23 मई को ओटीटी पर रिलीज होगी मनोज बाजपेयी की फ‍िल्म ‘सिर्फ एक बंदा काफी है’

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कहानी

फिल्म ‘बंदा’ की कहानी शुरू होती है, साल 2013 में 17 वर्ष की बाबा के भिंडवाडा स्कूल में पढ़ने वाली लड़की नू (अद्रिजा सिन्हा) से, जो अपने माता-पिता के साथ दिल्ली पुलिस स्टेशन में बाबा (सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ) के खिलाफ शिकायत दर्ज करती है. जैसे ही महिला पुलिस अफसर के सामने ये शिकायत दर्ज होती है, वो इस हाई प्रोफाइल केस के बारें में अपने सीनियर से सलाह-मशवरा कर लड़की को मेडिकल एग्जामिनेशन के लिए अस्पताल लेकर जाती हैं. पुलिस थाने के बाहर उमड़ें मीडिया के सैलाब से बचने के लिए चेहरे पर दुप्पट्टा ओढ़कर नूर को अस्पताल लाया जाता है.

सिर्फ दिल्ली में ही नहीं पूरे भारत में तब हड़कंप मच जाता है, जब पुलिस बाबा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करते हुए उन्हें उनके आश्रम से गिरफ्तार कर लेती है. अपने गुरु की गिरफ्तारी से बौखलाए हुए भक्त जमकर विरोध करते हैं. फिर भी बाबा को कड़ी पुलिस सुरक्षा में जोधपुर लाया जाता है. जोधपुर में कर्फ्यू लग जाता है. सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम में बाबा की कोर्ट में पेशी होती है.

भक्तों पर मूंगफली उछलकर और चेहरे पर मुस्कान लिए कोर्ट में पेश होने वाले बाबा पर सेक्शन 342 , 370 /4 , 120B , 506 , 354 A , सेक्शन 376 D सेक्शन 376 -2 -F , 509 IPC , 5G /6 और सेक्शन 7/8 ऑफ़ प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेन्सेस एक्ट (POCSO), सेक्शन 23 जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत मुकदमा दायर किया जाता है, जब जज बाबा से पूछते हैं कि क्या आप गिल्टी हो या नहीं तब बाबा पूरे आत्मविशास के साथ अदालत में कहता है कि “नॉट गिल्टी, मैं निर्दोष हूं.”

इस केस को लॉटरी समझकर करोड़ों रुपये ऐठने में लगे पब्लिक प्रोसिक्यूटर को रंगे हाथ पकड़ने के बाद नूर के पिता एक पुलिस अफसर के सुझाव के बाद लॉयर पीसी सोलंकी (मनोज बाजपेयी) के पास चले आते हैं. शिव भक्त पूनमचंद को न तो धर्मगुरु से कोई शिकायत है, न तो उनकी आस्था में कोई कमी है. लेकिन नूर और उनके माता पिता से पूरी घटना की जानकारी लेने के बाद वो ‘बिटियां’ की एक मुस्कान के लिए वो केस लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं.

अब भूत भगाने के लिए शुद्धि करने बाबा के आश्रम जा पहुंची लड़की के साथ क्या कुछ हुआ और रिश्वत से लेकर जान से मरने की धमकी तक कई जोखिम उठाते हुए पीसी सोलंकी ने किस तरह से हिम्मत के साथ केस लड़ी, ये देखने के लिए आपको ZEE5 पर रिलीज होने वाली फिल्म ‘बंदा’ देखनी होगी.

एक्टिंग

मनोज बाजपेयी ने वकील पीसी सोलंकी के साथ एक पिता और एक बेटे को हमारे सामने पेश किया है. ये कोई हीरो या डैशिंग वकील नहीं है, ये केस लड़ने की हिम्मत भी दिखाता है और अपने परिवार के लिए डरता भी है. अपने सामने विटनेस की हत्या होते हुए देख सदमें में जाने वाला ये आदमी जिस हिम्मत से बड़े बड़े नामी वकीलों के खिलाफ बिना डरे दलीले पेश करता है, उसके कई रंग मनोज बाजपेयी ने इस फिल्म के कैनवास पर खूबसूरती से दिखाए हैं. जिस तरह से अपने क्लाइंट को भरोसा देने वाले पीसी सोलंकी को लोग पसंद करेंगे उस तरह से जिन्हें अब तक आदर्श माना है, उनसे बात करने लिए उत्सुक दिखने वाले और नया शर्ट पहन कोर्ट में जाने वाले पूनमचंद से भी लोगों को प्यार हो जाएगा.

कहानी और डायरेक्शन

ये कोर्टरूम ड्रामा दीपक किंगरानी ने लिखा है तो अपूर्व सिंह कार्की इस फिल्म के निर्देशक हैं. अब तक टीवीएफ के साथ कई वेब सीरीज को निर्देशित कर चुके अपूर्व की ये पहली फिल्म है. खुद मनोज बाजपेयी ने उनके नाम की सिफारिश की थी. मनोज बाजपेयी के विश्वास पर अपूर्व खरे उतरे हैं. इस फिल्म को बनाना और POCSO जैसे एक्ट को ऑडियंस को समझे ऐसे भाषा में पेश करना उतना ही चैलेंजिंग था जितना पीसी सोलंकी के लिए ये केस जितना. “इस केस की एक भी हियरिंग नहीं हार सकता, अगर हारा तो बाबा को बेल मिल जाएगी फिर बाबा कभी हाथ नहीं आएगा.” कहते हुए एक सर्वसाधारण वकील ने एक लड़की को इन्साफ दिलाया, उसी तरह से इस फिल्म ने भी मुश्किल दिखने वाले कोर्टरूम ड्रामा को आसान भाषा में दर्शकों के सामने पेश किया है.

मनोज बाजपेयी के साथ-साथ फिल्म में शामिल हर किरदार ने अपने अभिनय से इस खास फिल्म को बेहद ख़ास बनाया है. नू का किरदार निभाने वाली अद्रिजा सिन्हा ने पीड़िता की हिम्मत और असहायता दोनों को पेश करते हुए अपने शानदार अभिनय की झलक दिखाई है.

प्रभाशाली क्लाइमैक्स ने इस फिल्म को चारचांद लगाए हैं. जिस तरफ से रामायण और शिव पार्वती का उदहारण देते हुए पीसी सोलंकी ये स्पष्ट करते हैं कि वो धर्म के खिलाफ नहीं हैं, वो मोनोलॉग इस फिल्म का हाई पॉइंट है. POCSO हटाने के जद्दोजहद और इस एक्ट के तहत मिलने वाले अधिकार के जानकारी के देने के मंदरी से की गई कोशिश इस फिल्म को देखना जरुरी बना देती है.

– एजेंसी