उत्तराखंड के जोशीमठ शहर पर लंबे समय से खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। अब लोग बेघर हो रहे हैं। आादि गुरु शंकराचार्य की तपोभूमि ज्यार्तिमठ भी भूधंसाव की जद में आ रहा है। इस तरह से नगर धीरे-धीरे अपने सांस्कृतिक और ऐतिहासिक अस्तित्व को खो रहा है। यही हाल रहा तो भविष्य में जोशीमठ के मठ-मंदिरों की केवल कहानियां ही सुनाई देंगी।
वैसे तो बदरीनाथ जाने वाले तीर्थयात्री भी जब जोशीमठ में भगवान नृसिंह के मंदिर में दर्शन करने जाते हैं तो वहां इस भविष्यवाणी के बारे में बताया जाता है। इसमें कहा जाता है कि भविष्य में बदरीनाथ धाम विलुप्त हो जाएगा और जोशीमठ से 25 किमी दूर भविष्यबदरी में भगवान बदरीविशाल के दर्शन होंगे। जोशीमठ में हो रहे भूधंसाव और जमीन के नीचे से निकलने वाले पानी के नालों को देख कर लोग अब इस भविष्यवाणी से इसे जोड़ कर देख रहे हैं।
एक तरफ धार्मिक भविष्यवाणी है तो वहीं दूसरी तरफ वैज्ञानिक कारण भी बताए जा रहे हैं। इन कारणों को आज या कल में नहीं खोजा गया है, बल्कि जोशीमठ पर आए इस खतरे को लेकर साल 1976 में भी भविष्यवाणी कर दी गई थी। 1976 में तत्कालीन गढ़वाल कमिश्नर एमसी मिश्रा की अध्यक्षता वाली समिति ने एक रिपोर्ट दी थी, जिसमें जोशीमठ पर खतरे का जिक्र किया गया था। यह भी बताया गया था कि भूस्खलन से जोशीमठ को बचाने के लिए स्थानीय लेागों की भूमिका किस तरह तय की जा सकती है, वृक्षारोपण किया जा सकता है। इसके बाद साल 2001 में भी एक रिपोर्ट में इस खतरे को लेकर आगाह किया गया था।
अलकनंदा और धौलीगंगा नदियों से हो रहा भारी कटान
एमपीएस बिष्ट और पीयूष रौतेला ने एक रिसर्च में बताया था कि इस भूधंसाव के पीछे कई कारण है। सेंट्रल हिमालय पर मौजूद जोशीमठ का मेन सेंट्रल थ्रस्ट क्षेत्र में होना इसकी सबसे बड़ी वजह मानी जा रही है।
उत्तराखंड स्पेस एप्लीकेशन सेंटर के निदेशक एमपीएस बिष्ट के अनुसार उत्तराखंड के ज्यादातर गांव 1900 से 2500 मीटर की ऊंचाई पर बसे हुए हैं। यह गांव इंडियन और तिब्बतन प्लेट के बीच मौजूद उन क्षेत्रों में भी हैं, जो मेन सेंट्रल थ्रस्ट (बेहद कमजोर क्षेत्र) में मौजूद हैं। यहां छोटे-छोटे भूकंप, पानी से भू कटाव को भी इस खतरे की वजह माना जा रहा है। इसमें अलकनंदा और धौलीगंगा दोनों ही नदियां जोशीमठ शहर के नीचे की मिट्टी का कटान कर रही हैं।
कभी भी खत्म हो सकता है जोशीमठ
शहर पर बेतरतीब निर्माण कार्य और टनल के निर्माण कार्य भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। जोशीमठ पर खतरे के रिसर्च को गंभीरता से नहीं लिया गया, जिसका खामियाजा आज लोगों भुगतना पड़ रहा है। स्थानीय लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि अंधाधुंध विकास का खामियाजा अब पूरे शहर का भुगतना पड़ रहा है। पहाड़ी राज्य विकास का बड़ा खामियाजा भुगत रहा है। जोशीमठ शहर आज खतरे के मुहाने पर खड़ा है और कभी भी खत्म हो सकता है।
सड़क पर उतरे लोग तो जागा सरकारी तंत्र
जोशीमठ को बचाने के लिए लोग आंदोलन कर रहे हैं। जब यह आवाज राजधानी देहरादून में उठी तो पूरा सरकारी तंत्र सक्रिय हो गया। गुरुवार को जब लोगों ने नेशनल हाईवे-58 को जाम कर दिया और पर्यटक परेशान होने लगे तो पुलिस से लेकर प्रशासन तक उन्हें मनाने और निरीक्षण के लिए उतर आया। चमोली पुलिस प्रशासन ने भी स्थलीय निरीक्षण किया तो वहीं देर शाम सचिव आपदा प्रबंधन व टीम ने भी जोशीमठ में निरीक्षण किया। आज भी यह टीम मनोहर वार्ड सहित अन्य वार्डों का निरीक्षण कर रही है। लोगों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट किया जा रहा है।
दो हजार प्री-फेब्रिकेटेड भवन तैयार हो रहे तैयार
जोशीमठ में हो रहे भू-धंसाव की समस्या के दृष्टिगत जिला प्रशासन ने बीआरओ के अंतर्गत हेलंग बाईपास के निर्माण कार्य, एनटीपीसी तपोवन विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना समेत अन्य निर्माण कार्यों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। इसके साथ ही प्रशासन ने जोशीमठ-औली रोपवे का संचालन भी अग्रिम आदेशों तक रोक दिया है। प्रशासन ने प्रभावित परिवारों को शिफ्ट करने के लिए एनटीपीसी और एचसीसी कंपनियों को एहतियातन अग्रिम रूप से 2-2 हजार प्री-फेब्रिकेटेड भवन तैयार कराने के भी आदेश दिए हैं। मुख्यमंत्री ने इस मसले पर आज शाम को सचिवालय में समीक्षा बैठक भी बुलाई है।
वहीं सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि जोशीमठ बचाने के लिए सरकार हरसंभव प्रयास कर रही है। जोशीमठ पर आए खतरे को लेकर सभी वैज्ञानिक रिपोर्ट्स का अध्ययन किया जा रहा है। वे स्वयं भी जल्द ही जोशीमठ का दौरा कर स्थिति का जायजा लेंगे।
Compiled: up18 News
Discover more from Up18 News
Subscribe to get the latest posts sent to your email.