यूपी चुनाव के नतीजों से कार्यकर्ताओं को निराश होने की जरूरत नहीं: मायावती

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बीएसपी चीफ मायावती ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा, ‘यूपी चुनाव के नतीजों से कार्यकर्ताओं को निराश होने की जरूरत नहीं है। इससे सबक लेते हुए आगे बढ़ने की जरूरत है।’

उन्होंने कहा कि चुनाव में बीएसपी को बीजेपी की बी टीम करार दिया गया, जो कि पूरी तरह से गलत है। गौरतलब है कि पूरे प्रदेश में बसपा को केवल बलिया की रसड़ा सीट पर जीत मिली।

मायावती ने इसके साथ ही कहा, ‘पूरे प्रदेश में मुस्लिमों का वोट समाजवादी पार्टी को गया। बीजेपी से नाराज हिंदुओं का वोट भी बहुजन समाज पार्टी को नहीं मिला।’

मायावती ने यह भी कहा कि मायावती के खिलाफ जातिवादी मीडिया की तरफ से प्रोपेगेंडा फैलाया गया कि बसपा बीजेपी की बी टीम है। गौरतलब है कि कई सीटों पर बीएसपी कैंडिडेट्स की जमानत तक जब्त हो गई।

मायावती ने इसके साथ ही कांग्रेस पार्टी पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि 2012 से पहले बीजेपी भी उत्तर प्रदेश में इतनी मजबूत स्थिति में नहीं थी। अब कांग्रेस का हाल भी ऐसा हो गया है। रसड़ा विधानसभा सीट पर उमाशंकर सिंह ने बसपा का एकमात्र झंडा बुलंद किया। एग्जिट पोल में भी बसपा को कहीं दहाई से नीचे तो कहीं अधिक सीटें मिलती दिखाई गई थी।

गुरुवार को आए चुनाव के परिणाम में बसपा को एक सीट पर जीत मिली है। वहीं बीजेपी को 255 सीटों पर जीत मिली है। सहयोगियों की बात करें तो निषाद पार्टी के खाते में 6 जबकि अपना दल के खाते में 12 सीटें आई हैं। वहीं दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के खाते में 111 सीटें आई हैं। सपा की सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल को 8 और राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को 6 सीटों पर जीत मिली है।

उत्तर प्रदेश में 22 फीसदी दलित हैं। बीएसपी को इस बार कुल लगभग 13 फीसदी वोट मिले हैं। यह वोट प्रतिशत 1993 के बाद सबसे कम है। वहीं, एक सीट के साथ वह अब तक के अपने सबसे खराब दौर में पहुंच गई है। इससे साफ है कि पार्टी का अपना बेस वोटर भी पार्टी से दूर हो गया है। ऐसे में बीएसपी की आगे की राजनीतिक राह भी बहुत मुश्किल होगी। वह राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा नहीं बचा पाएगी। साथ ही विधानमंडल से लेकर संसद तक में प्रतिनिधित्व का संकट खड़ा हो गया है।

लगातार घटता गया वोट प्रतिशत

बीएसपी का अस्तित्व उसके वोट बैंक दलितों से ही रहा है। माना जाता है कि प्रदेश में कुल 22 फीसदी वोटों में से एक बड़ा हिस्सा उसके खाते में ही जाता है। कांशीराम ने दलितों के साथ अति-पिछड़ा वर्ग को जोड़ा तो उसके बाद वह सत्ता तक पहुंची। वहीं, 2007 में ब्राह्मण और अन्य सवर्ण जुड़े तो बीएसपी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आ गई। जैसे ही सवर्ण अलग हुए तो वह 2012 में सत्ता से बाहर हो गई। उसके बाद से लगातार बीएसपी का ग्राफ गिरता ही चला गया।

2019 में वोट प्रतिशत में तो इजाफा नहीं हुआ लेकिन एसपी के साथ गठबंधन का फायदा मिला और 10 सीटें पार्टी ने जीतीं। वहीं 2017 में बीएसपी 22.24 प्रतिशत वोटों के साथ सिर्फ 19 सीटों पर सिमट गई। इस बार वोट प्रतिशत 13 रह गया और एक सीट ही हासिल कर पाई।

-एजेंसियां