के विरुद्ध किया जाता है तो भी जातिसूचक टिप्पणियों के अभाव में ये धारा-तीन (एक) (10) लागू करने के लिए पर्याप्त नहीं होंगे.

SC/ST एक्ट की धारा-18

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि SC/ST एक्ट की धारा-18, सीआरपीसी की धारा-438 के तहत अदालत के अधिकार क्षेत्र को लागू करने पर रोक लगाती है. यह धारा गिरफ्तारी की आशंका वाले व्यक्ति को जमानत देने से संबंधित है.

आरोपी के विरुद्ध आपराधिक प्रक्रिया रद्द करने वाले सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसके विरुद्ध दर्ज FIR या दाखिल चार्जशीट में इस बात जिक्र नहीं है कि घटना के वक्त उस स्थान पर शिकायतकर्ता और उसके परिवार के दो सदस्यों के अलावा कोई और मौजूद था. इसलिए अगर अपीलकर्ता ने कुछ कहा भी था जो लोगों के देख सकने वाले स्थान पर नहीं था तो SC/ST एक्ट की धारा-तीन (1) (10) का मूल तत्व अनुपस्थित है.

Compiled: up18 News