मुंबई कोविड सेंटर स्कैम: आदित्य ठाकरे और संजय राउत के करीबियों पर ED की रेड

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प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने बुधवार को कोविड-19 फील्ड अस्पताल (कोविड सेंटर) घोटाले से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आईएएस अधिकारी संजीव जायसवाल और शिवसेना (उद्धव गुट) नेताओं के करीबियों के परिसरों की तलाशी ली। ईडी की टीम आज सुबह कुछ बीएमसी अधिकारियों, आपूर्तिकर्ताओं और आईएएस अधिकारियों के ठिकानों पर पहुंची। इस दौरान मुंबई, ठाणे और नवी मुंबई के विभिन्न इलाकों में लगभग 15 परिसरों की तलाशी ली गई।

इस छापेमारी में शिवसेना (यूबीटी) नेता आदित्य ठाकरे के करीबी सहयोगी सूरज चव्हाण और सांसद संजय राउत के करीबी दोस्त सुजीत पाटकर का घर भी शामिल है।

IAS जायसवाल पहले ठाणे म्युनिसिपल कमिश्नर थे और कोविड काल में उन्हें बीएमसी का एडिशनल कमिश्नर बनाया गया था। ईडी ने जनवरी में इस मामले में बीएमसी कमिश्नर IAS इकबाल सिंह चहल का बयान दर्ज किया था और उनसे फील्ड अस्पताल कॉन्ट्रैक्ट आवंटन प्रक्रिया समेत इससे संबंधित चीजों का विवरण मांगा था।

क्या है पूरा मामला?

इससे पहले ईडी ने शिवसेना (यूबीटी) के सांसद संजय राउत के करीबी दोस्त सुजीत पाटकर और अन्य के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया था। हेल्थकेयर क्षेत्र में कोई अनुभव नहीं होने के बावजूद पाटकर को महामारी के दौरान मुंबई में कोविड फील्ड अस्पताल बनाने का काम सौंपा गया।

पिछले साल बीजेपी नेता किरीट सोमैया की शिकायत पर कार्रवाई करते हुए मुंबई की आजाद मैदान पुलिस स्टेशन ने लाइफलाइन हॉस्पिटल मैनेजमेंट सर्विसेज (LHMS) और पाटकर और उनके तीन सहयोगियों- हेमंत गुप्ता, संजय शाह, राजू सालुंके के खिलाफ जालसाजी का मामला दर्ज किया था। इन चारों पर महामारी के दौरान कोविड फील्ड अस्पतालों के प्रबंध से जुड़ा बीएमसी कॉन्ट्रैक्ट धोखाधड़ी से हासिल करने का आरोप है। बाद में ईडी ने इस मामले की जांच के लिए मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया।

आरोप है कि बीएमसी ने महंगी कीमत पर एलएचएमएस को ठेके दिए. साथ ही बीएमसी यह भी जानती थी कि एलएचएमएस एक रजिस्टर्ड फर्म नहीं है और उसे स्वास्थ्य सेवा का कोई अनुभव नहीं है। बीएमसी ने कथित तौर पर पहले ठेके दिए और एक साल बाद कंपनी के साथ संबंधित समझौते पर हस्ताक्षर किए।

कोविड खर्च पर उठे थे सवाल

हाल ही में कैग ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट में बताया था कि बार-बार अनुरोध किए जाने के बावजूद बीएमसी ने कोविड-19 महामारी को लेकर किये गए खर्च की जानकारी नहीं दी। बीएमसी ने महामारी अधिनियम का हवाला देते हुए 3538.78 करोड़ रुपये के खर्च की जांच की अनुमति नहीं दी। इस वजह से कोविड-19 के दौरान किये गए खर्च के हिसाब-किताब की जांच नहीं हो सकी। हालांकि बीजेपी नेताओं का आरोप है कि कोविड के नाम पर भी बड़े घोटाले हुए है।

बता दें कि बीएमसी के पार्षदों का कार्यकाल पिछले साल की शुरुआत में समाप्त हो गया था। लेकिन बीएमसी चुनाव न होने के कारण महाराष्ट्र सरकार ने बीएमसी कमिश्नर IAS इकबाल सिंह चहल को काम-काज देखने के लिए प्रशासक नियुक्त किया। चहल 8 मार्च 2022 से नगर निगम के प्रशासक की जिम्मेदारी निभा रहे हैं।

Compiled: up18 News


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