लोग श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव तो जरूर मनाएंगे लेकिन समाज में चल रहे ऐसे घोर पाप की चर्चा करना पसंद नही करेंगे !……

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बलात्कारी भौमासुर का वध करने वाले और भरी सभा में द्रोपदी की लाज बचाने वाले श्रीकृष्ण के जन्मदिवस का पावन महोत्सव जन्माष्टमी आज पुरे देश में हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है और उसी श्रीकृष्ण की कर्मस्थली गुजरात में विश्व हिंदू परिषद द्वारा बिलकिस बानो के गैंग रेप करने वालो 11 दोषियों का माला पहनाकर स्वागत किया जा रहा है

श्रीकृष्ण को स्त्री अधिकारों के अनन्य योद्धा माना जाता है वे मानते हैं कि स्त्री के सम्मान की रक्षा का जिम्मा सिर्फ उसके पति या निकटस्थ बंधु बांधवों का नही अपितु उसके सम्मान की रक्षा का दायित्व राज्य का है, समाज का है ।

श्रीकृष्ण अपनी लीलाओं में स्त्री सम्मान के लिए उसकी मर्यादा की रक्षा के लिए हर सीमा को पार कर देते हैं और इसलिए हिन्दू धर्म में उन्हे आराध्य माना जाता है कृष्ण के देहांत से द्वापर युग की समाप्ति हुई और कलियुग की शुरूआत हुई

वाकई कलियुग ही है जहां दिन रात सनातन धर्म और संस्कृति की बात करने वाला दल एक स्त्री का बलात्कार और उसके बंधु बांधवों की जघन्य हत्या करने वालो का फूलो की माला पहना कर सम्मान कर रहा है, और हमारा आज का यह सनातन धर्म के गौरव की बात करने वालो का हिन्दू समाज ऐसे कुकृत्य पर मौन सहमति दे रहा है

यह तो हुई इस गिरे हुए समाज की बात अब इस प्रकरण में राज्य की भूमिका भी जान लीजिए

मुंबई में सीबीआई की एक विशेष अदालत ने 2008 में बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के आरोप में इन 11 अभियुक्तों को उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई थी. बाद में बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस सज़ा पर अपनी सहमति की मुहर लगाई थी.

उम्रक़ैद की सज़ा पाए क़ैदी को कम से कम चौदह साल जेल में बिताने ही होते हैं. चौदह साल के बाद उसकी फ़ाइल को एक बार फिर रिव्यू में डाला जाता है. उम्र, अपराध की प्रकृति, जेल में व्यवहार वगैरह के आधार पर उनकी सज़ा घटाई जा सकती है लेकिन इस प्रावधान के तहत हल्के जुर्म के आरोप में बंद क़ैदियों को छोड़ा जाता है. संगीन मामलों में ऐसा नहीं होता है.

फिर भी बिलकिस बानो से गैंगरेप और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या में सज़ा काट रहे सभी 11 दोषियों को 14 अगस्त 2022 को रिहा कर दिया गया

केंद्र सरकार ने सज़ा भुगत रहे कैदियों की सज़ा माफ़ी के बारे में सभी राज्यों को जून 2022 में जो दिशा निर्देश जारी किए थे उसमें भी ये ही कहा था कि उम्रकै़द की सज़ा भुगत रहे और बलात्कार के दोषी पाए गए क़ैदियों की सज़ा माफ़ नहीं की जानी चाहिए.

गुजरात के गृह विभाग ने 23 जनवरी 2014 को कै़दियों की सज़ा माफ़ी और समय से पहले रिहाई के लिए दिशानिर्देश और नीति जारी की थी उसमें भी ये साफ़ तौर पर कहा गया था कि दो या दो से अधिक व्यक्तियों की सामूहिक हत्या के लिए और बलात्कार या सामूहिक बलात्कार के दोषी सज़ायाफ़्ता कैदियों की सज़ा माफ़ नहीं की जाएगी.

इस नीति में ये भी कहा गया था कि जिन क़ैदियों को दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टैब्लिशमेंट एक्ट, 1946 के तहत की गई जांच (सीबीआई जांच) में अपराध का दोषी पाया गया, उनकी सज़ा भी माफ़ नहीं की जा सकती और न ही उन्हें समय से पहले रिहा किया जा सकता है.

बीबीसी के अनुसार सुप्रीम कोर्ट में कार्यरत वकील प्योली स्वतिजा कहती हैं कि ये उनकी समझ से बाहर है कि किस तरह गुजरात सरकार की कमिटी ने इस मामले के दोषियों की सज़ा माफ़ करके उन्हें रिहा करने का फै़सला किया. वे कहती हैं, “एक बार जब सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया कि सज़ा माफ़ी का फ़ैसला गुजरात सरकार ही कर सकती है तो गुजरात सरकार ने जो कमिटी बनाई उसके पास शक्तियां थीं लेकिन वो उन शक्तियों का इस्तेमाल आँख मूंदकर नहीं कर सकती थी. उनको ये ज़रूर देखना चाहिए था कि अपराध की प्रकृति क्या थी. इन पहलुओं को देखना ही होता है कि न केवल क़ैदी का व्यवहार कैसा है पर अपराध की प्रकृति क्या है. अगर अपराध की प्रकृति देखी जाती तो मुझे नहीं लगता कि एक अच्छे अंतःकरण वाली कमिटी कैसे इस तरह का फ़ैसला ले सकती थी.”

आज ख़बर आई है कि इस अच्छे अंतःकरण वाली कमिटी मे अध्यक्ष थे पंचमहल के कलेक्टर सजल मायतरा और सदस्य थे…..गोधरा भाजपा सचिव स्नेहा भाटिया,भाजपा विधायक सी के राउजी,भाजपा विधायक सुमन चौहान, गोधरा नगर पालिका के पूर्व प्रमुख भाजपा के मुरलीधर मूलचंदानी

यह है आज के देश समाज का हाल, आज रात 12 बजे लोग श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव तो जरूर मनाएंगे लेकिन समाज में चल रहे हैं ऐसे घोर पाप की चर्चा करना पसंद नही करेंगे !……

साभार -गिरीश मालवीय