15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजी हुकूमत की गुलामी से मुक्त तो हो गया लेकिन बंटवारे के रूप में एक घाव भी मिला। बंटवारे के ऐलान के बाद मारकाट और खून खराबे का एक ऐसा दौर शुरू हुआ, जिसमें हज़ारों परिवार तबाह हो गए। घर-गृहस्थी छोड़कर पलायन करना पड़ा। अपने बिछड़ गए, आंखों के आगे ही मौत के घाट उतार दिए गए, आबरू लूट ली गई और अगवा कर लिये गए।
विभाजन के दौरान सबसे ज्यादा जुल्म महिलाओं पर हुए। बलात्कार से लेकर जबरन अगवा और धर्म परिवर्तन जैसे जुल्म सहने पड़े। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बंटवारे के दौरान दोनों तरफ की 83000 महिलाएं अपने परिवारों से बिछड़ गईं। इतिहासकार कहते हैं कि वास्तविक संख्या इससे कहीं ज्यादा है।
इतिहासकार और लेखिका यास्मीन खान ने हाल ही में पेंगुइन प्रकाशन से आई अपनी किताब ‘विभाजन: भारत और पाकिस्तान का उदय’ में बंटवारे के दौरान महिलाओं पर हुए जुल्म को विस्तार से बयां किया है। वह लिखती हैं कि बंटवारे के बाद अनगिनत महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ और अपहरण किया गया। इसके अलावा दसियों हज़ार महिलाएं अस्थाई बंधक या रखैल के रूप में रख ली गईं। इनमें से कुछ महिलाओं को नौकरानी के रूप में इस्तेमाल किया गया, कईयों का धर्म परिवर्तित करा परिवार में शामिल करा लिया गया, कुछ को वेश्यावृत्ति में ढकेल दिया गया।
1947 के बाद चला था रिकवरी अभियान
आपको बता दें कि आजादी के बाद सरकार ने अपने परिवार से बिछड़ गई महिलाओं को ढूंढने के लिए बाकायदा एक रिकवरी अभियान भी चलाया था। यास्मीन खान लिखती हैं कि तलाशी अभिमान में बरामद पीड़ित महिलाओं में से एक तिहाई तो 12 साल या इससे कम की बच्चियां थी। बाकी महिलाएं 35 साल से नीचे की थीं। ज्यादातर महिलाओं को खुले बाजार में बेच दिया गया था।
यास्मीन खान लिखती हैं कि बंटवारे के बाद बलात्कार को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया था। हालांकि तमाम महिलाएं अपने साथ हुई ज्यादती पर चुप्पी साध लेती थीं क्योंकि उन्हें लोक-लाज का डर था। उस दौर में जबरन गर्भपात के मामलों में भी बेतहाशा बढ़ोत्तरी दिखी। कई ऐसे भी मामले सामने आए जिसमें परिवार ने सुरक्षित पलायन के लिए महिलाओं को दांव पर लगा दिया था। आपको बता दें कि बाद में खुद महात्मा गांधी ने भी स्वीकार किया था कि 1947 के बंटवारे में सबसे ज्यादा तकलीफ महिलाओं को उठानी पड़ी थी।
-एजेंसी