आगरा को गंगा यमुनी संस्कृति से धनी करने वालो मे नज़ीर अकबराबादी का विशिष्ट महत्व है, अपने समय की वह एक जीवंत शख्सियत थे ,लेकिन अब तो उनको भुला सा दिया गया है।जो न तो संस्कृति और नहीं साहित्य की दृष्टि से सही है।इस स्थिति को समाप्त करने के लिए नजीर के साहित्य और स्मृतियों को समर्पित आयोजनो का सिलसिला आगरा में शुरू होने जा रहा है। अमृत विद्या एजुकेशन फार इम्मोर्टालिटी और एसिड अटैक पीड़िताओं के द्वारा संचालित ‘शीरोज हैंग आऊट’ की मूल संस्था छांव फाउंडेशन के द्वारा इसके लिए संयुक्त प्रयास शुरू किया जा रहे हैं। अमृत विद्या एजुकेशन फार इम्मोर्टालिटी और छांव फाउंडेशन (एसिड अटैक पीड़िताओं के द्वारा संचालित शीरोज हैंग आउट की मूल संस्था) ने नजीर की गजल, शायरियों, नज्म आदि को समर्पित आयोजित करने का निश्चय किया है।
संयुक्त प्रयास से वर्ष में कई बार होने वाले आयोजनों के सिलसिले का पहला आयोजन 5 अप्रैल 2024 को फतेहाबाद रोड स्थित शीरोज हैंग आउट में आयोजित किया गया ‘एक दिन बन्धन मुक्त नज़ीर अकबराबादी के नाम’। इस प्रयास में प्रख्यात एडवेंचर स्पोर्ट मैन हरविजय सिंह वाहिया और देश विदेश में ख्याति प्राप्त गजल गायक श्री सुधीर नारायण मुख्य सहयोगी हैं। जबकि इतिहास विज्ञ डॉ आर सी शर्मा आगरा की ऐतिहासिक संस्कृति में नजीर के रहे योगदान को आयोजनों के अवसर पर सामने लाने को प्रयासरत हैं। डा शर्मा ने आगरा की संस्कृति पर शोध पत्र प्रस्तुत किया है,जिसे कि राष्ट्रीय/ उच्च स्तर पर काफी महत्व मिला है। इस शोध पत्र में नजीर के द्वारा अपनी रचनाओं में उल्लेखित बृज के त्योहारों के विवरण,परंपरा के उल्लेखों को ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण और सांस्कृतिक इतिहास का आधारभूत स्रोत के रूप में आंकलित किया गया है।
इतिहासकार डॉ आर सी शर्मा ने अपने व्यखान मे कहा के – कि नजीर ने त्योहारों , स्थानीय बाजारों,आयोजन ,त्योहारों आदि का जो विवरण अपनी रचनाओं में प्रस्तुत किया है,वह अत्यंत सटीक एवं संस्कृति के ऐतिहासिक साक्ष्य की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। नजीर की अभिव्यक्ति की परिपक्वता का अहसास जीवन संध्या के उस पक्ष से साक्षात्कार करवाने के प्रयास से होता है जो कि जीवन की नियति है।दरअसल उनकी रचना ‘”लाद चलेगा बंजारा” अपने आप में एक जीवन दर्शन है।
श्री हारविजय बहिया ने नजीर को मानवीय संवेदनाओं को झंकृत करने वाला साहित्य सृजक बताया है।
सुधीर नारायण नजीर की रचनाओं को प्रेरक मानते है और उन्होंने आगरा ही नहीं आगरा के बाहर भी इनका अपने अंदाज में प्रस्तुत कर लोगों में मानवीय मूल्यों और जाग्रत किया है। सुधीर नारायण ने प्रोग्राम की शुरुआत नज़ीर द्वारा लिखे कृष्ण भजन -“क्या कहो कृष्ण कन्हैया का बाल पान”; बसंत जो नज़ीर के लिए बसंता है पर गीत गया, देख बहारें होली की, लध चलेगा बंजारा, अगरे का है , प्रोग्राम का समापन ” हैं दो जहां के सुल्तान हज़रत सलीम चिस्ती”
सेक्रेटरी अमृत विद्या एवं छांव फाउंडेशन के एडवाइजरी बोर्ड के सदस्य अनिल शर्मा का कहना है कि नजीर अकबराबादी को जनकवि के रूप में मान्यता दी जाती है किंतु उनकी महत्ता को कभी भी सही रूप में नहीं आका जा सका। बसंत पर्व पर होने वाले परंपरागत कार्यक्रम में भी होने वाले कार्यक्रम में भाग लेने वालों की संख्या उतनी नहीं होती जितनी की अपेक्षित की जाती है। हमारा प्रयास होगा कि बसंत पर्व सहित साल में कम से कम दो तीन आयोजन नजीर की स्मृति में होना चाहिये। -उर्दू की समझ रखने वाले और शहरवासियों के सामाजिक सरोकारों के प्रति प्रतिबद्ध सिविल सोसायटी ऑफ आगरा का मानना है कि शहर की जीवंतता के लिये नजीर आज भी उतने ही प्रासंगिक है जितने कि ढाई सदी पूर्व।
छांव फाउंडेशन के डायरेक्टर आशीष शुक्ला का कहना है कि एसिड अटैक की घटनाएं सड़क पर किया जाने वाला ही एक अपराध है,नजीर की रचनाओं में आम आदमियों में जागरूकता का प्रयास किया गया है। उन्हें विश्वास है कि किसी भी सकारात्मक पहल का असर जनजीवन पर पडता है ,निश्चित रूप से एसिड अटैक की घटनाओं को रोकने में ऐसे आयोजन महत्वपूर्ण हैं।
आज के आयोजन का संचालन अनिल शर्मा और धन्यवाद आशीष शुक्ला ने दिया। आज के प्रोग्राम में इतिहासकार डॉ आर सी शर्मा, विशाल रियाज़, सीमांत साहू, शिव राज साहू, ब्रिग विनोद दत्ता, डॉ महेश धाकर, प्रोफ एस पी सिंह प्रिन्सिपल सैंट जॉन’स कॉलेज ,डॉ संजना चन्द्रा, डॉ एस के चन्द्रा, संजीव शर्मा,आरिफ तैमूरी, बज्मे नज़ीर, योगेश अघनोत्री, सी बी सिंह , विजय शर्मा, ज्योति खंडेलवाल, विशाल झा, शशिन्द्र शर्मा , डॉ मधु भारद्वाज, धर्मेंद्र सिंह चौहान, दिलीप रघुवंशी उपस्थित रहे।