मृत्यु का महोत्सव है सल्लेखना समाधि: जैन मुनि डॉ.मणिभद्र महाराज

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आत्महत्या और समाधि मरण में जमीन-आसमान का अंतर
जैन भवन, लोहामंडी में जैन मुनि ने किया शंका का समाधान

आगरा: नेपाल केसरी, मानव मिलन संगठन के संस्थापक डॉ. मणिभद्र महाराज ने मंगलवार को सल्लेखना समाधि पर विशेष प्रवचन दिया और कहा कि जब जीवन में मृत्यु निश्चित है तो फिर उसे महोत्सव बना देना चाहिए। वहीं उन्होंने स्पष्ट किया कि आत्म हत्या और समाधि मरण में जमीन-आसमान का अंतर है। कुछ लोग वेबजह विवाद पैदा करते हैं।

जैन भवन, स्थानक, लोहामंडी में जैन मुनि डॉ.मणिभद्र महाराज ने कहा कि सल्लेखना समाधि जीवन की महत्वपूर्ण घटना है। श्रावक और साधुओं के तीन-तीन मनोरथ होते हैं। अंतिम मनोरथ समाधि मरण यानि सल्लेखना होता है। श्रावक ही नहीं, साधु भी चाहते हैं कि उनका समाधि मरण हो। उन्होंने बताया कि जीवन में मृत्यु दो प्रकार की होती है। एक पाल मरण दूसरी पंडित मरण । पाल मरण में व्यक्ति जीवन में बार-बार मरता है। यानि वह ऐसे कर्म करता है कि आत्मा ही दुत्कारती है। पंडित मरण जीवन में एक बार होता है, जिसमें व्यक्ति को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इसलिए मृत्यु को संवारना ही समाधि मरण है।

उन्होंने कहा कि लोगों में भ्रम है कि जिसकी मौत अचानक आ जाए, वह सबसे अच्छी होती है, लेकिन जैन धर्म में ऐसा नहीं है। जीवन में मृत्यु का अहसास हो जाए । उसके बीच की स्थिति पता चल जाए, वही सच्ची मृत्यु होती है। जीवन और मृत्यु के बीच की स्थिति में व्यक्ति क्षमा याचना करता है, मन को पवित्र करता है और आत्म विवेचना कर लेता है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि जीवन भर क्रोध, मोह, माया, ममता, कषाय आदि से व्यक्ति घिरा रहा और अंतिम समय में सल्लेखना कर ले। जिन श्रावकों ने जीवन भर जैन धर्म का पालन किया हो, वही समल्लेखना समाधि ले सकते है।

जैन मुनि ने कहा कि कई बार कुछ लोग सल्लेखना समाधि को लेकर विवाद पैदा करते हैं। कहते हैं कि यह तो आत्म हत्या है। जबकि आत्म हत्या और सल्लेखना समाधि में जमीन-आसमान का अंतर है। आत्म हत्या तो क्रोध, मोह, माया, द्वेष वश की जाती है, जबकि समाधि मरण में इन दुगुर्णों पर विजय प्राप्त की जाती है। यह एक बहुत बड़ी साधना होती है। इससे आत्मा पवित्र होती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। संथारा लेने वाले को कोई कामना ही नहीं रहती है। वह तो साधना में लीन रहता है।

इससे पूर्व जैन मुनि पुनीत महाराज ने प्रवचन दिए। कहा कि अपने चिंतन, मनन करते हुए अपने जीवन को सरल और पवित्र बनाएं।

इस चातुर्मास पर्व में नेपाल से आए डॉक्टर मणिभद्र के सांसारिक भाई पदम सुवेदी का नौवें दिन का उपवास जारी है। मनोज जैन लोहामंडी का सातवें दिन की तपस्या चल रही है। आयंबिल की तपस्या की लड़ी गीता गादिया ने आगे बढ़ाई। रविवार के नवकार मंत्र के जाप का लाभ मधु बुरड़ परिवार ने लिया।

-up18news