तमाशबीन जनता को तमाशा दिखाते सत्ताधीश…

अन्तर्द्वन्द

एक राज्य में विधानसभा चुनाव चल रहा है, पहले दौर का मतदान हो गया है और उसी राज्य के उसी क्षेत्र में अगले चरण में मतदान होना है और वहीं पर अपनी पार्टी को वोट दिलवाने की यात्राओं में हाथ जोड़े प्रधानमंत्री का रोड शो भी चल रहा है। संविधान को माथे से लगाने वाले ही संविधान की मर्यादा का सड़कों पर खून करते देश के प्रधानमंत्री से इससे निम्नस्तरीय और क्या उम्मीद की जा सकती है।

यह देखकर चुनाव आयोग की आंखों का पानी सूखने की बजाय मरा हुआ कहा जा सकता है। किसी की प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी के बिकते अधिकारी की तरह इस आयोग का जमीर ही नहीं बल्कि अस्तित्व भी बिक चुका है।

किसी भी राजनीतिक दल को अपने लिए चालाकियां करने का पूरा अधिकार है लेकिन जब सत्ता में बैठी पार्टी अपने हित साधने के लिए धूर्तता करने लग जाये तो उस देश के भविष्य की ओर देखना बंद कर देना चाहिए।

सत्ताधारी पार्टी के पास देश की तमाम शक्तियां होती हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह अपने अलावा किसी अन्य को जिंदा रहने के लायक भी न समझे। शक्तियां हाथ में होने से वह अपने विरोधियों को राजनीतिक रूप से खत्म करने के अपने अधिकार को अपना गहना नहीं बना सकती। लेकिन आज इस देश का यही दुर्भाग्य है कि सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों को अपने सिवा दूसरों को इंसान समझना तक गवारा नहीं है।

प्रधानमंत्री के पद की गरिमा को तार-तार करते हुए वे विपक्ष को घटिया शब्दों से गरियाने लगते हैं और उस पद की जिम्मेदारी के निर्वहन में छोटे ही रह जाते हैं। हाथ नचाते हुए ऊंची आवाज में दूसरों की भर्त्सना करना आसान है लेकिन ऐसे में आप अपने कद और पद की मर्यादा को कितना क़ायम रख पाते हैं, यही बात आपकी योग्यता की पहचान करवा देती है।

सभ्यता के कपड़े उतार देना सभ्यता की समस्या नहीं, बल्कि असभ्यता को सभ्यता के लिबास में रखना एक बड़ी समस्या है। दिक्कत यह है कि आज यही हो रहा है। असभ्यता को जबरन सभ्य दिखाना, देश की सभ्यता और संस्कृति को नंगा किया जाना है।

50 किमी. लंबा रोड शो करते प्रधानमंत्री के पास इतना धैर्य है, इतनी फुर्सत है कि वे महीनों देश का काम छोड़कर अपनी पार्टी को चुनाव जितवाते घूम सकते हैं। यह इस देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य ही है, जहां युवा बेरोजगार हैं, व्यापार ठप पड़ा है, महंगाई घरों में नंगा नाच रही है और राजसत्ता के नशे में चूर प्रधानमंत्री भविष्य के ख्वाब बुनते हुए जनता को मूर्ख बनाते घूम रहे हैं।

सवाल वही की क्या सत्ताधीशों के पास इतनी फुर्सत है कि सभी काम छोड़कर केवल चुनाव का ही प्रचार करते रह सकते है ।

-माया