अशोक गहलोत ही नही, कांग्रेस में ये प्रॉब्लम नरसिम्हा राव के दौर से शुरू हुई थी…

अन्तर्द्वन्द

हाल ही में कांग्रेस से अलग हुए वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने बताया था कि पीवी नरसिम्हा राव के एक साथ दो पद संभालने के चलते पार्टी को कितना नुकसान हुआ था। आजाद ने बताया कि राजीव गांधी के मरने के बाद कांग्रेस में प्रॉब्लम शुरू हुई। इंदिरा गांधी और राजीव गांधी सरकार के साथ पार्टी भी चलाते थे। वे लोग 18-20 घंटे काम करते थे। पब्लिक मीटिंग के साथ घर पर अप्वाइंटमेंट देकर भी मिलते थे। बिना अप्वाइंटमेंट के भी लगभग रोज 1000-1500 लोगों से मिलते थे। इस वजह से आम जनता से लेकर पार्टी के छोटे कार्यकर्ता से लेकर मिनिस्टर तक को उनसे शिकायत नहीं होती थी।

नरसिम्हा राव के दौर से शुरू हुई कांग्रेस में प्रॉब्लम

पीवी नरसिम्हा राव का दौर आने पर वह सिलसिला खत्म हुआ। नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री के साथ कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे। वह बुद्धिमान थे, अनुभवी थे, इकोनॉमिक रिफॉर्म्स उनके दौर में आया लेकिन दुर्भाग्यवश कांग्रेस के संगठन में उनकी कोई रुचि नहीं थी। यह बात हर वर्किंग कमेटी की बैठक में उठाया जाने लगा। आवाज उठाने वालों में गुलाम नबी आजाद, करानाकरण, भास्कर रेड्डी, शरद पवार, राजेश पायलट, माधवराव सिंधिया जैसे नेता जो वर्किंग कमेटी में भी थे और मिनिस्टर भी थे। ये सभी लोग हर वर्किंग कमेटी की बैठक में कहते थे पार्टी का ब्लॉक, समिति नहीं बन रहे हैं, इसका मतलब है कि आप संगठन को नजरअंदाज कर रहे हैं।

नरसिम्हा राव को सलाह दी गई कि वह कांग्रेस अध्यक्ष पद से हट जाएं और किसी और को बना दें। पहले उन्होंने एक साल टरकाया। इसके बाद उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष बनाने की सलाह दी गई। इस पर उन्होंने कहा कि कोई अच्छा नाम सुझाइए। लेकिन शर्त रखी गई कि कार्यकारी अध्यक्ष वही बनेगा जो केंद्र में मिनिस्टर पद से हटेगा। एक साल इसमें भी निपटा। फिर मीटिंग में सलाह दी गई कि उपाध्यक्ष बनाएं। उसमें भी एक साल तक टालमटोल किया जाता रहा और तब तक चुनाव आ गए। चुनाव कांग्रेस की हार हुई।

नरसिम्हा राव के खिलाफ लाया गया था अविश्वास प्रस्ताव

चुनाव में हार मिलने के बाद हुई वर्किंग कमेटी की मीटिंग में पीवी नरसिम्हा राव को कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला लिया गया।

अविश्वास प्रस्ताव में गुलाम नबी आजाद की ओर से कहा गया कि आप भारत के बेस्ट प्रधानमंत्री में से एक रहे, उन्‍होंने देश में आर्थिक उदारता का दौर शुरू किया लेकिन दुर्भाग्यवश वह कांग्रेस के सबसे बेकार अध्यक्ष साबित हुए। उनका कांग्रेस पार्टी में कोई इंट्रेस्ट नहीं रहा। इसकी कांग्रेस की राज्य, जिला और ब्लॉक कमेटी का रिफॉर्म नहीं हो पाया, जिसके चलते हमें लोकसभा चुनाव में हार मिली। इसकी वजह से ही सरकार के अच्छे कामों का प्रचार जनता तक नहीं पहुंच पाया। इन्हीं आरोपों के साथ उन्हें अध्यक्ष पद त्यागने को कहा गया।

इसके बाद सीताराम केसरी जब कांग्रेस अध्यक्ष बने तो उनका भी पब्लिक एक्सपोजर नहीं था। हालांकि दोनों नेताओं की अच्छी बात यह रही कि उन्होंने अपने दौर में तय पांच साल के बाद कांग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव कराया। इसके बाद जब सोनिया गांधी और राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष बने तब किसी भी नेता ने उनसे इस तरह के सवाल नहीं किए। शुरुआत में सोनिया गांधी अपने साथियों और सहकर्मी को काम करने की पूरी ताकत देती थीं। इस वजह से रिजल्ट बेहद अच्छे आए।

2004 में कांग्रेस के अनुभवी नेता मंत्रिमंडल में चले गए, जिसके चलते उनकी पार्टी और संगठन से दूरी होने लगी। साल 2013 में राहुल गांधी के कांग्रेस उपाध्यक्ष बनने के बाद सोनिया गांधी ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से राय मशविरा करना लगभग बंद कर दिया। कुछ नेताओं ने आगे बढ़कर सलाह देने की कोशिश की गई, लेकिन उसमें से किसी को भी नहीं माना गया। जो कोई भी सलाह देता उसे बीजेपी वाला ठहराया जाने लगा।

कांग्रेस अध्यक्ष के लिए अधिसूचना 

बता दें कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए गुरुवार  अधिसूचना जारी हो गयी और इसके साथ ही देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल के सर्वोच्च पद पर आसीन होने वाले व्यक्ति को चुनने की प्रक्रिया औपचारिक रूप से आरंभ हो गयी। पार्टी के वरिष्ठ नेता मधुसूदन मिस्त्री की अध्यक्षता वाले केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण की ओर से यह अधिसूचना जारी की गई। कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए घोषित कार्यक्रम के अनुसार अधिसूचना 22 सितंबर को जारी की जाएगी और नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया 24 से 30 सितंबर तक चलेगी।

नामांकन वापस लेने की अंतिम तिथि आठ अक्टूबर है। एक से अधिक उम्मीदवार होने पर 17 अक्टूबर को मतदान होगा और नतीजे 19 अक्टूबर को घोषित किये जाएंगे।

राहुल गांधी के पार्टी की कमान नहीं संभालने के संकेत देने के बाद अब कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनावी मुकाबला होने के आसार बढ़ गए हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने पहले ही चुनाव लड़ने का संकेत दे दिया है तो राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के भी चुनाव लड़ने की संभावना है।

-Compiled by- UP18NEWS