सोलहवीं सदी में मुग़ल विस्तारवाद को सफल चुनौती देने वाले वीरयोद्धा थे लचित बोरफुकन

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सोलहवीं सदी में मुग़ल विस्तारवाद को सफल चुनौती देने वाले लचित असम के समाज में एक नायक की तरह प्रतिष्ठित हैं और हर वर्ष उनकी जयंती 1930 से ही पूरे असम में ‘लचित दिवस’ के रूप में धूमधाम से मनाई जाती रही है। 1999 में भारतीय सेना ने हर साल नेशनल डिफेंस अकादमी (एनडीए) के सर्वश्रेष्ठ कैडट को लचित बरफुकन स्वर्ण पदक देने का निर्णय लिया गया था।

1930 में अहोम विद्वान गोलप चंद्र बरुआ ने देवधाय पंडित के पास उपलब्ध बुरांजी (शाब्दिक अर्थ-अज्ञात कथाओं का भंडार, असम के प्राचीन पंडितों की इतिहास की पोथियाँ) का मूल सहित जो अंग्रेज़ी अनुवाद किया था उसमें भी लचित बरफुकन की कहानी विस्तार से आती है।

आज़ादी के तुरंत बाद 1947 में ही असम सरकार ने इतिहासकार एसके भूइयांने उन पर लिखी किताब ‘लचित बरफुकन एंड हिज़ टाइम्स’ प्रकाशित की और अमर चित्रकथा सीरीज़ के तहत भी उन पर एक कॉमिक्स प्रकाशित हुई लेकिन असम से बाहर आज भी उन्हें कम लोग जानते हैं।

बोरफुकन पर एक पुस्तक राष्ट्र को समर्पित करेंगे पीएम मोदी

जयंती के मौके पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियां और एक प्रदर्शनी भी आयोजित की जाएगी। वहीं प्रधानमंत्री मोदी 25 नवंबर को बोरफुकन को श्रद्धांजलि देते हुए एक पुस्तक राष्ट्र को समर्पित करेंगे। पीएम इसी के साथ कार्यक्रम को संबोधित भी करेंगे, तो वहीं अमित शाह लाचित पर एक डोक्यूमेंट्री फिल्म की स्क्रीनिंग का उद्घाटन करेंगे। असम के सीएम सरमा ने संवाददाताओं से कहा कि अनेक क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय टेलीविजन चैनलों पर बाद में फिल्म दिखाई जाएगी।

पूर्वोत्तर में मुगलों को घुसने से रोका, गुवाहाटी से बाहर किया

लचित ने मुगलों को पूर्वोत्तर में घुसने तक नहीं दिया और यहां तक की मुगलों के कब्जे से गुवाहाटी को छुड़ा कर उसपर फिर से अपना कब्जा भी कर लिया था। इसी गुवाहाटी को फिर से पाने के लिए मुगलों ने अहोम साम्राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ा था जिसे ‘सराईघाट की लड़ाई’ कहा जाता है। इस युद्ध में औरंगजेब की मुगल सेना 1,000 से अधिक तोपों के अलावा बड़े स्तर पर नौकाओं के साथ लड़ने आई थी लेकिन लचित ने उनके इरादों पर पानी फेर दिया था।

Compiled: up18 News