आवाज़ के जादूगर कुमार सानु जिनके गाये गाने आज भी कर देते है मदहोश

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पूरा परिचय

कुमार सानू के पिता पशुपति भट्टाचार्य स्वयं भी एक अच्छे गायक और संगीतकार थे। उन्होंने ही कुमार सानू को गायकी और तबला बजाना सिखाया था। गायक किशोर कुमार को अपना आदर्श मानने वाले कुमार सानू ने गायकी में अपना खुद का अलग अंदाज़ बनाये रखा है। कुमार सानू के घर पर शुरू से ही संगीत की परंपरा थी। पिता शास्त्रीय संगीत के गुरु थे। मां भी गाती थीं। बड़ी बहन भी रेडियो पर गाती हैं और आज भी वह पिताजी का संगीत स्कूल चला रही हैं। इस तरह परिवार के माहौल ने कुमार सानू को एक अच्छा गायक बना दिया।

करीब-करीब 350 से अधिक फिल्मों के लिए गा चुके कुमार सानू को सफलता वर्ष 1990 में बनी ‘आशिकी’ फिल्म से मिली थी, जिसके गीत सुपरहिट हुए और कुमार सानू लोकप्रियता के शिखर पर पहुंच गए। बहरहाल, ‘आशिकी’ कुमार सानू की पहली फिल्म नहीं थी। उनको पहला ब्रेक जगजीत सिंह ने दिया था। उन्होंने उन्हें कल्याणजी-आनंदजी से मिलवाया, जिन्होंने 1989 में आई फिल्म ‘जादूगर’ के लिए कुमार सानू से गीत गवाया।

वैवाहिक जीवन

कुमार सानू अपने पिता और बड़ी बहन के साथ कोलकाता के सिंधी इलाके में रहा करते थे। उन्होंने अपने जीवन में दो विवाह किये हैं। पहला विवाह उन्होंने रीटा भट्टाचार्य से 80 के दशक में किया जिससे उन्हें तीन पुत्र- जेस्सी, जीको और जान हुए। अपने कॅरियर के सफलतम दौर में उनका नाम बॉलीवुड अभिनेत्री मीनाक्षी से भी जुड़ा, जिसकी वजह से उन्हें तलाक का सामना करना पड़ा। मीनाक्षी और रीटा दोनों से अलग हो जाने के बाद कुमार सानु ने बीकानेर की लड़की सलोनी से विवाह किया, जिससे उन्हें दो पुत्रियाँ- शन्नों और एना हैं।

स्टेज से शुरुआत

कुमार सानू ने 1979 से स्टेज पर परफॉर्म करना शुरू कर दिया था। वे किशोर कुमार के प्रशंसक थे इसलिए उनके ही गाने स्टेज पर गाते थे, पर बाद में उन्होंने अपनी अलग गायन शैली से अपनी पहचान बनाई। धीरे-धीरे उनके प्रशंसकों की संख्या बढ़ती गई तो उन्हें कोलकाता के कई रैस्तरां में गाने का मौका मिला। वे उनमें गाते रहे और मुंबई जाने के लिए पैसा इकट्ठा करते रहे। उसी दौरान उन्होंने बांग्लादेशी फिल्म ‘तीन कन्या’ में गाने गाए। फिर मुंबई आए तो वहां भी कई रैस्टोरैंट में गाने गाते रहे, लेकिन वे इस काम के साथ-साथ संगीत निर्देशकों से भी मिलते रहे।

1987 में उन्हें फिल्म ‘आंधियां’ में गाने का मौका मिला, जिसमें उनकी आवाज सभी संगीतकारों को पसंद आई। उसी समय कल्याणजी-आनंदजी ने उन्हें ‘जादूगर’ फिल्म में गाने का मौका दिया। इसकी वजह यह थी कि एक बार अमिताभ बच्चन ने कहा था कि- ‘किशोर कुमार के बाद इस लड़के की आवाज मुझसे मिलती है।’

रोचक प्रसंग

अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कुमार सानू कहते हैं कि- “आज भी मुझे एक बात सोच कर हंसी आती है। जब शुरुआत में मैं बप्पी लहरी से मिलने उनके बंगले पर गया तो वहां काफी देर तक बाहर खड़ा होकर अंदर उनसे मिलने जाने की सोचता रहा। फिर सोचा कि जब वे बाहर आएंगे तो उनसे मिलकर अपनी बात कहूंगा। लेकिन काफी देर इंतजार करने के बाद भी वे बाहर नहीं आए और मैं वहीं बैठा रहा। तभी मेरे पास एक पहरेदार आया और पूछने लगा कि मैं कौन हूं और यहां क्यों बैठा हूं? तो मैंने कहा कि मैं एक सिंगर हूं, बप्पी दा के संगीत निर्देशन में गीत गाना चाहता हूं इसलिए उनसे मिलना चाहता हूं। पहरेदार ने कहा कि बप्पी दा ने तुम्हें सुबह से यहां इस तरह बैठा देखकर पुलिस को सूचना दे दी है। पुलिस अभी आती ही होगी। तुम अगर इस सब से बचना चाहते हो तो तुरंत यहां से चले जाओ। यह सुन कर मैं तुरंत वहां से निकला। इसके बाद जब मैंने उनके संगीत निर्देशन में गाने गाए तो एक बार उनको जब यह बात बताई तो वे खूब हंसे। फिर मैंने करीब 34 फिल्मों में उनके साथ काम किया।

कॅरियर

कुमार सानू ने गायकी में अपने कॅरियर की शुरुआत 1986 में आई बांग्लादेशी फिल्म “तीन कन्या” से की, जिसके बाद वह अपना कॅरियर बनाने के लिए कोलकाता से मुंबई चले आये थे। यहाँ पर उन्होंने साल 1989 में आई फिल्म ‘हीरो हिरालाल’ से अपने बॉलीवुड कॅरियर की शुरुआत की। इस फिल्म में उन्होंने “जश्न हैं मोहब्बत का” गाने में अपनी आवाज़ दी थी।

सन 1989 में ही जगजीत सिंह ने कुमार सानू को कल्याणजी-आनंदजी से मिलवाया। पहली ही मुलाकात में उन्होंने कुमार सानू को नाम बदलने की सलाह दी, जिसके बाद उन्होंने अपना नाम केदारनाथ भट्टाचार्य से बदलकर कुमार सानू रख लिया। उनका यह नाम रखने के पीछे भी एक बड़ी वजह थी। दरअसल, कुमार सानू अपनी आवाज़ को किशोर कुमार से प्रेरित समझते थे। साल 1990 में उन्हें पहली बार ‘आशिकी’ के लिए फिल्मफेयर का अवार्ड मिला। इस अवार्ड के बाद उन्हें लगातार चार बार फ़िल्म ‘साजन’ (1991), ‘दीवाना’ (1992), ‘बाज़ीगर’ (1993) और ‘1942: ए लव स्टोरी’ के लिए फिल्मफेयर का सर्वश्रेठ गायक का अवार्ड मिला। कुमार सानू ने अपने कॅरियर में अनु मालिक, जतिन ललित और हिमेश रेशमिया जैसे बड़े-बड़े संगीतकारों के साथ काम किया है।

कुमार सानु को अधिकतर 1990 के दशक की फ़िल्मों में दिये गए पार्श्वगायन के लिये जाना जाता है। ‘ज़ुर्म’ फिल्म के “जब कोई बात बिगड़ जाए” से उन्हें पहली सफलता मिली लेकिन उन्हें ‘आशिकी’ ने सुपरस्टार बना दिया। इस फिल्म से उन्होंने शुरुआत कर लगातार पाँच सालों तक- 1991 से लेकर 1995 तक फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक का पुरस्कार जीता।

संगीत से दूरी

90 के दशक में अपनी आवाज़ से मदहोश करने वाले कुमार सानू ने बदलते वक़्त के संगीत के साथ अपनी दूरी बना ली, जिसके बाद उन्होंने लम्बे समय तक कोई भी गाना नहीं रिकॉर्ड किया लेकिन कुमार सानू ने 2012 में आई फिल्म ‘राउडी राठौर’ के गाने “छमक छल्लो” से वापसी की, जिसके बाद 2015 में आई फिल्म ‘दम लगा के हईशा’ में उनकी आवाज के साथ वह भी देखने को मिले। इस फिल्म के साथ एक रोचक तथ्य यह भी है कि यशराज फिल्म में अपने 60 साल पुराने इतिहास में पहली बार लता मंगेशकर की आवाज को कुमार सानू के साथ रिप्लेस किया था।

Compiled: up18 News


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