दक्षिण पूर्व एशिया के 17 सहस्र द्वीपों का देश है इंडोनेशिया । इस देश में हिन्दुओं की संख्या केवल 1.7 प्रतिशत है । उनमें से सर्वाधिक हिन्दू बाली द्वीप पर रहते हैं । पुराणों में जिसका ‘वाली’ द्वीप से उल्लेख मिलता है, वही आज का बाली द्वीप है । बाली में 83.5 प्रतिशत लोग हिन्दू हैं । वाल्मीकि रामायण में सीतामाता की खोज में सुग्रीव द्वारा वानरसेना को ‘यावाद्वीप’ (आज के इंडोनेशिया के ‘जावा’ द्वीप) और ‘वालीद्वीप’ में भेजे जाने का उल्लेख है । बाली में हिन्दुओं का पवित्र स्थान है ‘अगुंग पर्वत’ और पवित्र मंदिर अर्थात पर्वत की तलहटी पर स्थित बेसाखी मंदिर।
अगुंग पर्वत अर्थात धधकता और निरंतर जागृत ज्वालामुखी ! यहां प्रत्येक ५-१० मिनटों में राख का विस्फोट होता है । (छायाचित्र क्रमांक – १) ३ सहस्र १०५ मीटर ऊंचे पर्वत पर यह ज्वालामुखी गत वर्षभर से जागृत है । इसलिए अनेक बार बाली द्वीप पर आपातकालीन स्थिति निर्माण हुई है । बाली में हिन्दू इस पर्वत को पवित्र मानते हैं । सत्ययुग में समुद्रमंथन के समय मथनी का कार्य करनेवाला सुमेरू पर्वत जावा द्वीप पर है । अगुंग पर्वत की ओर देखने पर ऐसा लगता है कि मानो वह समुद्रमंथन में रस्सी बने वासुकी नाग का मुख ही है । इस पर्वत की रचना नाग के खुले मुख समान है । बाली के लोगों का कहना है कि बाली द्वीप मार्कंडेय महर्षि का स्थान है और बाली के हिन्दू अर्थात भारत के कलिंग राज्य (वर्तमान में ओडिशा) से आए मार्कंडेय महर्षि के वंशज हैं । यहां ऐसा भी कहा जाता है कि ‘अगुंग पर्वत’ मार्कंडेय महर्षि की तपोभूमि है ।
अगुंग पर्वत पर 23 मंदिरों के समूहवाले मंदिर की विशेष रचना
अगुंग पर्वत पर 1 सहस्र मीटर पर चढने पर मंदिरों का एक बडा समूह है । इसे ही ‘पुरा बेसाखी’ कहते हैं । ‘पुरा’ अर्थात मंदिर और ‘बेसाखी’ अर्थात वासुकी । अगुंग पर्वत, वासुकी का स्थान होने से इस मंदिर को वासुकी का नाम दिया गया होगा । बेसाखी मंदिर कुल २३ मंदिरों का समूह है ।
यह मंदिर नीचे से ऊपर, इसप्रकार 6 अलग-अलग चरण में बना है
मंदिर में मध्य स्थान पर स्थित एक मंदिर में दोनों ओर वासुकी और तक्षक नाग जैसी नागप्रतिमाएं हैं । नागप्रतिमाओं के ऊपर ३ खंबों पर ३ पीठ हैं । ये ३ पीठ अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश के स्थान हैं । इन पीठों को ‘पद्मासन’ कहते हैं । इन पीठों पर देवताओं की प्रतिमा नहीं होतीं ।
बाली में हिन्दू देवी-देवताओं की प्रतिमा की पूजा के स्थान पर उनके अस्त्र अथवा वाहन की पूजा की जाती है ।
इस मंदिर में दाईं ओर वार्षिक उत्सव में उपयोग में लाए जानेवाले देवताओं के वाहनों का स्थान है । इस स्थान पर देवताओं के वाहनों की लकडी से बनी प्रतिमा रखी जाती है ।
मंदिर के सामने एक छोटा पीठ है । वहां मुख्य उत्सवों के समय और प्रतिदिन भी नैवेद्य रखा जाता है ।
मंदिर की बाईं ओर वाद्यशाला है । वहां उत्सव के समय बजाए जानेवाले वाद्य हैं । उस वाद्यशाला से लगे मंडप में पुजारियों के लिए साहित्य रखने का स्थान है । ‘मंदिरों के कलशों की रचना सुमेरू पर्वत जैसी है । उसमें सप्तलोक और सप्तपाताल हैं’, ऐसी मान्यता है ।
अद्वैत सिद्धांत और आगम पद्धति अनुसार पूजा
बेसाखी मंदिर में अद्वैत सिद्धांत और बाली की प्राचीन आगम पद्धति के अनुसार पूजा की जाती है । मंदिर में पूजा करने के लिए आनेवालों को ‘सारोंग’ नाम के विशेष कपडे परिधान करना आवश्यक होता है । मंदिर में चप्पलें डाल सकते हैं । मंदिर में एक मुख्य पुजारी होता है । इनके अतिरिक्त अन्य पुजारी भी होते हैं । मुख्य मंदिर के सामने एक खाली पीठ होता है । उस पीठ के सामने बैठकर उदबत्ती लगाना, पुष्प चढाना, नमस्कार करना, ऐसी कृतियां पुजारियों को कहने पर की जाती हैं । तब पुजारी बालीनीस भाषा में मंत्र और प्रार्थना कहते हैं । कई बार पुजारी गायत्री मंत्र भी कहते हैं । पूजा की इस पद्धति को यहां के हिन्दू अभ्यासक ‘बालीनीस आगम’ कहते हैं ।
मंत्रोच्चार और पूजाविधियों पर तिबेटीयन बौद्धों का प्रभाव
पुजारियों द्वारा गायत्री मंत्र के उच्चार भिन्न होते हैं । मंत्रोच्चार सुनने में भी संस्कृत नहीं लगता है । यहां के हिन्दू जो पूजाविधि, मंत्र, पुष्प चढाने की पद्धति, घंटी बजाने की पद्धति यह सर्व तिबेटियन बौद्धों की पद्धति समान है । मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है । इस विषय में यहां के हिन्दू अभ्यासकों का मत है कि बाली में हिन्दू निर्गुण उपासना करते हैं । यहां के हिन्दू अभ्यासक डॉ. जॉनी अर्था का कहना है कि ‘सगुण में प्रतिमा पूजा और निर्गुण में ईश्वरोपासना में ‘अचिंत्य उपासना’ यहां प्रचलित हुई होगी ।’ मंदिर के उत्सव के समय मंदिर में बलि देना, मांस का नैवेद्य चढाना और मांसाहार करना, यह यहां बडे प्रमाण में प्रचलित है ।
Compiled: up18 News