प्राचीन उड़िया स्थापत्य कला का बेजोड़ उदाहरण है कोणार्क का सूर्य मंदिर

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भारत को रहस्यों की जननी कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगा। यहां पर कदम-कदम पर ऐसे रहस्‍य सामने आते हैं जिन्हें जानने के बाद भी यकीन नहीं होता है। आज हम आपको भारत के ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां 52 टन का चुंबक लगा हुआ है। यह मंदिर है कोणार्क का सूर्य मंदिर।

वैसे तो कोणार्क मंदिर अपनी पौराणिकता और आस्था के लिए विश्व भर में मशहूर है लेकिन कई अन्य कारण भी हैं, जिनकी वजह से इस मंदिर को देखने के लिए दुनिया के कोने कोने से लोग यहां आते हैं। यह अपनी भव्यता और अद्भुत शिल्पकारी के लिए प्रसिद्ध है कुछ लोग इसको भारत का आठवां अजूबा भी कहते हैं। सन् 1984 में यूनेस्कों के वर्ल्ड हेरिटेज की सूची में शामिल किया गया है।

मंदिर का इतिहास

सूर्य देव को समर्पित इस मंदिर का नाम दो शब्दों कोण और अर्क से जुड़कर बना है कोण यानि कोना और अर्क का अर्थ सूर्य है। यानी सूर्य देव का कोना। इसे कोणार्क के सूर्य मंदिर के नाम पहचाना जाता है। मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी 1236 से 1264 ई. के मध्यकाल में गंगवंश के प्रथम नरेश नरसिंह देव ने करवाया था। इस मंदिर के निर्माण में मुख्यत बलुआ, ग्रेनाइट पत्थरों व कीमती धातुओं का इस्तेमाल किया गया है।

मंदिर का निर्माण 1200 मजदूरों ने दिन-रात मेहनत कर लगभग 12 वर्षों में बनाया था। यह मंदिर 229 फीट ऊंचा है, इसमें एक ही पत्थर से निर्मित भगवान सूर्य की तीन मूर्तियां स्थापित की गई हैं। जो दर्शकों को बहुत ही आकर्षित करती हैं। मंदिर में सूर्य के उगने, ढलने व अस्त होने सुबह की स्फूर्ति, सायंकाल की थकान और अस्त होने जैसे सभी भावों को समाहित करके सभी चरणों को दर्शाया गया है। यह मंदिर ओडिशा राज्‍य में पुरी शहर से लगभग 37 किलोमीटर दूर चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित है।

अद्भुत शिल्पकला का नमूना है यह मंदिर

इस मंदिर का स्वरूप व बनावट अद्भुत शिल्पकला का नमूना है। एक बहुत बड़े और भव्य रथ के समान है जिसमें 12 जोड़ी पहिए हैं और रथ को 7 बलशाली घोड़े खीच रहे हैं। देखने पर ऐसा लगता है कि मानो इस रथ पर स्वयं सूर्यदेव बैठे हैं। मंदिर के 12 चक्र साल के बारह महीनों को परिभाषित करते हैं और प्रत्येक चक्र, आठ अरों से मिलकर बने हैं, जो हर एक दिन के आठ पहरों को प्रदर्शित करते हैं। वहीं अब सात घोड़े हफ्ते के सात दिनों को दर्शाते हैं।
इस मंदिर की सबसे रोचक बात यह है कि मंदिर के लगे चक्रों पर पड़ने वाली छाया से हम समय का सही और सटीक अनुमान लगा सकते हैं। यह प्राकृतिक धूप घड़ी का कार्य करते हैं। वहीं मंदिर के उपरी छोर से भगवान सूर्य का उदय व अस्त देख जा सकता है जो कि मनभावन है। ऐसे लगता है मानो सूरज की लालिमा ने पूरे मंदिर में लाल रंग बिखेर दिया हो और मंदिर के प्रांगण को लाल सोने से मढ़ा हो। मंदिर का मुख पूर्व की ओर है और इसके तीन महत्वपूर्ण हिस्से – देउल गर्भगृह, नाटमंडप और जगमोहन (मंडप) एक ही दिशा में हैं। सबसे पहले नाटमंडप में वह द्वार है, जहां से प्रवेश किया जा सकता है। इसके बाद जगमोहन और गर्भगृह एक ही जगह पर है।

मंदिर का चुम्बकीय रहस्य

इस मंदिर का सबसे बड़ा रहस्य यहां का चुम्बकीय ताकत है। प्रचलित कथाओं के अनुसार मंदिर के ऊपर 51 मीट्रिक टन का चुंबक लगा हुआ था। जिसका प्रभाव इतना अधिक प्रबल था जिससे समुद्र से गुजरने वाले जहाज इस चुंबकीय क्षेत्र के चलते भटक जाया करते थे और इसकी ओर खींचे चले आते थे। इन जहाजों में लगा कम्पास (दिशा सूचक यंत्र) गलत दिशा दिखाने लग जाता था इसलिए उस समय के नाविकों ने उस बहुमूल्य चुम्बक को हटा दिया और अपने साथ ले गये। यह सुनने में थोड़ा अटपटा भले ही लगे लेकिन अगर मंदिर को देखें तो मंदिर का निर्माण इस प्रकार किया गया था जैसे कोई सैंडविच हो जिसके बीच में लोहे की प्लेट थी, जिस पर मंदिर के पिलर अटके हुए थे। जिसके कारण ही लोग इन कथाओं पर भरोसा करते हैं।

मंदिर का रोचक तथ्‍य

इस मंदिर को ओडिशा के स्वर्ण त्रिभुज की तीसरी कड़ी माना जाता है जिसमें पुरी में जगन्नाथ मंदिर और भुवनेश्वर में लिंगराज मंदिर शामिल हैं।

इस भव्य मंदिर की कुल ऊॅचाई 69.7992 मीटर (229 फ़ीट) है।

इस मंदिर को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में शामिल किया गया है। यह मंदिर लगभग 26 एकड़ भूमि में फैला हुआ है।

इस मंदिर का निर्माण रथ के रूप में किया गया था। रथ का प्रत्येक पहिया लगभग 10 फुट चौड़ा है और रथ 7 शक्तिशाली घोड़ों द्वारा खींचा जा रहा है। परन्तु वर्तमान में सातों में से एक ही घोड़ा बचा हुआ है।

मंदिर के दक्षिणी हिस्से में दो घोड़े बने हुए हैं, जिसे राज्य सरकार द्वारा अपने राजचिन्ह के तौर पर भी चुना गया है।
कोणार्क के सूर्य मंदिर को अंग्रेज़ी में ‘ब्लैक पैगोडा’ भी कहा जाता है।

मंदिर के प्रवेश द्वार के पास में ही एक नट मंदिर है। ये वह स्थान है, जहां मंदिर की नर्तकियां, सूर्यदेव को खुश करने के लिये नृत्य किया करती थीं।

मंदिर के अन्दर सूर्य भगवान की मूर्ति को ऐसे रखा गया था कि उगते हुए सूर्य की पहली किरण उस पर आकर गिरती थी। जिसकी रोशनी से पूरा मंदिर जगमगा उठता था।

मंदिर के अन्दर जगह-जगह पर फूल-बेल और ज्यामितीय नमूनों की सुन्दर नक्काशी की गई है। इनके साथ ही मानव, देव, गंधर्व, किन्नर आदि के सुन्दर चित्रों को भी एन्द्रिक मुद्राओं में प्रदर्शित किया गया है।

यह मंदिर प्राचीन उड़िया स्थापत्य कला का बेजोड़ उदाहरण है।

-एजेंसियां