जानिए! कांग्रेस में अध्‍यक्ष पद के चुनाव को मतदाता सूची पर क्यो मचा है इतना घमासान?

अन्तर्द्वन्द

मतदाता सूची को लेकर घमासान

मतदाता सूची को सार्वजनिक करने की जो मांग आनंद शर्मा ने कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक में उठाई थी, वह लगातार जोर पकड़ती दिख रही है। चुनाव कार्यक्रम तय करने के लिए हुई सीडब्लूसी मीटिंग में सबसे पहले शर्मा ने ही इस मुद्दे को उठाया था। तब कांग्रेस की सेन्ट्रल इलेक्शन अथॉरिटी चेयरमैन मधुसूदन मिस्त्री ने तुरंत ही इस मांग को खारिज करते हुए कहा था कि पीसीसी मेंबर्स की लिस्ट स्टेट हेडक्वॉर्टर्स में मौजूद हैं। वहां से देखा जा सकता है। बाद में मनीष तिवारी, शशि थरूर, कार्ति चिदंबरम और प्रद्योत बोरदोलोई पीसीसी के 9000 से ज्यादा डेलिगेट्स की लिस्ट को पार्टी की वेबसाइट पर पब्लिश करने की मांग कर चुके हैं। चारों ही लोकसभा सांसद हैं। शशि थरूर के तो चुनाव लड़ने की भी चर्चा है।

कांग्रेस अध्यक्ष के लिए 17 अक्टूबर को चुनाव होगा। इसके लिए 24 सितंबर से नामांकन की प्रक्रिया शुरू होगी। पार्टी का एक गुट चाहता है कि नामांकन शुरू होने से पहले मतदाता सूची सार्वजनिक की जाए। अगर कोई कांग्रेस अध्यक्ष के लिए चुनाव लड़ना चाहता है तो उसे पीसीसी के 10 डेलिगेट्स का समर्थन अनिवार्य है तभी वे नामांकन दाखिल कर पाएंगे। मतदाता सूची को पब्लिश करने की मांग के पीछे क्या दलील दी जा रही हैं, उसे समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि आखिर कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव कैसे होता है? वोटर कौन होते हैं?

कैसे होता है कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव, कौन डालते हैं वोट

कांग्रेस के संविधान के मुताबिक अध्यक्ष के चुनाव में पार्टी डेलिगेट वोट डालते हैं। प्रदेश कार्य समितियों (PCC) के सभी सदस्य डेलिगेट होते हैं। इस समय देशभर में करीब 9 हजार से ज्यादा पीसीसी डेलिगेट्स हैं। अगर चुनाव मैदान में एक से ज्यादा उम्मीदवार रहें तो यही डेलिगेट वोट डालते हैं। वोटिंग पीसीसी मुख्यालयों पर होगी। खास बात ये है कि किसी शख्स को अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने के लिए पहले तो डेलिगेट होना अनिवार्य है। इसके अलावा उसे नामांकन दाखिल करने के लिए कम से कम 10 डेलिगेट्स का समर्थन चाहिए। नामांकन वापसी का वक्त निकल जाने के बाद चुनाव मैदान में बचे उम्मीदवारों की लिस्ट को रिटर्निंग ऑफिसर पार्टी के हर स्टेट यूनिट यानी पीसीसी को भेजता है। सेन्ट्रल इलेक्शन अथॉरिटी का चेयरमैन ही रिटर्निंग ऑफिस होता है। अभी मधुसूदन मिस्त्री इस पद पर हैं। अगर चुनाव मैदान में एक ही उम्मीदवार रहा तो वह निर्विरोध अध्यक्ष निर्वाचित हो जाता है। अगर दो रहे तो पीसीसी डेलिगेट्स को उनमें से किसी एक के पक्ष में वोट देना होता है। अगर 2 से भी ज्यादा उम्मीदवार रहे तो डेलिगेट्स को कम से कम दो उम्मीदवारों के लिए वरीयता वाले वोट देने पड़ेंगे। इस तरह एकल संक्रमणीय पद्धति के तहत सबसे ज्यादा वोट पाने को पार्टी अध्यक्ष घोषित किया जाएगा।

एक तरफ पारदर्शिता तो दूसरी तरफ परंपरा की दुहाई

चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और सुधार की वकालत कर रहे कांग्रेस नेताओं के गुट की दलील है कि अगर मतदाता सूची पब्लिश की जाएगी तो उम्मीदवारों को पता होगा कि उन्हें वोट के लिए आखिर किनसे संपर्क करना होगा। मनीष तिवारी की दलील है कि नामांकन के लिए 10 डेलिगेट्स का समर्थन जरूरी है। अगर डेलिगेट्स की लिस्ट सार्वजनिक नहीं होती है तो उम्मीदवार के नामांकन खारिज होने का खतरा है। सेन्ट्रल इलेक्शन अथॉरिटी यह कहकर नामांकन खारिज कर सकती है कि प्रस्तावक डेलिगेट नहीं हैं। कार्ति चिदंबरम, शशि थरूर, प्रद्योत बोरदोलोई भी उनके सुर में सुर मिला रहे हैं।

दूसरी तरफ, इस मांग पर कांग्रेस के सेन्ट्रल इलेक्शन अथॉरिटी के चेयरमैन मधुसूदन मिस्त्री और पार्टी नेतृत्व का कहना है कि जिन्हें भी पीसीसी डेलिगेट्स की लिस्ट चाहिए वह हर स्टेट यूनिट या प्रदेश कांग्रेस कमिटी के मुख्यालय जाए। वहां लिस्ट उपलब्ध है। तिवारी और अन्य नेताओं का कहना है कि किसी संभावित उम्मीदवार को मतदाता सूची के खातिर 28 पीसीसी और केंद्रशासित प्रदेशों की 9 यूनिट्स के पास जाना बहुत मुश्किल काम है। सूची को पार्टी की वेबसाइट पर प्रकाशित कर देने में आखिर दिक्कत क्या है।

कांग्रेस महासचिव और मीडिया प्रभारी जयराम रमेश परंपरा की दुहाई दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता से पहले या बाद में कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में कभी भी मतदाता सूची सार्वजनिक नहीं हुई है। 1997 और 2000 में भी नहीं जब अध्यक्ष पद के लिए एक से ज्यादा उम्मीदवार थे। केसी वेणुगोपाल भी चुनाव प्रक्रिया को ‘इनहाउस प्रोसीजर’ बताते हुए दो टूक कह रहे हैं कि मतदाता सूची सार्वजनिक नहीं की जाएगी।

कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए वोटिंग अपवाद

आजादी से पहले और उसके बाद भी कांग्रेस में आम तौर पर अध्यक्ष का निर्विरोध निर्वाचन ही होता आया है। अपवाद के तौर पर ही वोटिंग की नौबत आई है। कांग्रेस में पिछली बार 2000 में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ था जिसमें सोनिया गांधी ने जितेंद्र प्रसाद को एकतरफा मुकाबले में हराया था। गांधी को 7,448 डेलिगेट्स के वोट मिले थे जबकि प्रसाद को सिर्फ 94 वोट। 1997 में भी कांग्रेस अध्यक्ष के लिए वोटिंग हुई थी और तब दो से ज्यादा कैंडिडेट थे। उस चुनाव में सीताराम केसरी ने शरद पवार और राजेश पायलट जैसे दिग्गजों को पटखनी दी थी। केसरी को 6224 वोट, पवार को 882 और पायलट को 354 वोट मिले थे।

25 साल से अध्यक्ष पद पर गांधी परिवार का ‘कब्जा’

1998 में पहली बार सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बनीं। निर्विरोध। 2 साल बाद 2000 के चुनाव में उन्हें जितेंद्र प्रसाद से चुनौती मिली लेकिन चुनाव में एकतरफा जीत हासिल की। तब से ही कांग्रेस अध्यक्ष का पद लगातार गांधी परिवार के पास ही है। उन्हें कभी कोई चुनौती नहीं मिली। 2017 में सोनिया गांधी की जगह उनके बेटे राहुल गांधी अध्यक्ष बने लेकिन 2019 के चुनाव में कांग्रेस की शर्मनाक पराजय के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया। तब से सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष हैं। इस दौरान बीजेपी में 10 अध्यक्ष बदल गए। कुशाभाऊ ठाकरे, बंगारू लक्ष्मण, जना कृष्णमूर्ति, वेंकैया नायडू, लाल कृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह, अमित शाह और अब जेपी नड्डा। ये वे नाम हैं जो 1998 से अबतक बीजेपी के अध्यक्ष रहे। दूसरी तरफ, कांग्रेस में शीर्ष पद सिर्फ गांधी परिवार के पास रहा।

गांधी परिवार के पास ही रहेगी कांग्रेस की बागडोर?

कांग्रेस के भीतर असंतुष्ट नेताओं के समूह G-23 ने कांग्रेस में संगठन चुनाव की मांग को लेकर ही अपनी आवाज बुलंद की थी। अब लंबे इंतजार के बाद चुनाव होने जा रहे हैं तो इस बार चर्चाएं गरम है कि कोई गैर-गांधी अध्यक्ष बनेगा। वजह ये कि राहुल गांधी अध्यक्ष नहीं बनना चाहते। ऐसी सूरत में गांधी परिवार के किसी करीबी नेता को यह जिम्मेदारी मिल सकती है। इसके लिए अशोक गहलोत, मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे नाम सामने आ रहे हैं। हालांकि, दोनों ही नेता अपनी उम्मीदवारीं की अटकलों को अफवाह करार दे रहे हैं और दोनों ही चाहते हैं कि राहुल गांधी ही अध्यक्ष बनें। इसके लिए उन्हें मनाने की कोशिशें जारी हैं।

दूसरी तरफ, शशि थरूर के चुनाव लड़ने की चर्चा है। वह अगले एक-दो हफ्ते में अपनी उम्मीदवारी को लेकर तस्वीर साफ करने की बात कह चुके हैं। साथ में उन्होंने अपील की है कि कांग्रेस नेताओं को अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने के लिए आगे आना चाहिए। अगर राहुल गांधी अध्यक्ष पद संभालने के लिए तैयार हो जाते हैं तब शायद ही उन्हें चुनौती मिले। लेकिन अगर वह तैयार नहीं हुए तो चुनाव दिलचस्प हो जाएगा। पृथ्वीराज चव्हाण जैसे नेता सार्वजनिक तौर पर ‘कठपुतली अध्यक्ष’ बनाए जाने के खिलाफ आवाज उठा चुके हैं।

-एजेंसी