लोकलुभावन योजनाओं को चलाने वाले कुछ राज्‍य श्रीलंका की तरह कंगाली के कगार पर

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चुनावों में मतदाताओं को लुभाने के लिए राजनीतिक दलों में सबकुछ फ्री देने की होड़ मची रहती है और इस कारण देश के कई राज्य बदहाली के कगार पर पहुंच गए हैं।

देश के कई शीर्ष नौकरशाहों ने चेतावनी दी है कि अगर इस प्रवृत्ति पर रोक नहीं लगी तो ये राज्य श्रीलंका और यूनान की तरह कंगाल हो जाएंगे। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपनी चिंता से अवगत कराया है।

प्रधानमंत्री के साथ करीब चार घंटे तक चली बैठक में कुछ सचिवों ने इस बारे में खुलकर बात की। उनका कहना था कि कुछ राज्य सरकारों की लोकलुभावन घोषणाओं और योजनाओं को लंबे समय तक नहीं चलाया जा सकता। अगर इन पर रोक नहीं लगी तो इससे राज्य आर्थिक रूप से बदहाल हो जाएंगे। उनका कहना है कि लोकलुभावन घोषणाओं और राज्यों की राजकोषीय स्थिति के बीच संतुलन बनाने की जरूरत है। अगर ऐसा नहीं होता है तो इन राज्यों का श्रीलंका या यूनान जैसा हाल हो सकता है।

कौन-कौन राज्य हैं शामिल

सूत्रों के मुताबिक इनमें से कई सचिव केंद्र में आने से पहले राज्यों में अहम पदों पर काम कर चुके हैं। उनका कहना है कि कई राज्यों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है और अगर वे भारतीय संघ का हिस्सा नहीं होते तो अब तक कंगाल हो चुके होते। अधिकारियों का कहना है कि पंजाब, दिल्ली, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों की सरकारों ने जो लोकलुभावन घोषणाएं की हैं, उन्हें लंबे समय तक नहीं चलाया जा सकता है। इसका समाधान निकालने की जरूरत है।

कई राज्यों में विभिन्न राजनीतिक दलों की सरकारें लोगों को मुफ्त बिजली दे रही हैं। इससे सरकारी खजाने पर बोझ पड़ रहा है। इससे हेल्थ और एजुकेशन जैसे अहम सामाजिक सेक्टरों के लिए फंड की कमी हो रही है।

बीजेपी ने भी हाल में हुए विधानसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश और गोवा में मुफ्त एलपीजी कनेक्शन देने के साथ ही दूसरी कई लोकलुभावन घोषणाएं की थीं।

पुरानी पेंशन स्कीम पर भी चिंता

इसी तरह छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे राज्यों ने पुरानी पेंशन स्कीम बहाल करने की घोषणा की है। केंद्र सरकार के अधिकारियों ने भी इस पर चिंता जताई है।

अधिकारियों का कहना है कि चुनावों में राजनीतिक दलों के बीच रेवड़ियां बांटने की होड़ मची रहती है। यह राज्यों और केंद्र सरकार की आर्थिक स्थिति के लिए अच्छी बात नहीं है।

राज्यों को केंद्रीय करों और जीएसटी (GST) में हिस्सा मिलता है लेकिन उनके पास रेवेन्यू के सीमित संसाधन हैं। राज्यों सरकारों को शराब और पेट्रोल पर वैट (VAT) से रेवेन्यू मिलता है। साथ ही प्रॉपर्टी और गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन से भी उनकी कमाई होती है। इस तरह उनके पास लोकलुभावन घोषणाओं के लिए बजट की व्यवस्था करने में सीमित संसाधन हैं। विपक्षी दलों के शासन वाले कई राज्यों ने केंद्र पर फंड रोकने का आरोप लगाया है।

लेकिन केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इन आरोपों का खंडन किया है। उन्होंने दावा किया कि कई दशकों के बकाए को पिछले वित्त वर्ष के दौरान क्लीयर किया गया।

मोदी की सलाह

अधिकारियों ने कहा कि प्रधानमंत्री ने सचिवों से कहा कि गरीबी को खत्म करने के लिए हरसंभव उपाया किए जाने चाहिए। साथ ही उन्हें गवर्नेंस के लिए सुझाव देने चाहिए क्योंकि उन्होंने पास राज्य और केंद्र के साथ काम करने का व्यापक अनुभव है। एक अधिकारी ने कहा कि इस मीटिंग में गवर्नेंस और गरीबी उन्मूलन के लिए रोडमैप बनाने पर चर्चा हुई। प्रधानमंत्री ने हमें एक टीम के रूप में काम करने और सभी मुद्दों पर राष्ट्रीय संदर्भ में सोचने की सलाह दी है। साल 2014 के बाद मोदी की सचिवों के साथ यह इस तरह की नौवीं बैठक थी।

श्रीलंका क्यों हुआ बदहाल

पड़ोसी देश श्रीलंका आजादी के बाद सबसे खराब आर्थिक स्थिति से गुजर रहा है। पेट्रोल-डीजल खत्म हो गया है। 13-13 घंटे बिजली गुल रहती है, अस्पतालों का कामकाज रुक गया है और देश पर मोटा कर्ज चढ़ चुका है। लोगों को खाने के लाले पड़ गए हैं। देश में इस बदहाली के कई कारण हैं। जब 2019 में मौजूदा सरकार सत्ता में आई थी तब सभी को खुश करने के लिए उसने सभी लोगों के टैक्स आधे कर दिए थे। इससे हालात खराब होने लगे और श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार खाली हो चुका है। उसके पास डीजल खरीदने के लिए भी पैसे नहीं बचे हैं।

-एजेंसियां


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