लखनऊ। डॉ एपीजे अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी (Dr APJ Abdul Kalam Technical University) उत्तर प्रदेश अपने स्टूडेंट्स के साथ बड़ा खिलवाड़ कर रही है. जनवरी 2023 से यह यूनिवर्सिटी एग्जाम तो करवा रही है लेकिन पूरा रिजल्ट नहीं घोषित कर पा रही है. कैरी ओवर के हजारों स्टूडेंट परीक्षा परिणाम पाने को मारे-मारे घूम रहे हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं है. इनमें वे छात्र ज्यादा परेशान हैं, जो फाइनल ईयर के हैं, नौकरियाँ लग गई हैं, आगे पढ़ाई करना है.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार स्टूडेंट्स को परिसर में प्रवेश भी नहीं मिल रहा है कि वे किसी जिम्मेदार से बात कर सकें. उन्हें अपनी दिक्कत बता सकें. सिक्योरिटी गार्ड तब तक किसी स्टूडेंट को अंदर नहीं जाने दे रहे हैं, जब तक अंदर बैठा कोई अधिकारी-कर्मचारी अनुमति न दे. ऐसे में परेशान स्टूडेंट्स सोशल मीडिया और अपने संपर्कों के सहारे गुहार लगा रहे हैं.
सोशल मीडिया पर रिजल्ट की मांग
ट्विटर भरा पड़ा है रिजल्ट की समस्याओं से. स्टूडेंट्स गुहार लगा रहे हैं कि शायद कहीं से कोई सुनवाई हो जाए. रिजल्ट किसी एक कोर्स का नहीं, बीटेक, फार्मेसी समेत सभी कोर्स के लगभग हर सेमेस्टर के फँसे हैं. इस विश्वविद्यालय में रजिस्टरर्ड छात्र संख्या 2.50 लाख के आसपास है.
इंसानी जीवन में जब किसी की उम्र 22-23 साल होती है, तो वह और ताकतवर होकर उभरता है. इसी तरह जब कोई संस्थान पुराना होता है तब वह भी धीरे-धीरे अपनी साख में इजाफा करता है. सामान्य आदमी भरोसा नहीं कर पाएगा कि साल 2000 में बना यह विश्वविद्यालय इतने वर्ष बाद भी अब तक परिणाम घोषित करने का कोई अपना सिस्टम नहीं तैयार कर पाया है.
यह काम किसी न किसी एजेंसी से करवाए जाने की व्यवस्था है. मतलब पेंडिंग रिजल्ट इसलिए नहीं घोषित हो पा रहे हैं, क्योंकि परिणाम तैयार करने वाली एजेंसी उपलब्ध नहीं है. जो एजेंसी काम कर रही थी, उसका कार्यकाल पूरा हो गया. उसके बाद फ़ाइलों में उलझे जिम्मेदार नई एजेंसी का इंतजाम नहीं कर सके.
AKTU के सिस्टम पर उठा सवाल
इस विश्वविद्यालय में दो काम एजेंसी करती है. पहला जब सेंटर से लिखी हुई कापियां आती हैं तो उन्हें स्कैन करने से लेकर परीक्षकों तक ऑनलाइन भेजना और दूसरा कॉपी चेक होने के बाद रिजल्ट अपडेट करना. इससे कोई असहमत नहीं हो सकता कि एजेंसी भला क्यों काम कर रही है? विश्वविद्यालय का अपना सिस्टम क्यों नहीं है?
असल में सामान्य तौर पर प्रतिवर्ष दो बार सेमेस्टर एग्जाम होते हैं. हर सेमेस्टर 13-15 लाख कॉपी की जांच करवाने की जिम्मेदारी विश्वविद्यालय के कन्धों पर आती है. चूंकि, यह काम बहुत कम समय के लिए होता है, और उस समय मैनपॉवर बड़ी संख्या में लगती है, ऐसे में इस काम को आउट सोर्स एजेंसी लेना मजबूरी है.
चूक तब दिखाई देती है जब सबको पता है कि यह दोनों काम महत्वपूर्ण और स्टूडेंट्स के भविष्य से जुड़े हैं, इसमें किसी तरह की लापरवाही नहीं की जा सकती, बावजूद इसके दोनों काम करने वाली एजेंसी इस समय विश्वविद्यालय के पास नहीं है. जोर-जुगाड़ के सहारे यह काम किया जा रहा है. रिजल्ट अपडेट करने वाली दिसंबर 2022 के अंत से ही नहीं है. इसके लिए कोई जुगाड़ का इंतजाम किया नहीं जा सकता क्योंकि इसमें गोपनीयता के अलावा अन्य कई फैक्टर हैं.
850 कॉलेज इससे संबंद्ध
अब सवाल उठता है कि यह बात विश्वविद्यालय के हर जिम्मेदार को पता थी कि दोनों एजेंसीज का कार्यकाल खत्म हो रहा है. ऐसे में समय से व्यवस्था क्यों नहीं की जा सकी? टेंडर कार्यकाल खत्म होने के पहले क्यों नहीं निकाले गए?
इस समय यह विश्वविद्यालय जिन दो समस्याओं का सामना कर रहा है, दोनों में ही उत्तर प्रदेश का युवा सफर कर रहा है. कैसे, यह भी जानते हैं. यह एफीलियेटिंग यूनिवर्सिटी है. मतलब इसके अपने परिसर में कोई कोर्स नहीं चलता. स्वाभाविक है कोई स्टूडेंट भी नहीं है. राज्य के लगभग 850 इंजीनियरिंग, फार्मेसी, आर्किटेक्चर, मैनेजमेंट संस्थान इससे सम्बद्ध हैं.
ऐसे में इस सरकारी विश्वविद्यालय के पास दो महत्वपूर्ण काम हैं. एक-समय से संबद्धता की औपचारिकता पूरी करना, एडमिशन का प्रॉसेस. दो-परीक्षा आयोजित करवाकर समय से रिजल्ट घोषित करना. संकट इस स्तर तक आ गया है कि इंजीनियरिंग कॉलेज की संबद्धता का जो काम 31 जुलाई तक हो जाना चाहिए, वह अब तक नहीं हो पाया.
सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला
नतीजा यह हुआ कि शायद यह देश का एकलौता विश्वविद्यालय होगा, जहां एक भी एडमिशन अब तक नहीं हो पाए हैं. जब विश्वविद्यालय इस मामले में राहत मांगने सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो वहां से कोई राहत नहीं मिली. तीन जजों की बेंच ने अपील ही खारिज कर दी. अब फिर एसएलपी दाखिल हुई है. परिणाम आना बाकी है.
कल्पना करके किसी भी जागरूक व्यक्ति का मन सिहर उठता है कि इतनी बड़ी लापरवाही क्यों और कैसे कोई विश्वविद्यालय कर सकता है? एडमिशन हो नहीं पा रहा है, रिजल्ट निकल नहीं पा रहा है तो भला इतना बड़ा विश्वविद्यालय कर क्या रहा है? यह खुद में बड़ा सवाल है. विश्वविद्यालय के एक जिम्मेदार अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि रिजल्ट अपडेट करने वाली एजेंसी की प्रक्रिया अंतिम चरण में है.
एक से डेढ़ महीने में एजेंसी आ जाएगी. उसके बाद रिजल्ट अपडेट होने का काम प्राथमिकता के आधार पर किया जा सकेगा. मतलब तय है कि परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे स्टूडेंट्स को कम से कम दो महीने बाद राहत मिलेगी. एडमिशन शुरू हो पाएगा या नहीं, यह फैसला तो सुप्रीम कोर्ट के रुख पर निर्भर करेगा. अनुमति मिलती है तो एडमिशन होगा, नहीं मिलती है तो सत्र शून्य हो जाएगा. यह स्थिति किसी भी विश्वविद्यालय की साख के लिए बहुत खराब माना जाएगा कि अफसरों की नाकामी की वजह से सत्र शून्य हो गया.
– एजेंसी