कर्नाटक में करीब 68 फीसदी मतदान, 13 मई को आएंगे नतीजे

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कर्नाटक में सभी 224 विधानसभा सीटों पर आज मतदान हुआ। शाम पांच बजे तक 65.58 फीसदी लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। अब सबकी निगाहें 13 मई पर टिकी हैं, जब मतगणना के बाद नतीजो का एलान होगा। हालांकि वोटिंग परसेंट के आंकड़े गुरुवार सुबह तक अपडेट होंगे। वहीं पिछले 2018 विधानसभा चुनाव में 72% वोटिंग हुई थी। कर्नाटक में पहली बार 94,000 से अधिक सीनियर सिटिजन्स और दिव्यांगजनों ने घर से वोट डाला। कर्नाटक की 224 सीटों पर 2614 उम्मीदवार मैदान में हैं।

वोटिंग के दौरान तीन जगह हिंसा हुई। पुलिस ने बताया कि विजयपुरा के बासवाना बागेवाड़ी तालुक में लोगों ने कुछ EVM और VVPAT मशीनों को तोड़ डाला। पोलिंग अफसरों की गाड़ियों में भी तोड़फोड़ की गई। यहां अफवाह उड़ी थी कि अधिकारी मशीनें बदलकर वोटिंग में गड़बड़ी कर रहे थे।

दूसरी घटना पद्मनाभ विधानसभा के पपैया गार्डन पोलिंग बूथ पर हुई, जहां कुछ युवाओं ने लाठियां लेकर विरोधियों पर हमला किया। हमले में वोट डालने आईं कुछ महिलाएं भी घायल हो गईं।

तीसरी घटना बेल्लारी के संजीवारायानाकोटे में हुई, जहां कांग्रेस और भाजपा कार्यकर्ता के बीच हाथापाई हुई। मतदान के दौरान विजयपुरा जिले के मसाबिनल गांव के लोगों ने इलेक्टॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) ले जा रहे वाहन को रोककर एक अधिकारी से हाथापाई की। उन्होंने नियंत्रण और बैलेट इकाइयों को क्षतिग्रस्त कर दिया, जिसके बाद 23 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। निर्वाचन आयोग ने यह जानकारी दी।

निर्वाचन आयोग के अधिकारियों के मुताबिक, अब तक रामनगर में सबसे अधिक 63.36 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया है। बृहद बेंगलुरू महानगर पालिका क्षेत्र (बेंगलुरू शहर के हिस्सा) में सबसे कम 40.28 प्रतिशत दर्ज किया गया।

कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा, आईटी क्षेत्र के दिग्गज एन. आर. नारायणमूर्ति, उनकी पत्नी सुधा मूर्ति व मैसुरु के शाही परिवार की सदस्य राजमाता प्रमोदा देवी ने बुधवार को राज्य विधानसभा चुनाव के लिए मतदान किया।

भाजपा, कांग्रेस और जेडीएस के कई दिग्गजों की साख दांव पर है। आज की वोटिंग के बाद 13 मई को मतगणना से तय होगा कि किस पार्टी के सिर सत्ता का ताज सजेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के रथ पर सवार सत्तारूढ़ भाजपा की कोशिश 38 साल के उस मिथक को तोड़ने की है, जिसमें प्रदेश की जनता ने किसी भी सत्ताधारी पार्टी को दोबारा सरकार बनाने का मौका देने से परहेज किया है।