वैरागी ही जानता है वैराग्य की अवस्थाः जैन मुनि डा.मणिभद्र महाराज

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बिना लक्ष्य के जीवन जीना व्यर्थ

पर्यूषण पर्व के दूसरे दिन वैराग्य की विस्तृत चर्चा

आगरा: नेपाल केसरी व मानव मिलन संगठन के संस्थापक डा.मणिभद्र महाराज ने कहा कि वैराग्य की अवस्था तो वैरागी ही जानता है। जैन संत अरिष्टनेमि और गौतम कुमार के तप का विस्तृत वर्णण करते हुए उन्होंने उनसे प्रेरणा लेने का आह्वान किया।

राजामंडी के जैन स्थानक में आयोजित पर्वाधिराज पर्यूषण पर्व के द्वितीय दिवस जैन मुनि ने कहा कि भगवान अरिष्टनेमि के प्रवास के जानकारी मिलने पर गौतम कुमार प्रवचन स्थल पर पहुंचे। ओजस्वी वाणी में उनके प्रवचन सुन कर वे प्रभावित हुए। उन्हें लगा कि जिसे वे आजतक सुख समझ रहे थे, वह तो केवल आभासी था, उसके पीछे तो दुख था। वह शाश्वत सुख नहीं था। गौतम कुमार ने वैराग्य के मार्ग को अपनाया और भगवान अरिष्टनेमि के चरणों में जाकर दीक्षा ले ली और अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर लिया था।

मुनिवर ने कहाकि हर व्यक्ति के जीवन में कोई न कोई लक्ष्य जरूर होना चाहिए। जिसके जीवन में कोई लक्ष्य. नहीं हो, उसे मैं पागल मानता हूं। व्यक्ति क्या कर रहा है, क्या करना है, सब तय कर लेना चाहिए। तभी व्यक्ति को निश्चित रूप से मंजिल मिलती है। गौतम कुमार ने अपने जीवन का लक्ष्य तय कर के भिक्षु जीवन की 12 प्रतिमा (प्रतिज्ञाएं) अंगीकार कर लीं और साधना की चरम अवस्था पर पहुंच गए। 480 दिन की तपस्या में केवल 73 दिन भी भोजन किया था। शरीर सूख गया और साधना की क्षमता नहीं रही। उन्होंने भगवान अरिष्टनेमि से संथारा की आज्ञा मांगी और एक महीने तक संथारा की साधना करते हुए सद्गति प्राप्त की।

जैन मुनि ने व्यक्ति कि जीवन की मोह-ममता को अपने ढंग से व्यक्त किया। कहा कि एक मक्खी एसी होती है, जो शहद पर बैठती है, दूसरी मक्खी मिश्री पर। शहद पर बैठी मक्खी मीठे रस का भोग तो करती है, लेकिन वह उससे चिपकी रहती है, मुक्त नहीं हो पाती। मिश्री पर बैठी मक्खी जब तक चाहे मीठा रस पान कर कर लेती है, मन चाहे तो हट जाती है। जब वैराग्य मन में आता है तो साधना का मार्ग स्वतः ही खुल जाता है। लेकिन व्यक्ति जब कुछ करने की सोचेगा, तभी तो वह कर पाएगा। उन्होंने 10 कुमारों का वर्णन किया और कहा कि वे सभी सगे भाई थे। राजकुमारों की तरह जीवन जीने वाले अनिमेष कुमार के वैराग्य की भी उन्होंने विस्तृत चर्चा की।

जैन मुनि ने कहा कि हम दांतों में मंजन करते हैं। शरीर पर साबुन लगाकर नहाते हैं और पाउडर लगाते हैं। अपनी सुंदरता के लिए तरह-तरह के यत्न करते हैं। अपने लिए थोड़े करते हैं, दूसरों को आकर्षित करने के लिए यह सब किया जाता है। लेकिन यह सब व्यर्थ जाता है। धर्म रूपी आकर्षण को पैदा करो तो जीवन सार्थक हो सकता है।

प्रयूषण पर्व के दूसरे दिन की धर्म सभा में नीतू जैन,दयालबाग की 10 उपवास ,उमा जैन एवं अनिता जैन की 7 उपवास ,सुमित्रा सुराना की 5 उपवास, अनौना दुग्गर, महेंद्र बुरड़ की 4 उपवास की तपस्या चल रही है। रजनी जैन ने 9 उपवास एवम कमलेश नायन ने 8 उपवास के बाद गुरुवार को पारणा कर लिया।

आयम्बिल की लड़ी मधु आदेश बुरड़,संतोष रोहित दुग्गर ने आगे बढ़ाई। नवकार मंत्र का 24 घंटे का अखंड जाप का आयोजन जैन मुनि डॉक्टर मणिभद्र महाराज ,पुनीत मुनि एवम विराग मुनि के सानिध्य में महावीर भवन जैन स्थानक में 31 अगस्त तक पर्यूषण पर्व के पावन अवसर पर निरंतर जारी है । जिसमे प्रात: 6:00 से सायं 6:00 बजे तक महिलाओं द्वारा जाप किया जा रहा है एवम सायं 6:00 से प्रातः 6:00 बजे तक होने वाले अखंड जाप में पुरुष भाग ले रहे है।।24 अगस्त से 31 अगस्त तक अंतगड सूत्र वाचन प्रतिदिन प्रातः 8:30 बजे से हो रहा है। प्रयूषण पर्व पर पुरुषों का प्रतिक्रमण महावीर भवन एवम महिलाओं का सुराना भवन में शाम 7:00 से 8:00 बजे तक प्रतिदिन चल रहा है।

माता देवकी ने दी थी जैन संतों को भिक्षा

जैन मुनि डा.मणिभद्र ने रहस्योद्घाटन किया कि द्वारिकापुरी में भगवान कृष्ण की माता ने अपने महल से जैन संतों को गोचरी (भिक्षा) के लिए आते देखा तो उनकी अगवानी की और भगवान श्रीकृष्ण व वासुदेव जी के लिए बनाए गए सिंह केसरी मोदक भिक्षा में दिए थे। ये 6 संत दो-दो की टोली में आए थे। जिनको देखकर माता देवकी के मन में वात्सल्य भाव जाग उठा, तब भगवान अरिष्टनेमि ने यह रहस्योद्घाटन किया जो 6 जैन संत उनसे भिक्षा लेने आए थे उन्होंने माता देवकी की कोख से ही जन्म लिया था।

-up18news